मई 1998 में पोखरण में किए गए परमाणु परीक्षण को भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा अक्सर अटल बिहारी वाजपेयी के ‘सशक्त’ नेतृत्व से जोड़ा जाता है। हालांकि एक वक्त ऐसा भी था जब खुद वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण का विरोध किया था। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में इस बात का खुलासा किया है।
जब वाजपेयी ने किया परमाणु परीक्षण का विरोध
यह साल 1979 की बात है। आपातकाल के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी सरकार का पतन हो गया था। वह खुद रायबरेली से अपना चुनाव हार गई थी। जेपी के मार्गदर्शन में बनी जनता पार्टी को सत्ता मिली थी।
देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री की भूमिका में थे और तभी उन्होंने परमाणु परीक्षण का विरोध किया था।
नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं, “मई 1998 में भारत ने पोखरण में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया, जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल का एक गौरव था। लेकिन 1979 में, जब वे मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री थे, तब परीक्षण का विरोध किया था।”
PM ने शीर्ष चार मंत्रियों के साथ की बैठक
अप्रैल 1979 में देसाई ने अपने शीर्ष चार मंत्रियों रक्षा मंत्री जगजीवन राम, वित्त मंत्री चरण सिंह, गृह मंत्री एच एम पटेल और वाजपेयी के साथ बैठक की। देसाई ने उन्हें बताया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल करने की कगार पर है। अब प्रधानमंत्री यह सलाह चाहते थे कि सरकार को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को देखते हुए क्या कदम उठाना चाहिए।
नीरजा चौधरी लिखती हैं, “ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी के अध्यक्ष के. सुब्रमण्यम द्वारा देसाई को सौंपी गई एक गुप्त रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री को चिंतित कर दिया था। सुब्रमण्यम ने कहा था कि पाकिस्तान ‘बम से महज एक कदम दूर है’। सीसीपीए की बैठक में मंत्रियों के अलावा केवल दो अधिकारी, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना और कैबिनेट सचिव निर्मल मुखर्जी मौजूद थे।”
नीरजा आगे लिखती हैं, “बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि भारत को अपने परमाणु प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए। लेकिन तब शीर्ष मंत्रियों में ही इसे लेकर सर्वसम्मति नहीं बन पायी। सुब्रमण्यम ने बाद में मुझे बताया कि मोरारजी और वाजपेयी आगे बढ़ने के विरोध में थे। जबकि एच. एम. पटेल, जगजीवन राम और चरण सिंह इसके पक्ष में थे।”
वाजपेयी ने क्यों किया था परमाणु परीक्षण का विरोध?
सीसीपीए की बैठक के एक दिन बाद अचानक सुब्रमण्यम और वाजपेयी आमने-सामने पड़ गए। किताब से पता चलता है कि सुब्रमण्यम ने वाजपेयी से पूछा था, आप इसका विरोध कैसे कर सकते हैं? आप हमेशा से इसके पक्ष में रहे हैं।
इस पर वाजपेयी ने रक्षात्मक लहजे में जवाब दिया, ‘नहीं, नहीं, फिलहाल सबसे जरूरी काम पाकिस्तान को बम बनाने से रोकना है। हमें उन्हें उकसाना नहीं चाहिए।” हालांकि वाजपेयी जो आशंका देसाई सरकार में जता रहे थे, वह उनकी सरकार में हकीकत बन गया।
जब भारत के जवाब में पाकिस्तान ने किया परमाणु परीक्षण!
अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। हालांकि पहला और दूसरा कार्यकाल क्रमश: 13 दिन और 13 महीने का ही रहा। तीसरे कार्यकाल में वह सन् 1994 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे। अपने इस आखिरी कार्यकाल में वाजपेयी को स्थिर सरकार चलाने का मौका मिला, जिसके दम पर उन्होंने कई बड़े फैसले लिए। एक फैसला ऐसा है जिसकी आज भी बहुत चर्चा होती है, वह है पोखरण में परमाणु परीक्षण का फैसला।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने मई 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। ये इंदिरा गांधी सरकार द्वारा साल 1974 में किए परीक्षण के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था। आलोचकों ने वाजपेयी सरकार में हुए परीक्षण की जरूरत पर कई सवाल उठाए थे क्योंकि तब भारत के जवाब में पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण (मई 1998 में ही) किया था।
इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक पाबंदी भी लगा दी थी। हालांकि वाजपेयी सरकार की ही कूटनीति कौशल की वजह से साल 2001 तक ज्यादातर देशों ने पाबंदी हटा ली थी।