भारत से जारी विवाद के बीच कनाडा एक और मोर्चे पर भारी आलोचना का सामना कर रहा है। कनाडा की संसद में हिटलर के फौजी को सम्मानित किया गया है। अब कनाडा की संसद ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ के स्पीकर एंथनी रोटा ने माफी मांगी है।

22 सितंबर को कनाडा की संसद में हिटलर के लिए लड़ने वाले एक नाजी सैनिक का सम्मान किया गया था। संसद के स्पीकर ने दूसरे विश्व युद्ध में नाजियों की तरफ से लड़ने वाले 98 साल के यारोस्लाव हुंका को वॉर हीरो बताया था।

संसद में हुंका का अभिवादन करते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो समेत तमाम सांसद दो बार खड़े हुए थे यानी स्टैंडिंग ओवेशन दिया था। कनाडाई सांसदों के अभिवादन को स्वीकार करते हुए नाजी सैनिक ने सैल्यूट किया था।

Justin Trudeau
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में यारोस्लाव हुंका को सम्मान दिया। हुंका द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी सैन्य इकाई के लिए लड़ा था। (Patrick Doyle/The Canadian Press via AP)

इस हरकत की चौतरफा आलोचना के बाद संसद के स्पीकर ने लिखित में माफी मांगी है। उनका कहना है कि उन्हें हुंका के बारे में नहीं पता था। स्पीकर ने कनाडा समेत दुनियाभर के यहूदियों से माफी भी मांगी है क्योंकि नाजी सेना ने यहूदियों का नरसंहार किया था। 2021 की कनडाई जनगणना के मुताबिक, वहां करीब तीन लाख यहूदी रहते हैं।

नाजियों का ठिकाना रहा है कनाडा

हिटलर के लिए लड़ने वालों को आज भी वॉर क्रिमिनल (युद्ध अपराधी) कहा जाता है। 1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद कनाडा में बड़ी संख्या में नाजी युद्ध अपराधी बसे थे। 1980 के दशक के मध्य में कनाडा में नाजी युद्ध अपराधियों के प्रवेश पर बड़ी बहस छिड़ी थी।

सन् 2000 में प्रकाशित हॉवर्ड मार्गोलियन की किताब ‘Unauthorized Entry: The Truth about Nazi War Criminals in Canada 1946-1956’ में बताया गया है कि कनाडा नाजी युद्ध अपराधियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना रहा है। मार्गोलियन एक कनाडाई इतिहासकार हैं।

हालांकि मार्गोलियन मानते हैं कि कनाडा में नाजी युद्ध अपराधियों को नौकरशाहों या सरकार ने नहीं बसाया। बल्कि वो अपनी पहचान छिपाकर कनाडा में घुसे थे। उनका दावा है कि युद्ध के बाद लाखों प्रवासी और शरणार्थी कनाडा में आए थे। कई लोग युद्धग्रस्त पूर्वी यूरोप से भी थे और उन्हीं के बीच छिपकर (जाली पहचान के आधार पर) नाज़ी युद्ध अपराधी भी आ गए थे। नाजियों ने ऐसा अभियोजन (अदालती कार्रवाई) से बचने के लिए किया था। ऐसा माना जाता कि तब 2000 से अधिक नाजी युद्ध अपराधी कनाडा में आए थे।

खुद को नरसंहारों का इतिहासकार बताने वाले एफ़्रैम ज़ुरोफ़ ने इजरायल से चलने वाले ‘The Journalism Post’ में एक ओपिनियन लिख बताया था कि कनाडा अपने नाजी निवासियों से डील करने में असफल रहा है।

अक्टूबर 2021 के अपने ओपिनियन में जुरोफ ने कनाडा पर पूर्वी यूरोप के शरणार्थियों की जांच करने में असफल रहने का आरोप लगाया था। उनका मानना है कि पश्चिमी देशों ने शरणार्थियों के बीच हजारों ऐसे नाजियों को भी शरण दिया, जिन्होंने नरसंहार किया था। कई देशों में द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद नरसंहार के अपराधियों पर मुकदमा चलाया गया था। लेकिन पश्चिमी सहयोगियों ने जानबूझकर जर्मन वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों के नाजी अतीत को नजरअंदाज कर दिया।

जुरोफ साइमन विसेन्थल सेंटर के इजरायल ऑफिस के डायरेक्टर हैं। साइमन विसेन्थल सेंटर एक यहूदी वैश्विक मानवाधिकार संगठन है जो ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भ में नरसंहार और हेट पर शोध करता है।

एक उदाहरण

सीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “कनाडा में नाजी युद्ध अपराधी के खिलाफ लाए गए सबसे शुरुआती मामलों में से एक था हेल्मुट राउका का मामला। वह एक मास्टर सार्जेंट था। उसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के एसएस में सेवा की थी। दरअसल, गैर जर्मन लोगों को हिटलर की नाजी सेना के एसएस डिवीजन में रखा जाता था। हुंका भी एसएस डिवीजन में ही था।

हेल्मुट राउका 1950 में कनाडा पहुंचा था। उसे 1956 में नागरिकता मिली थी। 1961 में पश्चिम जर्मनी ने राउका के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। उसपर आरोप था कि उसने करीब 11,500 यहूदियों की हत्या की। जर्मनी ने कनाडा से उसे ढूंढने में मदद करने के लिए कहा। लेकिन कनाडाई सरकार ने गोपनीयता से जुड़े कानूनों का हवाला देकर व्यक्तिगत जानकारी देने से इनकार कर दिया। 1982 में उस समय के संघीय सॉलिसिटर जनरल रॉबर्ट कपलान ने पासपोर्ट कार्यालय को राउका की जानकारी जारी करने का आदेश दिया।

1982 में ओंटारियो (कनाडा) की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि जर्मनी में उन पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। एक असफल अपील के बाद, उसे पश्चिम जर्मनी को सौंप दिया गया लेकिन मुकदमे शुरू होने से पहले ही 29 अक्टूबर, 1983 को उसकी मृत्यु हो गई।

कनाडा सरकार की ‘कोशिश’

राउका मामले के बाद कनाडा सरकार ने युद्ध अपराधियों की जांच के लिए साल 1985 में न्यायमूर्ति जूल्स डेसचेन्स के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया। इसकी अंतिम रिपोर्ट ने कनाडा में मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए आपराधिक संहिता में बदलाव की सिफारिश की।

मार्च 1987 में, संघीय सरकार ने घोषणा की कि जिन लोगों पर युद्ध अपराध या मानवता के खिलाफ अपराध में शामिल होने का आरोप है, उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा या नागरिकता रद्द की जाएगी और उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।

कनाडा में युद्ध अपराधी के रूप में पहला मुकदमा इमरे फिंटा पर चला था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फिंटा जर्मनी के हंगरी में पुलिस अधिकारी था। दिसंबर 1987 में उस पर आरोप लगा कि उसने हंगरी से यहूदियों को भगाने के लिए हत्या, अपहरण और गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी की थी। उस पर नाजियों की मदद करने का केस चला।

लेकिन कोर्ट ने फिंटा को 25 मई 1990 को बरी कर दिया, लेकिन सरकार ने अपील की। 1994 में कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने फिंटा को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और फैसला सुनाया कि उस पर मुकदमा चलाने के लिए इस्तेमाल की गई आपराधिक संहिता की धारा ही असंवैधानिक थी। इमरे फिंटा की दिसंबर 2003 में टोरंटो (कनाडा) में मौत हो गई।