दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) का नाम देश के दिग्गज वकीलों में शुमार है। हालांकि एक वक्त था जब दवे वकील नहीं बनना चाहते थे। उनके पिता चाहते थे कि वे सिविल सर्विसेज ज्वाइन करे। अहमदाबाद में एक कोचिंग में दाखिला भी ले लिया था। दुष्यंत दवे एक इंटरव्यू में बताते हैं कि मेरे पिता रिटायरमेंट के बाद बड़ौदा चले गए। उस वक्त उन्हें 1200 रुपए पेंशन मिला करती थी। उनकी दिली इच्छा थी कि मैं सिविल सर्विस जॉइन करूं। कोचिंग भी शुरू कर दी थी।

द लल्लनटॉप को दिये इंटरव्यू में दुष्यंत दवे कहते हैं कि उन दिनों जस्टिस देसाई हमारे पड़ोसी थे और मेरे बहुत करीब थे। तब ऐसी मान्यता थी कि वकालत के बाद कम से कम 10 साल तो अच्छी कमाई नहीं होगी। देसाई साहब ने मेरे पिता को बोला कि यह बच्चा वकालत करे तो पहले साल से ही कमाई करेगा। इस तरह मैं वकालत के पेशे में आया। कॉमर्स में ग्रेएजुकेशन के बाद लॉ की पढ़ाई की और फिर वकालत शुरू की। तब 250 रुपये मिला करते थे।

कॉलेज से बंक मार क्या करते थे दवे?

इसी इंटरव्यू में दवे अपने कॉलेज के दिनों का किस्सा भी शेयर करते हैं। कहते हैं कि मैं कुल 8 दिन भी कॉलेज नहीं गया होउंगा। कॉलेज जाने का मन ही नहीं करता था। घर से कॉलेज के लिए निकलता था, लेकिन कैंटीन में बैठा रहता था और दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाता था या तो नॉवेल पढ़ता रहता था। क्लब में जाता था। सुबह से शाम तक बैडमिंटन, टेबल टेनिस और ब्रिज खेला करता था। उन दिनों आकाशवाणी पर 15-15 मिनट के दो न्यूज़ बुलेटिन आते थे। मेरे पिताजी नियम से दोनों बुलेटिन सुना करते थे और मैं भी उनके साथ सुनता था। लतिका रॉय, सुरजीत सिंह जैसे ब्रॉडकास्टर्स का उच्चारण इतना गजब था कि सुनकर आनंद आ जाता था।

चपरासी के साथ शेयर करते थे कमरा

दवे कहते हैं वकालत के शुरुआती दिन बहुत मुश्किल भरे थे। मेरे पिता जब जज तो एक चपरासी को नियुक्त किया किया था। उनका नाम जिल्लू सिंह था। मैंने वकालत शुरू की तो उनके साथ अपार्टमेंट शेयर किया करता था। 200 रुपये किराया था। 100 वह देते थे और 100 रुपये मैं। जिल्लू, शाम का खाना बनाते थे और वह मेरे परिवार के सदस्य की तरह थे। पिछले साल गुजर गए।

जब IB के हत्थे चढ़ गए

दुष्यंत दवे कहते हैं कि मेरे पिताजी इंदिरा गांधी के बहुत बड़े भक्त थे। जब इमरजेंसी लगी तो मैं अपने पिता के खिलाफ हो गया। मेरे पिता इमरजेंसी को सपोर्ट कर रहे। उस वक्त मैं इमरजेंसी के खिलाफ लंदन से मैटेरियल मंगवाया करता था। एक बार ऐसा हुआ कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के गुजरात चीफ ने मुझे अपने ऑफिस बुलवा लिया। मुझे चेतावनी देते हुए कहा कि आप दवे साहब के बेटे हैं। मैं किसी से कहूंगा नहीं, लेकिन जो काम कर रहे हैं बंद कर दीजिए। यह देश के खिलाफ है।

दिन में 10-12 घंटे सुनते हैं संगीत

दुष्यंत दवे को संगीत में खासी दिलचस्पी है। कहते हैं कि मैं दिन में कम से कम 10-12 घंटे तो संगीत सुन ही लेता हूं। खासकर इंडियन क्लासिकल म्यूजिक मुझे बहुत पसंद है। कौशिकी चटर्जी से लेकर राशिद खान साहब, शुभा मुद्गल, सितार वादक शाहिद परवेज जैसे लोग मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। मैं अहमदाबाद में अक्सर प्रोग्राम भी करता हूं और अपने दोस्तों को बुलाता हूं। दवे कहते हैं कि मुझे हिंदी गानों का भी बहुत शौक है और कम से कम 2-3 हजार गानों की राइमिंग कर सकता हूं।

बकौल दवे, जब मेरे वकील मित्र अपने क्लाइंट के साथ मुझे ब्रीफ करने आते हैं तो बैकग्राउंड में क्लासिकल म्यूजिक चलता रहता है। अनिरुद्ध बहल ने अपनी किताब में लिखा भी है कि मैं जब भी दवे साहब से मिलने गया, वह हमेशा क्लासिकल म्यूजिक सुनते मिले।

80 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे

दुष्यंत दवे कहते हैं कि यह सरकार सही आंकड़े नहीं देती है। देश की आबादी तकरीबन 140 करोड़ है। अगर सरकार सही आंकड़े जारी करे तो इस वक्त देश में 80 से 90 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। आजादी के 70 साल बाद भी ऐसी स्थिति है, ऐसे में जीडीपी 7 फ़ीसदी की दर से बढ़ जाए तो क्या फर्क पड़ता है? हमारे जैसे 2-5 प्रतिशत लोगों के लिए ठीक है, लेकिन देश के लिए ठीक नहीं है।