India Pakistan 1971 War: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की नजदीकियां अमेरिका प्रशासन से बढ़ती नजर आ रही हैं। 7- 10 मई के बीच भारत अमेरिका के बीच टकराव हुआ था, उसके कुछ दिनों बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मुनीर के साथ लंच किया था और अब खबरें हैं कि जल्द ही वे फिर ट्रंप से मुलाकात कर सकते हैं। यह बताता है कि किस तरह से भारत के खिलाफ टकराव के दौरान अमेरिका पाकिस्तान को समर्थन देता रहा है, जो कि 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध की याद भी दिलाता है।
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर उनके सलाहकार हेनरी किसिंजर जैसे उच्चतम स्तर के अधिकारियों ने जॉर्डन और ईरान के जरिए पाकिस्तान को सैन्य सहायता पहुंचाने के भरपूर प्रयास किए थे। आज इस बात को समझेंगे कि कैसे 1971 के युद्ध के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को आश्वस्त किया था कि यदि भारत तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध कोई सैन्य कार्रवाई करता है तो वह उसके साथ खड़ा रहेगा। इतना ही अमेरिका ने पाकिस्तान में सैन्य एयरबेस बनाने के प्रस्ताव पर भी विचार करना शुरू कर दिया था।
अमेरिका के खुफिया दस्तावेज में दर्ज अहम बातचीत
अमेरिकी विदेश विभाग के अभिलेखागार में 29 मार्च 1972 को एक बातचीत का ज्ञापन दर्ज है। इसमें निक्सन, किसिंजर और पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के महासचिव अजीज अहमद तथा कई अन्य लोगों की मीटिंग शामिल है। किसिंजर ने बताया कि कैसे हमने दिसंबर (1971) में एक साथ दुखद दिन देखे थे। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को अमेरिका का सद्भावनापूर्ण समर्थन प्राप्त है। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान के लिए अगले छह महीने पार करना महत्वपूर्ण है, और उन्हें लगा कि यह अकल्पनीय है कि मॉस्को में आगामी शिखर बैठक से पहले, या उसके बाद भी कुछ समय तक भारत का कोई हमला हो।
सोवियत संघ की वजह से आक्रामक हो गया अमेरिका
इस बातचीत के दस्तावेज में कहा गया, “डॉ किसिंजर ने आगे कहा कि राष्ट्रपति नीति बनाते हैं, और हम पाकिस्तान को निराश नहीं करेंगे। अगर कोई और हमला हुआ, तो हम हिंसक प्रतिक्रिया देंगे। उन्होंने कहा कि हमने भारतीय राजदूत से कहा है कि हम पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता तब तक नहीं रोक सकते जब तक भारत सोवियत सैन्य सहायता छोड़ने को तैयार न हो। हमने कहा है कि हम 87 मिलियन डॉलर की रोकी गई सहायता को बहाल नहीं करेंगे।
परमाणु हमले के ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा भारत
किसिंजर ने कहा, “राष्ट्रपति के मन में पाकिस्तान के लिए बहुत ही गर्मजोशी है। अमेरिका यह नहीं मानता कि किसी एक देश को अपने पड़ोसियों पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार होना चाहिए।” दस्तावेजों के मुताबिक, अज़ीज़ अहमद ने चिंता व्यक्त की कि भारत ने पश्चिमी पाकिस्तानी सीमा पर अपनी तीन सैन्य टुकड़ियां तैनात कर दी हैं। उन्होंने कहा, “जनरल मानेकशॉ मास्को गए हैं, संभवतः भारत के युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई के लिए उपकरण लेने। भारत अपनी योजनाओं के अनुसार आगे बढ़ रहा है, या तो बातचीत के लिए पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है या फिर किसी और गंभीर हमले के लिए।”
पाकिस्तान को सता रहा था POK पर हमले का डर
अजीज खान ने यह भी कहा, “कुछ लोगों का मानना था कि भारत आज़ाद कश्मीर पर कब्ज़ा कर लेगा। हालांकि, चीनियों को लगा कि राष्ट्रपति निक्सन की मास्को यात्रा के बाद ही आज़ाद कश्मीर पर हमला संभव होगा।”
17 मार्च 1971 को अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम पी. रोजर्स ने राष्ट्रपति निक्सन को एक ज्ञापन लिखा जिसका शीर्षक था ‘राष्ट्रपति भुट्टो के निकट सैन्य सहयोग के प्रस्ताव’। इस ज्ञापन में कुछ विशिष्ट प्रस्तावों पर चर्चा की गई, जो कि निम्न प्रकार हैं-
- पाकिस्तान कराची के निकट अरब सागर तट पर अमेरिका के उपयोग के लिए बंदरगाह और “ट्रैकिंग स्टेशन” सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए तैयार है।
- पाकिस्तानी सरकार आवश्यकतानुसार सुविधाओं तक पहुंच के बारे में सोच रही है, न कि बड़ी संख्या में अमेरिकी कर्मियों के बारे में।
- पाकिस्तान सामरिक सैन्य योजना में सहयोग का भी स्वागत करेगा।
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पाकिस्तान ने अमेरिकी बेस बनाने का प्रस्ताव
इस ज्ञापन में पाकिस्तानी रक्षा सचिव गियासुद्दीन अहमद के हवाले से कहा गया है कि यदि अमेरिका चाहे तो पाकिस्तानी सैन्य सुविधाएं उसे उपलब्ध कराई जा सकती हैं। मेमो में लिखा है, उन्होंने कहा कि इसमें ज़मीन या बंदरगाहों पर सुविधाएं शामिल होंगी। बंदरगाहों के संबंध में उन्होंने अरब सागर तट के साथ स्थित स्थानों का ज़िक्र किया, जिनमें जिवानी, ग्वादर, सोनमियानी खाड़ी, कराची और कराची के दक्षिण और पूर्व का क्षेत्र शामिल है। उनका मानना था कि अमेरिका ग्वादर जैसे बंदरगाह के विकास में रुचि ले सकता है, जो पाकिस्तान के उस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा।
पाकिस्तान ने बनाई थी नई नीति
घियासुद्दीन ने कहा कि इस दृष्टिकोण का कारण यह था कि हाल ही में हुए युद्ध के बाद जब पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा था तो पाकिस्तान नई स्थिति का सामना कर रहा था। पाकिस्तानी सरकार सोवियत और भारतीय दोनों के इरादों को लेकर लगातार चिंतित थी। इस मेमो में लिखा है कि पाकिस्तान को अपनी रक्षा क्षमता मज़बूत करने की ज़रूरत है ताकि वह एक विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर सके।
घियासुद्दीन ने स्वीकार किया कि आकार और ताकत के मामले में पाकिस्तान अब भारत की तुलना में एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान भारत पर हमला करने के बारे में सोच भी नहीं सकता लेकिन उसे अपनी रक्षा के बारे में कुछ आश्वासन चाहिए। इस संबंध में उनका मानना है कि पाकिस्तान ईरान और तुर्की के साथ रक्षा सहयोग को और मज़बूत करने और अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करेगा।
निक्सन ने चीन को बताया भारत के लिए बड़ी समस्या
दूसरी ओर राष्ट्रपति निक्सन का मानना था कि भारत को पाकिस्तान से लड़ने में अपने संसाधन बर्बाद नहीं करने चाहिए क्योंकि चीन भारत की बड़ी समस्या है। निक्सन ने कहा कि मुझे अपनी राय बताने दीजिए। मैं आपको बता दूंगा कि मैं क्या करूंगा। मुझे डर है कि वे इसे लीक कर देंगे, इसलिए हम इसकी घोषणा नहीं कर सकते। मैं आपको बता दूं कि हमसे कहां गलती हुई। मैं इंदिरा गांधी के प्रति बहुत नरम था। जब वह यहाँ थीं।
निक्सन ने कहा, “मैंने उन्हें उकसाया। अगर हमें उन पर लगाम लगानी ही थी, तो हमें और सख्त होना चाहिए था। मैं उनसे नाराज़ नहीं हूं। इस पद पर मुझसे बेहतर उनका कोई दोस्त नहीं रहा। मैंने यही रुख अपनाया है कि भारत को चीन से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। मैंने हमेशा भारत का बचाव किया है।”
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