संसद के शीतकालीन सत्र से सोमवार (18 द‍िसंबर, 2023) को 78 और सदस्‍यों (33 लोकसभा और 45 राज्‍यसभा के) को न‍िलंब‍ित कर द‍िया गया। पहले के 14 (लोकसभा के 13 और राज्‍यसभा का एक) सांसदों को म‍िला दें तो इस सत्र में 92 सदस्‍य हंगामा व अमर्याद‍ित आचरण करने के आरोप में न‍िलंब‍ित क‍िए जा चुके हैं। 17वीं लोकसभा में सदस्‍यों के न‍िलंबन का र‍िकॉर्ड बन गया है।

2019 से 2023 तक (शीतकालीन सत्र को छोड़ कर) कम से कम 149 सांसदों को सदन से न‍िलंब‍ित क‍िया गया है, लेक‍िन 2023 के शीतकालीन सत्र ने सारा र‍िकॉर्ड तोड़ द‍िया। अकेले इस सत्र में दोनों सदनों के 92 सदस्‍यों को (18 द‍िसंबर तक) न‍िलंब‍ित क‍िया गया।

बीजेपी ने भी बनाया है हंगामे का र‍िकॉर्ड 

पीआरएस लेज‍िस्‍लेट‍िव र‍िसर्च के मुताब‍िक साल 1999 से प्रॉडक्‍ट‍िव‍िटी के ल‍िहाज से 2010 का शीतकालीन सत्र सबसे खराब रहा था। उस समय भाजपा व‍िपक्ष में थी। पार्टी ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम लाइसेंस आवंटन में सीएजी द्वारा उठाए गए सवालों की जांच के ल‍िए संयुक्‍त जांच सम‍ित‍ि (जेपीसी) बनाए जाने की मांग को लेकर दोनों सदनों की कार्यवाही पूरी तरह बाध‍ित की थी।

पीआरएस के आंकड़े के मुताब‍िक उस सत्र में राज्‍यसभा की प्रॉडक्‍ट‍िव‍िटी महज दो फीसदी और लोकसभा की 6 फीसदी रही थी। 2010 में ही राज्‍यसभा में मंत्री के हाथ से मह‍िला आरक्षण ब‍िल छीनने के आरोप में सात सांसदों को न‍िलंब‍ित क‍िया गया था।

व‍िपक्षी सांसदों का ताजा न‍िलंबन संसद की सुरक्षा में सेंधमारी पर प्रधानमंत्री/गृह मंत्री के बयान और सदन में बहस की मांग को लेकर नारेबाजी और प्रदर्शन करने के चलते हुआ है। लोकसभा के पूर्व महासच‍िव पीडीटी आचारी ने जनसत्‍ता.कॉम को बताया क‍ि सदन में क‍िसी तरह की नारेबाजी की मनाही है। उन्‍होंने बताया क‍ि प्रधानमंत्री के सदन में आने पर सत्‍ताधारी सांसदों की ओर से नारे लगाना भी न‍ियम का उल्‍लंघन है

एक र‍िकॉर्ड राजीव गांधी के जमाने का

1989 में जब राजीव गांधी की सरकार थी, तो 15 मार्च को एक साथ 63 सांसदों को लोकसभा से न‍िलंब‍ित कर द‍िया गया था। इतनी बड़ी संख्‍या में एक सा‍थ, एक सदन से सांसदों को अब तक कभी न‍िलंब‍ित नहीं क‍िया गया है। यह कार्रवाई ठक्‍कर आयोग की र‍िपोर्ट लीक (इंड‍ियन एक्‍सप्रेस अखबार में) होने के बाद हुए हंगामे पर की गई थी।

जस्‍ट‍िस ठक्‍कर की अध्‍यक्षता में आयोग इंद‍िरा गांधी की हत्‍या की जांच के ल‍िए बनाया गया था। इसके व‍िरोध में चार सांसदों – सैयद शहाबुद्दीन, जीएम बनातवाला, एमएस ग‍िल और शम‍िंदर सिंह ने भी वॉक आउट कर ल‍िया था।

न‍ियम में अध्‍यक्ष को जबरदस्‍त पावर 

संसद की कार्यवाही संचाल‍ित करने के ल‍िए जो न‍ियम हैं, वे 1952 से जस के तस हैं। न‍ियमों के अनुसार अगर कोई सदस्‍य सदन में हंगामा या कार्यवाही में बाधा डालने वाली कोई अन्‍य हरकत कर रहा है तो पीठासीन सदस्‍य उसे सदन से जाने के ल‍िए कह सकते हैं। इसके बाद भी अगर हंगामा जारी रहता है तो कार्यवाही संचाल‍ित कर रहे सदस्‍य हंगामा करने वाले सदस्‍य को नाम‍ित कर सकते हैं। इसके बाद सदन से उस सदस्‍य को पूरे सत्र के ल‍िए न‍िलंब‍ित करने का प्रस्‍ताव लाया जा सकता है और प्रस्‍ताव पास होने पर सदस्‍य न‍िलंब‍ित माना जाता है।

2001 में जब जीएमसी बालयोगी लोकसभा अध्‍यक्ष थे, तब स्‍पीकर को और ज्‍यादा अध‍िकार देने के ल‍िए न‍ियम में थोड़ा बदलाव क‍िया गया। इसके मुताब‍िक अध्‍यक्ष अगर हंगामा करने वाले सदस्‍य का नाम ले लें तो वह खुद-ब-खुद पांच द‍िन के ल‍िए या पूरे सत्र के ल‍िए न‍िलंब‍ित माना जाएगा। इसके ल‍िए सदन से प्रस्‍ताव पास कराने की जरूरत नहीं रह जाएगी। हालांक‍ि, राज्‍यसभा ने इस न‍ियम को नहीं अपनाया था।

पहला उदाहरण 1963 में सामने आया 

सदन में पहली बार बड़ा हंगामा 1963 में देखा गया था। जब राष्‍ट्रपत‍ि सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन दोनों सदनों के संयुक्‍त सत्र को संबोध‍ित कर रहे थे तो लोकसभा के कुछ सदस्‍यों ने पहले तो इसे बाधि‍त क‍िया और बाद में वाकआउट कर गए। 

एक उदाहरण ऐसा भी- माइक उखाड़ फेंकने पर भी नहीं हुआ सांसद का न‍िलंबन

1989 में 20 जुलाई को ऐसा भी हुआ क‍ि सत्‍यगोपाल म‍िश्रा ने स्‍पीकर के सामने लगी माइक उखाड़ कर फेंक दी। इसके बावजूद न‍िलंबन नहीं हुआ था। व‍िपक्ष सरकार पर सीएजी की ट‍िप्‍पण‍ियों का हवाला देकर इस्‍तीफे की मांग कर रहा था। उस समय शीला दीक्ष‍ित संसदीय कार्य मंत्री थीं।