17 अगस्त 1909 को आज ही के दिन स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) को फांसी दी गई थी। महज 24 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले मदन लाल ढींगरा ने जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत शुरू की तो उनके परिवार ने ही उनका बहिष्कार कर दिया था। संबंध तोड़ लिये थे। यहां तक कि फांसी के बाद उनका शव लेने से भी इनकार कर दिया था। बृहस्पतिवार को ढींगरा की 114वीं पुण्यतिथि पर अमृतसर के गोल बाग इलाके में उनके नाम पर एक स्मारक का उद्घाटन किया गया।

कौन थे मदन लाल ढींगरा?

18 सितंबर 1883 को अमृतसर में जन्मे मदन लाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) के पिता दित्ता मल ढींगरा पेशे से डॉक्टर थे और अमृतसर में मेडिकल ऑफिसर थे। वह ब्रिटिश हुकूमत के वफादार माने जाते थे। साल 1904 में अमृतसर में स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद मदनलाल ढींगरा को मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के लिए लाहौर भेज दिया गया। यहीं वह स्वतंत्रता आंदोलन के संपर्क में आए और राष्ट्रप्रेम की भावना जगी।

माफी नहीं मांगी तो कॉलेज ने निकाल दिया था

लाहौर में पढ़ाई के दौरान मदनलाल ढींगरा ने ब्रिटेन से मंगाए गए कपड़ों के खिलाफ बगावत कर दी। कॉलेज प्रबंधन ने उनपर माफी मांगने का दबाव डाला लेकिन माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।

कॉलेज से निकाले जाने के बाद मदन लाल ढींगरा वापस घर नहीं लौटे बल्कि शिमला और मुंबई में छोटी-मोटी नौकरी शुरू कर दी। साल 1906 में उनके परिवार ने उन्हें लंदन पढ़ने के लिए मना लिया। ढींगरा का दाखिला यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कराया गया।

लंदन में सावरकर से हुई मुलाकात

लंदन में पढ़ाई के दौरान ही मदनलाल ढींगरा विनायक दमोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए, जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अभियान चला रहे थे। साल भर पहले ही वर्मा ने लंदन में ”इंडिया हाउस” की नींव रखी थी, जो क्रांतिकारियों का गढ़ बन चुका था। ढीगरा अक्सर इंडिया हाउस जाने लगे और वहां होने वाली मीटिंग में हिस्सा लेने लगे। कुछ वक्त बाद ही मदन लाल ढींगरा, सावरकर और उनके भाई द्वारा स्थापित ”अभिनव भारत मंडल” के सदस्य बन गए। इसी दौरान ढींगरा के पिता को उनके बारे में पता लगा और अखबार में विज्ञापन देकर उनसे संबंध तोड़ लिए।

5 गोली और ढेर हो गया कर्जन

1 जुलाई 1909 को लंदन के इंपीरियल इंस्टिट्यूट में इंडियन नेशनल एसोसिएशन की तरफ से ‘एट होम’ फंक्शन का आयोजन किया गया। इस फंक्शन में ब्रिटिश अफसर विलियम हट कर्जन वायली (William Hutt Curzon Wyllie) भी अपनी पत्नी के साथ शामिल हुआ। कर्जन उस वक्त ढींगरा और उनके साथियों के बारे में गुपचुप तरीके से सूचना इकट्ठा कर रहा था।

जब कर्जन फंक्शन से जाने लगा तो ढींगरा ने उस पर पांच गोलियां चलाईं, जिसमें से 4 गोली सीधे निशाने पर लगी। छठवीं और सातवीं गोली पारसी डॉक्टर कारवाश ललकाका को लगी, जो कर्जन को बचाने की कोशिश कर रहे थे। दोनों मौके पर ही ढेर हो गए। ढींगरा को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया।

67 साल बाद भारत आया था शव का अवशेष

करीब डेढ़ महीने के अंदर ही मदन लाल ढींगरा को दोषी करार दे दिया गया और 17 अगस्त 1909 को पेंटोविल जेल (Pentoville Prison) में उन्हें फांसी दे दी गई। ढींगरा के शव को लंदन में ही दफना दिया गया था। 1976 में ढींगरा के शव के अवशेष को भारत लाया गया और अमृतसर के मल्ल मंडी इलाके में अंतिम संस्कार किया गया था।