Constitution Day Of India 2023: डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता कहा जाता है। वह देश का संविधान लिखने के लिए बनाई गई प्रख्यात ‘ड्राफ्टिंग कमेटी’ के अध्यक्ष थे। इस पद रहते हुए अंबेडकर की वह छवि बनी, जिसका झलक आज भी उनकी चर्चित तस्वीरों और प्रतिमाओं में नजर आती है- कसा हुआ सूट, टाई, गोल चश्मा, करीने से काढ़े गए बाल और हाथ में भारत के संविधान की प्रति।
हालांकि भारत की अब तक की यात्रा में कई ऐसे मौके भी आए जब संविधान निर्माण में डॉ. अंबेडकर की भूमिका को महत्वपूर्ण मानने से इनकार कर दिया गया। ड्राफ्टिंग कमेटी के प्रमुख के रूप में उनकी नियुक्ति की वजह से उन्हें मनुस्मृति के लेखक के नाम की नकल करते हुए ‘मॉडर्न मनु’ की उपाधि भी दी जाने लगी थी।
मॉडर्न मनु से फर्जी मनु तक
पार्लियामेंट की डिजिटल लाइब्रेरी पर ‘EMINENT PARLIAMENTARIANS MONOGRAPH SERIES’ नाम से एक बुकलेट उपलब्ध है। इस बुकलेट में स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व कांग्रेस नेता और स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर एन.जी. रंगा का ‘Dr. B.R. Ambedkar – As I saw him’ शीर्षक से एक लेख है। इस लेख में प्रोफेसर रंगा लिखते हैं, “…समाज के एक वर्ग को अधिकारों से अमानवीय रूप से वंचित करने के प्रतिशोध में डॉ. अंबेडकर आधुनिक युग के नए मनु के रूप में उभरे।”
द इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित अपने एक लेख में इतिहासकार रामचंद्र गुहा बताते हैं कि “फ्री इंडिया (पत्रिका) के एक निबंध में अंबेडकर की ‘आधुनिक भारत के मनु’ के रूप में प्रशंसा की गई थी।” यह एक दिलचस्प विडंबना थी क्योंकि 1927 में अंबेडकर ने ही महाड़ सत्याग्रह के दौरान मनुस्मृति की प्रतियों की होली जलाई थी। वह मनु को जाति व्यवस्था का जनक मानते थे।
हालांकि कई लोग अंबेडकर को मनु से तुलना करने लायक नहीं मानते थे। गुहा के मुताबिक, फ्री इंडिया का लेख एक हिंदुत्ववादी को कतइ रास नहीं आया था। 11 जनवरी, 1950 के अंक में ऑर्गेनाइज़र ने केडीपी शास्त्री का एक लंबा पत्र छापा, जिसमें शिकायत की गई थी कि यह एक छोटे व्यक्ति को बड़ा बताने का उदाहरण है। उन्होंने लिखा था, “डॉ. अंबेडकर को विद्वान और देवतुल्य मनु के समकक्ष रखना उपहास की हद है…”
अंबेडकर को मनु से जोड़ने और खारिज करने का सिलसिला आगे भी चलता रहा। भाजपा नेता, पू्र्व सांसद और पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने अपनी किताब “Worshipping False Gods: Ambedkar and the Facts Which Have Been Erased” में अंबेडकर को इस आधार पर ‘फर्जी मनु’ लिखा है, क्योंकि वह मानते हैं कि संविधान निर्माण में अंबेडकर की कोई उल्लेखनीय भूमिका नहीं थी।

शौरी ने अंबेडकर को ‘संविधान निर्माता’ मानने से किया इनकार!
शौरी का तर्क है कि अंबेडकर उस पोजीशन पर थे ही नहीं कि संविधान निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकें। बकौल शौरी अंबेडकर उस ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे, जिस पर अलग-अलग विषयों पर बनाई गई उपसमितियों द्वारा तैयार किए गए अनुच्छेदों को अंतिम रूप देने के लिए ही जिम्मेदार थी और इन सारे सुझावों पर भी बाद में प्लेनरी सत्रों में विस्तार से चर्चा होती थी। इसके अलावा अंबेडकर कांग्रेस पार्टी के बाहर थे जबकि प्रत्येक अनुच्छेद के महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश पार्टी के भीतरी सदस्यों द्वारा तय किए जाते थे।
शौरी की आखिरी दलील यह है कि विभिन्न उप-समितियों, ड्राफ्टिंग कमेटी और प्लेनरी सत्रों के दौरान होने वाली चर्चा में अंबेडकर कई अवसरों पर अल्पमत में रहे इसलिए यह दावा निराधार हो जाता है कि उन्होंने ही संविधान का मसविदा लिखा होगा।
विदेशी विद्वान ने शौरी के आकलन को किया खारिज
भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र के प्रोफेसर क्रिस्तोफ जाफ्रलो मानते हैं कि शौरी का निष्कर्ष संविधान सभा में अंबेडकर की भूमिका को कम करके आंकता है। जाफ्रलो ने ‘Dr. Ambedkar and Untouchability – Analyzing and Fighting Caste’ नाम से एक किताब लिखी है, जिसका हिंदी अनुवाद राजकमल प्रकाशन ने छापा है।
जाफ्रलो अपनी किताब में लिखते हैं, “हमें ड्राफ्टिंग कमेटी की भूमिका का भी एक बार फिर आकलन करना चाहिए। यह कमेटी संविधान के प्रारम्भिक पाठों को लिखने के लिए जिम्मेदार नहीं थी बल्कि उसे यह जिम्मा सौंपा गया था कि वह विभिन्न समितियों द्वारा भेजे गए अनुच्छेदों के आधार पर संविधान का लिखित पाठ तैयार करे जिसे बाद में संविधान सभा के सामने पेश किया जाएगा। सभा के समक्ष कई मसविदे पढ़े गए और हर बार ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों-बहुधा उसके अध्यक्ष अंबेडकर ने ही चर्चा का संचालन और नेतृत्व किया था। अंबेडकर संविधान सभा के ऐसे मुट्ठी भर सदस्यों में से थे जो ड्राफ्टिंग कमेटी का सदस्य होने के साथ-साथ शेष 15 समितियों में से भी एक से अधिक समितियों के सदस्य थे। लिहाजा, वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों जैसे बहुत महत्त्वपूर्ण विषयों से सम्बन्धित अनुच्छेदों पर होने वाली बहसों पर भी नज़दीक से नज़र रख सकते थे। सबसे बढ़कर, ड्राफ्टिंग कमेटी अध्यक्ष होने के नाते विभिन्न समितियों की ओर से सारे प्रस्ताव उनके पास ही भेजे जाते थे और यह उनकी तथा ड्राफ्टिंग कमेटी के सचिव एस. एन. मुखर्जी की ज़िम्मेदारी थी वे इन अनुच्छेदों को फिर से सूत्रबद्ध करें। ऐसे बहुत सारे अनुच्छेदों को संविधान सभा के सामने पेश करने से पहले उनका स्पष्टीकरण भी आवश्यक था। ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों की बार-बार गैरहाजिरी की स्थायी समस्या के कारण ये सम्पादकीय जिम्मेदारियां भी मुख्य रूप से आंबेडकर के ही कंधों पर ही आ जाती थीं।”
ड्राफ्टिंग कमेटी के ही एक सदस्य ने बताई थी अंबेडकर की महत्ता
ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य टी.टी. कृष्णमाचारी ने नवंबर 1948 में संविधान सभा के सामने बताया था कि किस तरह अंबेडकर अकेले लगभग सात लोगों का काम कर रहे थे। कृष्णमाचारी कहते हैं, “सम्भवतः सदन इस बात से अवगत है कि आपने (ड्राफ्टिंग कमेटी में) जिन सात सदस्यों को नामांकित किया है उनमें से एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया है और उनकी जगह कोई अन्य सदस्य आ चुके हैं। एक सदस्य की इस बीच मृत्यु हो चुकी है और उनकी जगह कोई नए सदस्य नहीं आए हैं। एक सदस्य अमेरिका में थे और उनका स्थान नहीं भरा गया है। एक अन्य व्यक्ति सरकारी मामलों में उलझे हुए थे और वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर रहे थे। एक-दो व्यक्ति दिल्ली से बहुत दूर थे और सम्भवतः स्वास्थ्य की वजहों से कमेटी की कार्रवाइयों में हिस्सा नहीं ले पाए। सो कुल मिला कर यही हुआ है कि इस संविधान को लिखने का भार डॉ. अंबेडकर के ऊपर ही आ पड़ा है। मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि हम सबको उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को इतने सराहनीय ढंग से अंजाम दिया है।”