भारत की राजनीति में चंद्रशेखर को एक ऐसा नेता के तौर पर याद किया जाता है, जो अपनी मर्जी के मालिक थे। वह कूटनीति औपचारिकताओं की चिंता नहीं करते थे। ना ही वह व्यक्तिगत संबंधों के बीच राजनीतिक मामलों या सोच-विचार को आने देते थे। चंद्रशेखर की उन्मुक्तता से जुड़ा एक किस्सा शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखा है। पवार ने बताया है कि कैसे प्रधानमंत्री रहते हुए चंद्रशेखर ने प्रोटोकॉल को किनारे कर एक ड्राइवर के साथ फोटो खिंचवाई थी।

क्या है पूरा किस्सा?

 7 नवम्बर, 1990 को वी.पी. सिंह के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद चंद्रशेखर पीएम बने थे। उन्होंने 10 नवम्बर, 1990 को पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। चंद्रशेखर मात्र सात महीने (10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991) प्रधानमंत्री रहे। लेकिन इस दौरान भी उनके औपचारिकताओं को अधिक महत्व नहीं दिया।

एयरपोर्ट वाला किस्सा तब का है, जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार महाराष्ट्र पहुंचे थे।चंद्रशेखर मुंबई हवाई अड्डे से बाहर आए और कार के पास पहुंचते ही उन्होंने उनके स्वागत में जुटी भीड़ से पूछा, ‘गामा कहां है, उसे यहां बुलाओ।’

प्रधानमंत्री की बात सुनकर स्वागत में आए लोग सोच में पड़ गए कि ये गामा कौन है? क्योंकि उन लोगों ने कभी गामा का नाम ही नहीं सुना था। हालांकि एयरपोर्ट पर एक ग्रुप ऐसा भी था, जो गामा से अच्छी तरह परिचित था। ड्राइवर्स जानते थे कि गामा कौन है। जल्द ही ड्राइवरों के बीच बहुत खलबली मच गई। वो सभी गामा को खोजने लगे।

पवार लिखते हैं, “तमाम नेताओं के ड्राइवर हवाई अड्डे पर मौजूद थे। अनेक वीआईपी के भी ड्राइवर थे। उनमें से एक ने गामा को पहचाना और प्रधानमंत्री के आगे कर दिया। गर्मजोशी और मिलनसार स्वभाव के चंद्रशेखर ने कहा,’कैसे हो गामा? काफी दिनों के बाद देखा, अच्छा लगा। आओ, यहां आओ।’ अति प्रसन्न गामा के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे। प्रधानमंत्री ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और फोटोग्राफर से फोटो खींचने को कहा। चंद्रशेखर को प्रोटोकॉल की कोई परवाह नहीं थी। यह चंद्रशेखर का अपना तरीका था।”

ये गामा कौन है?

गामा, शरद पवार के ड्राइवर का नाम है, जिसने उनके साथ साल 1967 में काम करना शुरू किया था। पवार लिखते हैं, “वह गामा नाम का ड्राइवर पर लिए एक ड्राइवर से कहीं ज्यादा था। उसने कभी भी अपने पेशे से संबंधित सीमाओं को नहीं लांघा। चूंकि लम्बे वर्षों से वह मेरे ड्राइवर के रूप में कार्य कर रहा था इसलिए मेरे अधिकांश मित्र व साथी उससे भली प्रकार परिचित थे।”

शरद पवार के फैमिली फ्रेंड थे चंद्रशेखर

शरद पवार बताते हैं, “जब भी भारत का कोई प्रधानमंत्री (स्त्री/पुरुष) मुंबई आता तो वह मालावार हिल्स स्थित गवर्नर के निवास स्थान राजभवन में रुकता। लेकिन मैं जब भी महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री रहा तो, चंद्रशेखर हमेशा हमारे सरकारी आवासीय बंगले ‘वर्षा’ में ही रुकते थे।”

चंद्रशेखर, शरद पवार के फैमिली फ्रेंड थे। वह चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनने की बधाई देने अपने पूरे परिवार (पत्नी प्रतिभा, बेटी सुप्रिया और होने वाले दामाद सदानंद सुले) के साथ दिल्ली गए थे। पवार यह भी बताते हैं कि चंद्रशेखर, सुप्रिया को तब से बहुत दुलार करते थे, जब वह बहुत छोटी थी।

9 नवम्बर, 1990 को शपथ ग्रहण समारोह की पूर्व संध्या जब शरद पवार का परिवार और चंद्रशेखर की मुलाकात हुई तो सुप्रिया ने उनसे पूछा ‘अंकल, क्या आप शपथग्रहण समारोह के बाद हम लोगों के साथ लंच करेंगे?’

चंद्रशेखर ने सुप्रिया के इस सीधे और भोले प्रश्न उत्तर भी एक दम सीधा और सरल ही दिया। उन्होंने पीठ थपथपाकर कहा, ‘हाँ, क्यों नहीं? मैं कल आऊंगा।’ प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद वह तुरंत कार से महाराष्ट्र सदन पवार फैमिली के साथ लंच करने पहुंच गए।