फरवरी 1958 में आज़ाद वियतनाम के पहले राष्ट्रपति हो ची मिन्ह ने भारत आए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनका एक महान क्रांतिकारी के रूप में स्वागत किया था। हो ची मिन्ह की तुलना गांधी और लेनिन से की जाती है। यह एक विरोधाभासी तुलना है। लेकिन यह सच है कि हो ची मिन्ह ने गांधी की तरह सरल जिंदगी बिताई। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वह महल में न रहकर दो कमरे के छोटे से मकान में रहा करते थे। उनकी सहायता के लिए सिर्फ एक कर्मचारी होता था।

दूसरी तरफ उन्होंने अपनी देश की आज़ादी के लिए लेनिन की तरह सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपनाया। जवाहरलाल नेहरू और हो ची मिन्ह की अच्छी दोस्ती थी। वियतनाम की आज़ादी के बाद वहां पहुंचने वाले पहले विदेशी गणमान्य व्यक्तियों में नेहरू का नाम शामिल है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हो ची मिन्ह ने नेहरू के लिए कविता भी लिखी थी।

“You are in jail, I am in prison…
We communicate without words,
Shared ideas link you and me.”

हो ची मिन्ह की भारत यात्रा और अमृता प्रीतम

हो ची मिन्ह के सम्मान में दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया गया था। इस समारोह में पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम भी शामिल हुई थीं। जब अमृता को एक कवि के रूप में हो ची मिन्ह से मिलवाया गया, तो उन्होंने आगे आकर उनका माथा चूम लिया और कहा, “हम दोनों सिपाही हैं। हम दोनों दुनिया के गलत मूल्यों से लड़ रहे हैं – मैं तलवार से, तुम कलम से।”

कौन थे हो ची मिन्ह?

आधुनिक वियतनाम के राष्ट्रपिता हो ची मिन्ह का जन्म 19 मई, 1890 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका परिवार मध्य वियतनाम के किमलियन में रहता था। तब वियतनाम फ्रांस का गुलाम हुआ करता था। हो ची मिन्ह एक ऐसे अधिकारी के बेटे थे जिसने अपने देश पर फ्रांसीसी वर्चस्व के विरोध में इस्तीफा दे दिया था।

हो ने स्कूली पढ़ाई ह्यू से की थी। उन्होंने देश के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी थी। वह 3 जून 1911 को 21 साल की उम्र में कुक के सहायक के रूप में स्टीमर जहाज पर काम पाकर वियतनाम छोड़कर चले गए। वह काम के लिए लंदन और पेरिस में रहे।

नाम बदल शुरू किया काम

प्रथम विश्व युद्ध के बाद हो छद्म नाम ‘गुयेन ऐ क्वोक’ का इस्तेमाल करते हुए, रेडिकल एक्टिविटी में शामिल होने लगे। वह फ्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक समूह के सदस्य रहे। उन्हें ट्रेनिंग के लिए मास्को भी भेजा गया था। 1924 के अंत में वह चीन गए और वहां निर्वासित वियतनामी लोगों के बीच एक क्रांतिकारी आंदोलन शुरू किया।

स्थानीय अधिकारियों ने जब कम्युनिस्ट गतिविधियों पर नकेल कसनी शुरू की तो उन्हें चीन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि 1930 में इंडोचाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (ICP) की स्थापना के लिए वे वापस लौट आए। वह कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में हांगकांग में रहे।

जून 1931 में हो को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 1933 में अपनी रिहाई तक जेल में रहे। इसके बाद वह सोवियत संघ के लिए निकल गए, जहां उन्हें कथित तौर पर तपेदिक से उबरने में कई साल लग गए। 1938 में वे चीन लौट आए और चीनी कम्युनिस्ट सशस्त्र बलों के सलाहकार के रूप में कार्य किया।

वियतनाम वापसी

1911 में वियतनाम छोड़ निकले हो ची मिन्ह 1941 में देश लौटे। यह वही वक्त था जब जापान ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया था। हो ची मिन्ह 30 साल तक देश से बाहर रहकर वियतनाम की आज़ादी के लिए माहौल तैयार करते रहे। जब वह वियतनाम से निकले थे, तब एक गुमनाम युवा थे। लौटे तो कद्दावर नेता बन चुके थे।

वियतनाम की आजादी के लिए हो ची मिन्ह ने एक संगठित सशस्त्र आंदोलन करने की ठानी। उन्होंने ICP नेताओं के साथ संपर्क साधा। एक कम्युनिस्ट-प्रभुत्व वाला स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ, जिसे वियतमिन्ह के नाम से जाना जाता है। हो ची मिन्ह ने अपने साथियों के सहयोग से जापानियों से खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी। अगस्त 1945 में जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। सत्ता में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ वियतनाम (DRV) आई। हो ची मिन्ह आज़ाद वियतनाम के पहले राष्ट्रपति बने। हो ची मिन्ह भी एक छद्म नाम था, जो इतना मशहूर हो गया कि उन्हें इसी नाम से जाना जाने लगा। उनका असली नाम Nguyễn Sinh Cung था।

फ्रांस से युद्ध और देश का विभाजन

फ्रांस आसानी से वियतनाम को छोड़ने को तैयार नहीं था। फ्रांसीसियों ने 1946 के अंत में वियतनाम के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। आठ वर्षों तक वियतमिन्ह गुरिल्लाओं ने वियतनाम के पहाड़ों और धान के खेतों में फ्रांसीसी सैनिकों का मुकाबला किया, अंत में उन्हें 1954 में दीन बिएन फु की निर्णायक लड़ाई में हरा दिया।

हालांकि जिनेवा में वार्ता के बाद वियतनाम के दो टुकड़े हो गए। उत्तरी वियतनाम में कम्यूनिस्ट सरकार बनी। दक्षिणी में पश्चिमी देशों के समर्थन वाली सरकार का गठन हुआ। हो ची मिन्ह वियतनाम के एकीकरण में भी जुटे लेकिन उनका प्रयास उनकी मौत के छह साल बाद रंग लाया।

हो ची मिन्ह की मौत 3 सितंबर, 1969 को हृदय गति रुकने से हनोई में हुई। लेकिन दक्षिणी वियतनाम में संघर्ष 1960 के दशक की शुरुआत में ही छिड़ गया था। साम्यवादी नेतृत्व वाले गुरिल्लाओं ने साइगॉन में अमेरिका समर्थित शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया था।

कमाल के फौजी

हो वामपंथी विचारधारा के नेता थे। वो जंग के मैदान में एक कमाल के फौजी थे। वहीं जंग के बाहर एक शांत सौम्य व्यक्ति थे। हो के सम्मान में 1975 में साइगॉन (दक्षिणी वियतनाम का एक शहर) का नाम बदलकर हो ची मिन्ह सिटी कर दिया गया था। हो ची मिन्ह न केवल वियतनामी साम्यवाद के संस्थापक थे, वे वियतनाम के स्वतंत्रता के संघर्ष के मूल थे। सादगी, सत्यनिष्ठा और दृढ़ संकल्प के उनके व्यक्तिगत गुणों की न केवल वियतनाम के भीतर बल्कि अन्य जगहों पर भी व्यापक रूप से प्रशंसा की गई।