शानदार अभिनय और पटकथा लेखन से सिनेमा इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाने वाले कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। वह हिंदी और उर्दू के 300 से अधिक फिल्मों का हिस्सा रहे।

कादर खान पर चर्चा करते हुए उनके अभिनय का तो जिक्र आता है। लेकिन अक्सर उनके डायलॉग राइटिंग को भुला दिया जाता है। उन्होंने अमर अकबर एंथोनी, मुकद्दर का सिकंदर, याराना, रोटी, खेल खेल में, रफू चक्कर, लावारिस, परवरिश, नमक हलाल, और यहां तक कि कॉमेडी ब्लॉकबस्टर कुली नंबर-1 जैसी फिल्मों के लिए भी संवाद लिखे।

1970 के दशक के मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा में डायलॉग की वह विशिष्ट शैली कादर खान की देन थी। उदाहरण के लिए, मुकद्दर का सिकंदर का यह संवाद – ‘जिंदगी में लोग मोहब्बत के सहारे जीते हैं, मैं आपकी नफरत के सहारे जीऊंगा,’ या राजेश खन्ना अभिनीत रोटी का यह संवाद – ‘कसूर मेरा नहीं रोटी की कसम, भूख की दुनिया में ईमान बदल जाते हैं।’

ये ऐसे डॉयलॉग्स थे कि जिन पर दर्शकों का ‘वाह’ निकलना स्वाभाविक था। हिंदी फिल्मों में संवाद की इस शैली का अधिकांश श्रेय कादर खान को दिया जा सकता है क्योंकि वह इस युग के अधिकांश समय में यही कर रहे थे।

‘हिंदी फिल्मों में डायलॉग लिखने का काम गलती से शुरू किया था’

साल 2012 में Patcy N को दिए एक इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि वह गलती से हिंदी फिल्मों के लिए संवाद लिखने लगे। यह 1970 के दशक की शुरुआत की बात है। तब कादर नाटक लिखा करते थे और उसमें एक्ट भी किया करते थे। ऐसी ही एक प्रतियोगिता जीतने के बाद, मेहमानों में से एक ने उन्हें रणधीर कपूर और जया भादुड़ी अभिनीत 1972 की फिल्म ‘जवानी दीवानी’ के लिए संवाद लिखने का ऑफर दिया।

कादर खान बताते हैं, “मैंने उनसे कहा कि मुझे नहीं पता कि फिल्म के डायलॉग कैसे लिखे जाते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि जैसे मैं लिखता हूं वैसे ही लिखूं और इस तरह फिल्मों में मेरा लेखन करियर शुरू हुआ। मुझे उस काम के लिए 1500 रुपये मिले थे।”

इसके तुरंत बाद कादर खान को एक और फिल्म में डायलॉग लिखने का काम मिला गया। जहां पहली फिल्म के लिए उन्हें 1500 रुपये मिले थे। दूसरी फिल्म के लिए उन्हें 21,000 रुपये मिले। फिल्म का नाम था ‘खेल-खेल में’, लीड रोल ऋषि कपूर और नीतू सिंह ने निभाया था। यह फिल्म भी हिट रही। इसके बाद कादर खान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मनमोहन देसाई से मुलाकात ने सब बदल दिया

मनमोहन देसाई से मुलाकात ने कादर खान की जिंदगी को बड़े पैमाने पर बदल दिया। देसाई तब मसाला बॉलीवुड फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। उनकी फिल्मों को दर्शक खूब पसंद करते थे।

देसाई उन दिनों राजेश खन्ना को लेकर रोटी फिल्म बना रहे थे। फिल्मफेयर के साथ अपने आखिरी इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि रोटी के लिए उन्हें 1,21,000 रुपये की रकम मिली थी। दरअसल, देसाई ने घोषणा की थी, वह अपने लेखक को 1,20,000 रुपये देंगे।

एक इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि फिल्म में काम देने से पहले देसाई ने उन्हें कुछ सैंपल लिखने को कहा था। अगर सैंपल डायलॉग अच्छे होते तो उन्हें काम मिलता। जब कादर खान अपने डायलॉग लेकर उनके दरवाजे पर पहुंचे, तो देसाई बहुत उत्सुक नहीं थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने संवाद सुने, वह अपनी खुशी नहीं रोक सके।

कादर खान के मुताबिक, “देसाई भागकर अपने कमरे में गए और एक ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन सेट लाए और उन्हें मौके पर ही उपहार में दे दिया। इसके साथ ही उन्होंने एक सोने का ब्रेसलेट भी गिफ्ट किया। साथ ही 20,000 रुपये नकद एडवांस दिए।” रोटी फिल्म के बाद मनमोहन देसाई ने कादर खान को अपनी कई फिल्मों में काम किया।

कॉमेडी फिल्मों में कैसे आए?

भारी-भरकम लेकिन क्लासिक संवाद लिखने के अलावा कादर खान अक्सर स्क्रीन पर भी दिखाई देते थे लेकिन केवल खलनायक भूमिकाओं में। लेकिन जीतेंद्र और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म हिम्मतवाला से उन्होंने पहली बार कॉमेडी में कदम रखा। दर्शकों ने उन्हें खूब पसंद किया। लेखक कादर खान को अब एक अभिनेता जितनी ही सराहना मिलने लगी थी।

कादर खान की कॉमेडी फिल्में दर्शकों को खूब पसंद आने लगीं। उनका यह सफर 1990 के दशक के अंत से 2000 के दशक की शुरुआत तक जारी रहा, जहां उन्होंने अक्सर डेविड धवन और गोविंदा के साथ काम किया। कादर ने 2012 में रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें डेविड के साथ काम करने में मज़ा आया, लेकिन उनकी फिल्मों में केवल अपने और गोविंदा के लिए संवाद लिखा करते थे।

डेविड धवन के साथ काम करने के अनुभव को बताते हुए कादर खान ने कहा था, “उनकी कहानियां पूरी तरह से अलग थीं, ज्यादातर फूहड़ कॉमेडी। मैंने गोविंदा के साथ सभी ‘नंबर 1’ सीरीज कीं। मैं उनकी फिल्मों में सिर्फ अभिनय कर रहा था। संवाद नहीं लिखे। संवाद रूमी जाफ़री लिख रहे थे। मैंने सिर्फ अपने और गोविंदा के डायलॉग लिखे, लेकिन पूरी स्क्रिप्ट लिखने और सिर्फ दो किरदारों के डायलॉग लिखने में अंतर है। फिर भी, मैंने डेविड और गोविंदा के साथ काम करना जारी रखा।”

काबुल टू मुंबई: जिंदगी का सफर

कादर खान का जन्म पश्तून परिवार में हुआ था। पिता का नाम अब्दुल रहमान खान और मां का नाम इकबाल बेगम था। कादर खान से पहले उनके तीन भाई पैदा हुए। लेकिन तीनों आठ वर्ष के होकर मर गए। द बॉलीवुड डायनेस्टी को दिए इंटरव्यू में कादर खान ने काबुल से मुंबई शहर तक की अपनी यात्रा को याद किया था, “जब मैं पैदा हुआ तो मेरी मां ने कहा

 “यह 1942 के आसपास की बात है। यह मेरे बच्चों के लिए सही जगह नहीं है और मैं यहां से जाना चाहती हूं। मुझे यहां से ले चलो। लेकिन हम कहां जाते। हम गरीबी से घिरे हुए थे। हमारे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। लेकिन मां जिद पर अड़ गई थीं। फिर पिता ने हमें एक सैन्य काफिले में बिठाया और हम भारत (मुंबई) आ गये। शायद मेरी किस्मत मुझे यहां ले आई।”

मुंबई पहुंचने के बाद कादर खान का परिवार एक झुग्गी बस्ती में रुका। कादर खान कमाठीपुरा की झुग्गियों में पले-बढ़े। उन्होंने वहीं एक नगरपालिका स्कूल से पढ़ाई की।

कादर खान ने कमाठीपुरा की एक घटना याद करते हुए कहा था, “एक बार, कुछ लड़कों ने मुझसे पूछा कि, तुम पढ़ाई क्यों कर रहे हो, तुम्हारी मां ने कहा है इसलिए? चलो किसी कारखाने में काम करें, उससे कु पैसे मिलेंगे। मुझे यह विचार पसंद आया इसलिए मैंने अपना बैग रखा और उनके साथ जाने लगा। हमारा घर तीसरी मंजिल पर था। जैसे ही मैं नीचे उतरा, मेरी मां ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।”

खान आगे बताते हैं, “मां ने कहा, मुझे पता है तुम कहां जा रहे हो। तुम रोज का 4-5 रुपये कमाने के लिए उनके साथ जा रहे हो। लेकिन इन 4-5 रुपयों से न तो हमारे घर में ख़ुशी आएगी और न ही खाना। अगर तुम सच में मुसीबत से लड़ना चाहते हैं, परिवार की मदद करना चाहते हो, तो पढ़ाई करो। मैं यहां परेशानियों से लड़ने के लिए हूं।” कादर खान का निधन कनाडा में 31 दिसंबर, 2018 को हुआ था।