31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की उन्हीं के अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इंदिरा की हत्या के बाद दिल्ली समेत पूरे देश में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए। जगह-जगह मारकाट शुरू हो गई। सिखों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाने लगा। उस सिख विरोधी दंगे में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर का एक करीबी दोस्त भी फंस गया। चंद्रशेखर ने खुद तत्कालीन गृहमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से उस परिवार को बचाने की गुहार लगाई थी, लेकिन राव ने साफ इनकार कर दिया था।
वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी पेंगुइन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘A Rude Life: The Memoir’ में लिखते हैं कि नीरज शेखर के सिख दोस्त ने उनसे फोन पर कहा कि उसकी और उसके परिवार की जान खतरे में है। नीरज ने उस दोस्त को परिवार समेत अपने घर पर आने को कह दिया और फौरन अपने पिता चंद्रशेखर को पूरी बात बताई।
नरसिम्हा राव ने साफ मना कर दिया था
सांघवी लिखते हैं कि इसके बाद चंद्रशेखर ने तुरंत नरसिम्हा राव को फोन मिला दिया और कहा कि उनके बेटे का सिख दोस्त जिस इलाके में है फौरन पुलिस सुरक्षा की व्यवस्था करवा दें और उसके परिवार को सुरक्षित उनके (चंद्रशेखर) के घर लाने के लिए पुलिस एस्कॉर्ट मुहैया करा दें। लेकिन राव ने साफ-साफ इनकार कर दिया। सांघवी लिखते हैं कि चंद्रशेखर ने मुझे खुद पूरा वाकया सुनाया था।
बकौल चंद्रशेखर जब मैंने पीवी नरसिम्हा राव से मदद मांगी तो उन्होंने कहा, ”नहीं… नहीं चंद्रशेखर जी, यह बहुत खतरनाक है। अपने बेटे को कहिए कि वह अपने यहां किसी भी सिख को पनाह न दे। यह बहुत रिस्क वाला मामला है”।
भीड़ ने घेर लिया था पासवान का घर
1984 के सिख विरोधी दंगों में बिहार के दिवंगत कद्दावर नेता रामविलास पासवान की भी जान जाते-जाते बची थी। भीड़ ने पासवान के घर में लगा दी थी और वह बहुत मुश्किल से जान बचाकर निकल पाए थे। पेंगुइन से प्रकाशित पासवान की जीवनी ‘राम विलास पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष’ में प्रदीप श्रीवास्तव लिखते हैं कि उस दिन रामविलास पासवान अपने ड्रॉइंग रूम में बैठे थे। उनके साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और कुछ अन्य नेता भी मौजूद थे।
दीवार फांदकर बचाई थी जान
अचानक एक सिख बदहवास हालत में पासवान के घर में घुसा आया। हिंसक भीड़ उसका पीछा कर रही थी। पासवान ने बिना देर किये उस सिख ड्राइवर को अपने घर में पनाह दे दी। चंद मिनट के अंदर पासवान के घर के बाहर सैकड़ों की भीड़ जमा हो गई और उस सरदार को बाहर निकालने की मांग करने लगी। तब पासवान को सिर्फ एक सुरक्षा गार्ड मिला था। उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए उसने हवाई फायर की, लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं पड़ा।
थोड़ी ही देर में भीड़ ने पासवान के घर में आग लगा दी। रामविलास पासवान अपने डेढ़ साल के बेटे चिराग को कपड़े में लपेटे कर्पूरी ठाकुर, परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों के साथ किसी तरह पीछे के रास्ते दीवार फांदकर बाहर कूदे और जान बचाई थी। (विस्तार से पढ़ें पासवान की आपबीती)