सन् 1957 में दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने पद छोड़ने का मन बना लिया था। उन्होंने फरवरी 1958 में राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भी भेज दिया था। नेहरू के इस फैसले से हंगामा मच गया था। विदेश तक से नेहरू के लिए संदेश आने लगे थे। यह दावा है कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर का।

कांग्रेस नेता ने यह बात पांच साल पहले Kerala Literature Festival 2019 के मंच से कही थी। कार्यक्रम का वीडियो शशि थरूर के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर 26 जनवरी, 2019 को अपलोड किया गया था। वीडियो में थरूर, नेहरू की राजनीति और विरासत पर बात करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस नेता ने नेहरू पर ‘Nehru: The Invention Of India’ नाम से एक किताब भी लिखी है।

क्या है पूरा किस्सा?

स्वतंत्रता सेनानी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कार्यकाल 15 अगस्त, 1947 को ही शुरू हो गया था। हालांकि वह चुनाव के माध्यम से साल 1952 (भारत का पहला आम चुनाव) में निर्वाचित हुए। दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ, उसमें भी कांग्रेस को बहुमत मिला और नेहरू ही प्रधानमंत्री बने।

शशि थरूर बताते हैं कि दूसरी बार प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद नेहरू को लगा कि उन्होंने पर्याप्त वक्त तक देश को नेतृत्व दे दिया। अब क‍िसी और को मौका म‍िलना चाह‍िए। उन्‍होंने फरवरी 1958 में अपना इस्तीफा राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भेज दिया और इसकी घोषणा भी कर दी थी।

थरूर के मुताबिक, नेहरू का प्लान था कि वह इस्तीफा देने के बाद छह माह हिमालय में बिताएंगे। उन्हें हिमालय बहुत पसंद था। वह हिमालय में हाईकिंग करने वाले थे, लेकिन नेहरू के इस्तीफा देने की बात फैलते ही लोग सड़कों पर उतर गए। कांग्रेस कार्य समिति ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि नेहरू इस्तीफा नहीं दे सकते। अमेरिका के राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड आइज़नहावर और रूस के प्रीमियर निकिता ख़्रुश्चेव ने उनसे पद पर बने रहने की अपील की। देश भर से नेहरू के लिए टेलीग्राम आने लगे। नेहरू पर इतना दबाव बना दिया कि उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेना पड़ गया और छह महीने की अपनी छुट्टी दो सप्ताह करनी पड़ी।

विदेशी इतिहासकार भी करती हैं नेहरू के राजनीति से संन्यास लेने का जिक्र

इतिहासकार टेलर सी. शेरमन ने जवाहरलाल नेहरू पर ‘Nehru’s India: A History in Seven Myths’ नाम से किताब लिखी है। वर्तमान में वह London School of Economics and Political Science में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और इतिहास पढ़ाती हैं।

फरवरी 2023 में हैदराबाद विश्वविद्यालय में चर्चा के दौरान शेरमन ने कहा था, “1958 में नेहरू ने राजनीति से संन्यास लेने के लिए कांग्रेस पार्टी से अनुमति मांगी थी। लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था। वह पार्टी के निर्विवाद नेता थे।”

वरिष्ठ पत्रकार और भारत के प्रधानमंत्रियों पर किताब लिखने वाले रशीद किदवई ने फ्रंटलाइन के लिए लिखे एक आर्टिकल में बताया है कि 1958 में नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से कहा कि वह किताबों और दोस्तों के बीच एक शांत जीवन जीने और देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा पर जाने के लिए राजनीति के दबाव से मुक्ति चाहते हैं। इसकी जानकरी मिलते ही पार्टी ने उन पर यह विचार छोड़ने का दबाव डाला।