साल 1982 की बात है। केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। पंजाब में अशांति थी। खालिस्तान की मांग तेज हो रही थी। हिंदुओं और सिखों के बीच टकराव बढ़ रहा था। किसी ने आग में घी डालने के इरादे से 26 अप्रैल को अमृतसर के दो अलग-अलग मंदिरों में गाय के दो कटे हुए सिर लटका दिए। हालांकि दंगा होते-होते रह गया क्योंकि गाय को हिंदू और सिख दोनों पवित्र मानते हैं।
सरकार के एक फैसले से भड़के उग्रवादी
मामला बिगड़ता देख सरकार ने 1 मई, 1982 को दल खालसा और जगजीत सिंह चौहान के नेशनल काउंसिल ऑफ खालिस्तान को अवैधानिक घोषित कर दिया। इंदिरा सरकार के इस फैसले से खालिस्तान समर्थक सिखों में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी। कहीं गोली चली, तो कहीं बम फेंका गया। ज्यादातर घटनाओं में सिख उग्रवादियों द्वारा हिंदुओं को निशाना बनाया गया।
इंदिरा गांधी का अमेरिका दौरा
पंजाब में फैली अशांति के बीच जुलाई 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का अमेरिका दौरा निर्धारित था। दौरे की शुरुआत 27 जुलाई से होनी थी। इस दौरान उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति समेत कई लोगों और समूहों से मिलना था, कई जगहों पर लोगों संबोधित करना था, कई संस्थान उन्हें सम्मानित भी करने वाले थे और इस बीच उन्हें एक गुरुद्वारा में भी जाना था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का शेड्यूल टाइट था।
दौरे से पहले रॉ की तैयारी
इंदिरा गांधी के अमेरिका दौरे से पहले भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) को इंदिरा गांधी की सुरक्षा की चिंता सता रही थी। दौरा शुरू होने के 15 दिन पहले ही रॉ के निदेशक (आर) सुनटूक ने रॉ ऑफिसर जी.बी.एस सिद्धू को बताया कि अमेरिका और कनाडा के सिख उग्रवादियों से इंदिरा गांधी के जीवन को खतरा है। सिद्धू को यह देखने की जिम्मेदारी मिली कि प्रधानमंत्री इंदिरा का दौरा सुरक्षित हो और उस दौरान कोई अवांछित घटना न घटे।
इंदिरा को मारने पहुंचा बंदूकधारी
जी.बी.एस सिद्धू ने प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘खालिस्तान षडयंत्र की इनसाइड स्टोरी’ में बताया है कि कैसे अमेरिका में एक खालिस्तानी इंदिरा को मारने गुरुद्वारा तक पहुंच गया था।
दरअसल अमेरिका दौरे पर गईं इंदिरा गांधी को रिचमंड हिल गुरुद्वारा से निमंत्रण मिला था। वह एक अगस्त को गुरुद्वारा पहुंची जहां उनका सम्मान हुआ और सिरोपा भेंट किया गया। सिद्धू बताते हैं कि इस दौरान वह ऐसी जगह पर बैठे थे, जहां से इंदिरा गांधी के करीब भी रह सकें और गुरुद्वारे के एंट्री प्वाइंट पर नजर भी रख सकें।
गुरुद्वारे के अंदर इंदिरा गांधी लोगों को संबोधित कर रही थीं, तभी सिद्धू की नजर एंट्री प्वाइंट आप में उलझ रहे चार सिखों के एक समूह पड़ी। सिद्धू लिखते हैं कि, ” उनमें से एक कुलदीप सिंह सोढ़ी (टोरंटो के रहने वाले खालिस्तान के तथाकथित कॉन्सुल जनरल) थे। सोढ़ी गुस्से में दिखाई दे रहा थे और अपने साथ खड़े दूसरे व्यक्ति से कुछ बहस कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि दो अन्य साथियों की मदद से वह चौथे व्यक्ति को गुरुद्वारा के अंदर आने से रोक रहे थे।” इधर गुरुद्वारा का कार्यक्रम समाप्त हो गया और इंदिरा गांधी बगल वाले गेट से बाहर निकल गईं।
इसके कुछ देर बाद सिद्धू गुरुद्वारा के बाहर ही सोढ़ी से मिले। सिद्धू पहले से सोढ़ी को जानते थे और मिल चुके थे। वह सोढ़ी को भीड़ से अलग ले जाकर थोड़ी देर पहले हुई घटना के कारण के बारे में पूछा। सोढ़ी ने कहा, ”मैं क्या बताऊं? हमारे ग्रुप का एक आदमी बंदूक लेकर चल रहा था। और वह गुरुद्वारे के अंदर इंदिरा गांधी को मारना चाहता था।” सोढ़ी ने बताया कि बंदूक वाला आदमी टोरंटो का था और पंजाब में हुई घटनाओं के कारण इंदिरा गांधी का दुश्मन बन गया था। गुरुद्वारे में प्रधानमंत्री की हत्या की योजना एक महीने पहले बन गई थी। और तभी से सोढ़ी ने उस व्यक्ति पर नजर रखी हुई थी।
खालिस्तानी ने हमलावर को क्यों रोका
बकौल सिद्धू, सोढ़ी ने हमलावर को रोकने की वजह बताते हुए कहा था कि हम इस तरह की घटना अमेरिका या कनाडा में नहीं होने दे सकते थे, क्योंकि इससे उत्तरी अमेरिका में हमारी संस्था को धक्का लग सकता है।