Body donation for Medical Research: आमतौर पर भारत में मृत्यु के बाद धर्म के मुताबिक शव (बॉडी) का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है लेकिन पिछले कुछ सालों में देहदान का शब्द प्रचलित हुआ है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी का जब हाल ही में निधन हुआ तो उनके शव को दिल्ली स्थित एम्स को दे दिया गया। इसके बाद देहदान शब्द एक बार फिर चर्चा में आया है। इससे पहले कम्युनिस्ट नेताओं बुद्धदेव भट्टाचार्य, ज्योति बसु और सोमनाथ चटर्जी ने भी देहदान किया था।

देहदान को महादान भी कहा जाता है क्योंकि शव रिसर्च के काफी काम आता है। मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स शव पर रिसर्च और प्रैक्टिकल करके काफी कुछ सीखते हैं।

भारत में पिछले कुछ सालों में ऑर्गेन डोनेशन को लेकर जागरूकता बढ़ी है। ऐसे कई लोग सामने आए हैं जो चाहते हैं कि मृत्यु के बाद उनके शरीर के जरूरी अंगों को दान कर दिया जाए जिससे यह किसी जरूरतमंद शख्स के काम आ सके। लेकिन देहदान को लेकर जागरूकता बहुत कम है।

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भारत में देहदान करने वालों की संख्या बहुत कम है और इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। अभी भी बहुत बड़ी संख्या में लोग नहीं जानते कि अगर वे देहदान करना चाहते हैं तो उन्हें क्या करना होगा? कौन अपना शरीर दान कर सकता है, मेडिकल कॉलेज शव का क्या करते हैं?

आमतौर पर शव का इस्तेमाल डॉक्टर मानव शरीर को बेहतर ढंग से समझने और सर्जरी का अभ्यास करने के लिए करते हैं। हालांकि ट्रेनिंग के दौरान मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर डमी का इस्तेमाल भी करते हैं लेकिन जब वह किसी शव पर सर्जरी करते हैं तो उन्हें काफी कुछ सीखने-समझने को मिलता है।

डॉक्टर्स, मेडिकल स्टूडेंट्स की ट्रेनिंग के अलावा शव का उपयोग किस तरह के नए चिकित्सा उपकरण काम में लाए जाएं और बीमारियों का मनुष्य के शरीर पर क्या असर होता है, इसकी स्टडी के लिए भी किया जाता है।

कौन अपना शरीर दान कर सकता है?

18 साल से ऊपर का कोई भी शख्स कानूनी रूप से अपना शरीर दान करने के लिए सहमति दे सकता है। अगर मौत के समय शव दान करने के लिए पंजीकरण नहीं किया गया है तो उसके रिश्तेदार या अभिभावक उनका शरीर दान कर सकते हैं।

इस मामले में एक अहम जानकारी यह भी है कि जिन लोगों की मौत क्रॉनिक बीमारियों से हुई है, उनका शव दान किया जा सकता है। लेकिन जिन लोगों को टीबी, सेप्सिस या एचआईवी जैसी संक्रामक बीमारियां होती हैं, उनके शव को मेडिकल कॉलेज के द्वारा स्वीकार करने की संभावना कम होती है। मेडिकल कॉलेज उन लोगों के शव को भी स्वीकार करने से मना कर सकते हैं जिनकी मौत अननेचुरल कारणों से हुई है और उनके मामले में कोई मेडिको-लीगल मामला हो।

अपना शरीर कैसे दान कर सकते हैं?

मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के एनाटॉमी डिपार्टमेंट सीधे इसके प्रभारी होते हैं। आप जिस विभाग में अपना शरीर दान करना चाहते हैं, वहां जाकर आपको फॉर्म भरना होता है। मौत के बाद उस शख्स के रिश्तेदार को अस्पताल के विभाग से संपर्क करना होता है।

अधिकतर कानूनों के मुताबिक मृतक का शव उसके रिश्तेदारों द्वारा 48 घंटे के अंदर या बिना ज्यादा देर किए देना होता है।

भारत में कितने शव दान किए जाते हैं?

इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन किसी अंडर ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज को अपने 10 छात्रों के बैच के लिए एक शव की जरूरत होती है। दिल्ली एम्स में जहां पर सीताराम येचुरी ने अपना शव दिया था, उसे पिछले दो सालों में 70 शव मिले हैं। दिल्ली में एम्स के ठीक सामने सफदरजंग अस्पताल और इसका सहयोगी अस्पताल वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज है। वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज को पिछले 5 सालों में दान किए गए केवल 24 शव मिले हैं।

दिल्ली में स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के अटल बिहारी वाजपेयी चिकित्सा विज्ञान संस्थान को 2019 के बाद से अब तक केवल 18 शव मिले हैं।

जब देश की राष्ट्रीय राजधानी में यह हाल है तो समझा जा सकता है कि दूरदराज के इलाकों में देहदान को लेकर स्थिति काफी खराब होगी।