Vinayak Damodar Savarkar Mercy Petitions: विनायक दामोदर सावरकर। पिछले कुछ सालों में या यूं कहें कि 2014 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनने के बाद इस नाम को लेकर काफी विवाद हुआ है। यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या सावरकर ने जेल में रहते हुए बार-बार ब्रिटिश अधिकारियों से माफी की गुहार लगाई थी? क्या उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर दया याचिकाएं दायर की थीं?
सावरकर ने हिंदू महासभा का नेतृत्व किया था और उनके समर्थकों की नजर में आज भी वह हिंदुत्व के विचार को जन्म देने वाले, एक कट्टर राष्ट्रवादी और अडिग देशभक्त थे।
किशोरावस्था से ही क्रांतिकारी थे सावरकर
सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित भगूर गांव में एक मराठी हिंदू चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम दामोदर और राधाबाई सावरकर था। स्कूली जीवन से लगने लगा था कि सावरकर के अंदर राजनीतिक चेतना थी। उन्होंने 1903 में अपने बड़े भाई गणेश सावरकर के साथ मिलकर मित्र मेला संगठन की स्थापना की, जिसे बाद में अभिनव भारत सभा के नाम से जाना गया। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और ‘हिंदू गौरव’ को पुनर्जीवित करना था।
सावरकर पर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का गहरा प्रभाव पड़ा। सावरकर ने 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध किया और तिलक की उपस्थिति में अन्य छात्रों के साथ विदेशी कपड़ों की होली जलाई। तिलक भी सावरकर से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें 1906 में लंदन में कानून की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति दिलाने में मदद की।
क्या है विवाद?
विवाद यह है कि बीजेपी और दक्षिणपंथी विचाराधारा को मानने वाले संगठन विनायक दामोदर सावरकर को सच्चा देशभक्त बताते हैं जबकि कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकारों का कहना है कि सावरकर कोई देशभक्त नहीं थे बल्कि वह महात्मा गांधी की हत्या में शामिल थे और अंग्रेजों से माफी मांगकर जेल से छूटे थे। कांग्रेस ने कुछ साल पहले एक बुकलेट ‘वीर सावरकर, कितने वीर’ जारी की थी और इसे लेकर जबरदस्त विवाद हुआ था।
बताना होगा कि सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान और निकोबार की सेलुलर जेल में बंद थे। इस दौरान ही उन्होंने अंग्रेज सरकार के सामने माफीनामे या दया याचिकाएं दायर की थीं।
1909 में सावरकर पर ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने और अंग्रेज सरकार के अफसरों की हत्या का आरोप लगाया गया। गिरफ्तारी से बचने के लिए वह पेरिस चले गए लेकिन बाद में लंदन लौट आए। मार्च, 1910 में उन्हें लंदन में हथियार बांटने, सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने और भड़काऊ भाषण देने जैसे कई आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया।
राहुल के बयान पर हुआ था बवाल
सावरकर को लेकर विवाद तक ज्यादा भड़क गया था जब साल 2019 में एक चुनावी जनसभा में राहुल गांधी ने मंच से कहा था कि उनका नाम राहुल सावरकर नहीं राहुल गांधी है, वह मर जाएंगे लेकिन माफी नहीं मांगेंगे। जबकि दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि सावरकर ने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया और उन्होंने देश की खातिर जेल में भीषण यातनाओं को झेला था।
‘भारत रत्न’ देने का था प्रस्ताव
यह भी हैरान करने वाली बात है कि वीर सावरकर कभी भी आरएसएस और भारतीय जनसंघ के सदस्य नहीं रहे लेकिन इसके बाद भी हिंदुत्व के विचार का समर्थन करने वाले सभी संगठन सावरकर का बहुत आदर करते हैं। 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भी भेजा था लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं हुआ था।
सावरकर और महात्मा गांधी को लेकर क्या है विवाद?
राहुल गांधी के द्वारा बयान दिए जाने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साल 2021 में एक कार्यक्रम में कहा था कि सावरकर ने अंग्रेजों से महात्मा गांधी के कहने पर माफी मांगी थी। राजनाथ सिंह ने सावरकर को भारतीय इतिहास का महानायक बताया था। राजनाथ सिंह के मुताबिक, महात्मा गांधी ने सावरकर से कहा था कि वह अंग्रेजी हुकूमत के सामने दया याचिका दायर करें और इसके बाद ही सावरकर ने ऐसा किया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसकी विचारधारा का समर्थन करने वाले भी यही कहते हैं कि सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों के पास दया याचिका भेजी थी।
सावरकर पर और भी हैं आरोप
सावरकर पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने काला पानी की मानवीय यातना से डरकर अंग्रेजों के सामने 5 या 7 दया याचिकाएं दायर की थी और माफी मांगने के बाद ही वह जेल से बाहर आए थे। सावरकर पर यह आरोप भी लगता है कि जेल से छूटने के बाद वह अंग्रेजों के शासन के प्रति भरोसेमंद बने रहे थे और उन्होंने अंग्रेजों की मदद का आह्वान किया था। सावरकर पर गांधी की हत्या की साजिश रचने का आरोप भी लगा था।
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठे दिन सावरकर को हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन उन्हें फरवरी 1949 में बरी कर दिया गया था। सावरकर की आलोचना करने वालों का यह भी मानना है कि सावरकर ने हिंदुत्व की जो परिभाषा दी थी उसमें सिर्फ हिंदुओं की ही बात थी भारत के अन्य धर्मों के लोगों की नहीं। सावरकर पर आरोप है कि उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ‘आज़ाद हिंद फौज’ का विरोध किया था।
गांधी ने की थी सावरकर बंधुओं की रिहाई की मांग
महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी हो इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। हां, यह जरूर है कि महात्मा गांधी ने 27 मई, 1920 को यंग इंडिया भारत में एक लेख लिखकर सावरकर बंधुओं की रिहाई की मांग की थी। विनायक सावरकर के साथ उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी सेलुलर जेल में रहे थे।
सावरकर के एक और भाई नारायण राव ने महात्मा गांधी से विनायक दामोदर सावरकर की रिहाई के लिए मदद मांगी थी। जाने-माने लेखक विक्रम संपत की किताब ‘सावरकर- एक भूले बिसरे अतीत की गूंज’ में इसका जिक्र है। विक्रम संपत लिखते हैं- सावरकर के भाई नारायण राव ने 18 जनवरी, 1920 को लिखे अपने पहले पत्र में अपने भाइयों की रिहाई कराने के संबंध में गांधी जी से सलाह और मदद मांगी थी।
नारायण राव ने पत्र में लिखा था, ‘अंग्रेजी सरकार मेरे भाईयों को रिहा नहीं कर रही है। कृपया आप मुझे बताएं कि ऐसे मामले में क्या करना चाहिए? मेरे भाई 10 साल की कठोर सजा काट चुके हैं और उनकी सेहत भी खराब हो रही है। मुझे उम्मीद है कि आप इस मामले में क्या कर सकते हैं, यह जरूर बताएंगे।’ महात्मा गांधी ने एक सप्ताह बाद यानी 25 जनवरी, 1920 को इस पत्र के जवाब में कहा था, ‘आपको सलाह देना कठिन लग रहा है। फिर भी मेरी राय है कि आप एक याचिका तैयार कराएं जिसमें इस मामले से जुड़े सभी तथ्य हों कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था। मैंने आपको पिछले एक पत्र में बताया था कि मैं इस मामले को अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं।’
इससे यह पता चलता है कि सावरकर की दया याचिका को लेकर महात्मा गांधी ने सलाह जरूर दी थी।
कब-कब हुई थी गांधी और सावरकर की मुलाकात?
महात्मा गांधी और सावरकर की दो बार मुलाकात हुई थी। एक बार लंदन में 1909 में गांधी सावरकर से मिलने गए थे और दूसरी बार 1927 में रत्नागिरी में गांधी और सावरकर मिले थे।
शिवसेना (यूबीटी) ने कांग्रेस को चेताया था
सावरकर को लेकर विवाद इतना ज्यादा है कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी में शामिल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना सावरकर के खिलाफ कुछ नहीं सुनना चाहती। इसे लेकर कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के रिश्तों में दरार भी आ चुकी है। पिछले कुछ सालों में बीजेपी शासित राज्य सरकारों में सावरकर की बातों को पाठ्यक्रम में जगह दिए जाने को लेकर भी विवाद हुआ है। साल 2022 में जब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार थी तब आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सावरकर को जगह दी गई थी लेकिन कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया था।
राहुल गांधी के खिलाफ पुणे कोर्ट ने जारी किया समन, वीर सावरकर से जुड़ा है मामला
सावरकर को लेकर इतिहास से आगे बढ़ें और ताजा राजनीतिक माहौल में देखें तो देश की सियासत में आज भी सावरकर का नाम जिंदा है और सावरकर को लेकर तमाम तथ्यों का अध्ययन करने से यही पता चलता है कि उन्हें लेकर होने वाला विवाद जल्दी नहीं थमेगा क्योंकि सावरकर को लेकर दक्षिणपंथी और वामपंथी इतिहासकारों और इन विचारधाराओं के समर्थकों के अपने-अपने तर्क हैं और तर्कों के समर्थन में अपने-अपने दावे हैं।
वीर सावरकर के 10 सर्वश्रेष्ठ विचार
1- भारत की पवित्र भूमि मेरा घर है, उसके वीरों का खून मेरी प्रेरणा है और उसकी जीत मेरा सपना है।
2- दुनिया उन्हीं का सम्मान करती है, जो अपने लिए खड़े हो सकते हैं और अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं।
3- एक देश जो अपने नायकों, शहीदों और योद्धाओं को नहीं पहचानता, वह सड़ने के लिए अभिशप्त है।
4- स्वतंत्रता कभी दी नहीं जाती, इसे हमेशा छीनना पड़ता है।
5- हिंदू समाज अगर आजादी की सुबह देखना चाहता है तो उसे जाति और पंथ के भेदभाव से ऊपर उठना होगा।
6- कायर कभी इतिहास नहीं बनाते, यह केवल वीर होते हैं जो इतिहास में अपना नाम लिखते हैं।
7- हमारा एकमात्र कर्तव्य अपने राष्ट्र के लिए लड़ते रहना है चाहे कुछ भी हो जाए।
8- शिक्षित मन आजादी की लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार होता है।
9- एक राष्ट्र का अतीत उसकी नींव है; उसे संरक्षित और सम्मानित किया जाना चाहिए।
10 – एक सही नेता अपना नेतृत्व उदाहरण देकर सामने रखता है, अपने कामों से प्रेरित करता है और अपने दृष्टिकोण से सशक्त करता है।
निश्चित रूप से सावरकर को भारत में सबसे विवादास्पद राजनीतिक शख्सियत कहा जा सकता है।