पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 मई को दिल्ली-देहरादून वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। इससे पहले उन्होंने 18 मई को पुरी से हावड़ा के बीच वंदे भारत ट्रेन की शुरुआत की थी। पश्चिम बंगाल को मिलने वाली यह दूसरी वंदे भारत एक्सप्रेस थी। इससे पहले हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू हुई थी।
वंदे भारत ट्रेन 160 किमी तक की रफ्तार से दौड़ सकती है। लेकिन, देश में ज्यादातर रेलवे ट्रैक ट्रेन की इस रफ्तार को सहने लायक हैं ही नहीं। दिल्ली-देहरादून वंदे भारत तो 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ही चलेगी। यह ट्रेन 4.45 घंटे में करीब 300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।
कुछ वक्त पहले Jansatta.com को दिये एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली टीम के अगुआ सुधांशु मणि ने कहा था कि जिस रफ्तार से अब ट्रेनें बनने लगी हैं, वैसे में अगर ट्रैक को अपग्रेड नहीं किया गया तो इन ट्रेनों को चलाने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा।
आपको बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2021 को लाल किले से कहा था कि आजादी के अमृत महोत्सव के 75 हफ्तों में 75 वंदे भारत ट्रेनों से देश के विभिन्न हिस्सों को जोड़ा जाएगा। हालांकि, अभी यह संख्या 19 तक ही पहुंची है।
देश में पहली वंदे भारत ट्रेन 2018 में बन कर तैयार हुई थी। 15 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया था। यह ट्रेन देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन है और पूरी तरह देश में बनी है। इस लिहाज से यह बहुत बड़ी उपलब्धि और एक सपना साकार होने जैसा है। जानिए, यह सपना कैसे साकार हुआ:
वंदे भारत बनने की कहानी के दो वर्जन सामने आ रहे हैं। एक वर्जन फरवरी, 2023 में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ‘टाइम्स लिटफेस्ट’ कार्यक्रम में बयां किया था। और, एक वर्जन सुधांशु मणि का है। मणि ने जनसत्ता.कॉम को दिए एक इंटरव्यू में इसके पीछे की कहानी दोहराई है। वह पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली टीम के अगुआ थे और चेन्नई के जिस इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में वह वंदे भारत बनाई गई, उसके जीएम (जनरल मैनेजर) थे। दोनों की कहानी संक्षेप में जान लेते हैं (नीचे वीडियो भी देख सकते हैं)।
वंदे भारत ट्रेन पर काम कैसे शुरू हुआ?
सुधांशु मणि ने जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा को बताया कि 20-25 से बात चल रही थी कि ऐसी ट्रेनें बननी चाहिए। लेकिन वह अलग-अलग वाद-विवाद में फंसकर रह जाती थी। फिर एक स्ट्रांग इम्पोर्ट लॉबी भी होती थी, जो चाहती थी कि ट्रेनें विदेश से लाई जाएं। तरह-तरह के डिस्कोर्स थे। इन सब के बीच जब 2016 में मेरी पोस्टिंग (आईसीएफ में) हुई, तो हम लोगों ने खुद यह फैसला किया कि ऐसी ट्रेन बनानी है। रेलवे बोर्ड के पास हम लोग सैंक्शन मांगने गए। दिक्कत आई शुरू में, लेकिन रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने अप्रैल 2017 में सैंक्शन दिया। हमने चेयरमैन से कहा कि सैंक्शन के लिए हम आपके पैर पकड़ेंगे और मिलने पर ही छोड़ेंगे। हमने यह भी कहा कि हमें सिर्फ दो ट्रेन बनाने दीजिए, बाकि जो इम्पोर्ट करना है करिए। आप जितने में इम्पोर्ट करेंगे, उससे कम में हम लोग यहां बना देंगे। उस समय के रेलवे बोर्ड चेयरमैन ए.के. मित्तल को यकीन था कि आईसीएफ में यह बन सकता है। लेकिन, कई लॉबी उन्हें रोक रही थी। हालांकि, अंत में उन्होंने सैंक्शन दिया।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने टीचर की तरह, रोचक अंदाज में टाइम्स लिटफेस्ट (फरवरी) में वंदे भारत की कहानी सुनाई थी। उन्होंने कहा था-
2017 में मोदी जी ने रेलवे की पूरी टीम को टारगेट दिया कि वर्ल्ड क्लास ट्रेन बनानी है। सबसे पहले हमारे लोगों ने क्या किया! सोचो! एयरलाइन का टिक्ट खरीदा। मोदी जी ने कहा है वर्ल्ड क्लास ट्रेन लानी है। ये थोड़ी न कहा कि कुछ और करना है। तो वर्ल्ड क्लास ट्रेन कहां मिलती है? वर्ल्ड क्लास ट्रेन के लिए यूरोप चलो, जापान जाओ, जाओ फ्रांस। गए। कई बड़े-बड़े ब्रोशर उठा कर लाए। इस कंपनी से मिले। उस कंपनी से मिले। सब से मिले। बड़ा सा प्रेजेंटेशन लेकर आ गए। प्रेजेंटेशन मोदी जी को दिखाते हुए अलग-अलग ट्रेन की खूबियां बताई।
आपको मैं यह स्टोरी इसलिए सुना रहा हूं क्योंकि यह सच्ची है। रियल है, रील्स नहीं। आपको पता होना चाहिए कि आपकी जनरेशन के लिए कैसी फाउंडेशन तैयार हो रही है। आपकी जनरेशन के लिए कैसा देश तैयार हो रहा है। ये आपको जानना जरूरी है।
अब अनुमान लगाइए कि वर्ल्ड क्लास ट्रेनों के सारे प्रेजेंटेशन होने के बाद मोदी जी ने क्या कहा होगा? आपको क्या लगता है, क्या यह कहा होगा कि बहुत अच्छा है। चलो लेकर आएं। क्योंकि पहले तो उन्होंने ही कहा था कि वर्ल्ड क्लास ट्रेन लेकर आओ। लेकिन मोदी जी ने कहा, अच्छा प्रेजेंटेशन लेकर आए हो, लेकिन ये नहीं चलेगा।
अब क्या करें? ये नहीं चलेगा तो क्या चलेगा? कैसे करें? मोदी जी ने कहा, मेरे हिंदुस्तान के इंजीनियर्स, मेरे हिंदुस्तान के टेक्नीशियन, मेरे हिंदुस्तान के वेल्डर्स, मेरे हिंदुस्तान के इलेक्ट्रीशियन, वो डिजाइन करेंगे। और जो ट्रेन डिजाइन होगी, वह वर्ल्ड क्लास ट्रेन होगी। दुनिया को जीतेगी। आप सब मेरे नौजवान साथियों। देश को जो बनाने का जज्बा होता है, समाज को आगे ले जाने का जो जज्बा होता है, कंट्री को स्ट्रांग फाउंडेशन देने का जो माइंडसेट होता है, वह माइंडसेट अलग होता है। उस माइंडसेट में रिस्क लेने की क्षमता होती है। उस माइंडसेट में बड़े-बड़े चैलेंज को एक्सेप्ट करने का जज्बा होता है।
ICF से कोई विदेश नहीं गया, न ही पीएमओ में प्रेजेंटेशन दिया
ICF के पूर्व जीएम ने बताया कि वंदे भारत ट्रेन के सिलसिले में उनकी फैक्ट्री या टीम से कोई विदेश दौरे पर नहीं गया था। मणि कहते हैं, “विदेश जाने की कोई जरूरत नहीं थी। मुझे भारत सरकार ने साल 2012 में तीन साल के लिए बर्लिन (जर्मनी) में पोस्ट किया था। मैंने तमाम देशों की ट्रेनें पहले ही देख रखी थीं। टीम के खास मेंबर भी पहले विदेश जा चुके थे। तो उन्हें भी अंदाजा था कि यूरोप या चीन में कैसी ट्रेनें चलती हैं। प्रोजेक्ट (वंदे भारत) के लिए किसी को विदेश जाने की जरूरत नहीं थी। इसलिए ICF से कोई नहीं गया था। कहीं और से गया हो तो पता नहीं।
मणि ने प्रधानमंत्री के सामने प्रेजेंटेशन दिए जाने की जानकारी से भी इनकार किया। उन्होंने कहा, “मेरी टीम ने पीएम के सामने कोई प्रेजेंटेशन नहीं दिया था। हमने प्रधानमंत्री के सामने कोई प्रेजेंटेशन नहीं दिया था। एक रेल शिविर हुआ था, उसमें हमारे एक अफसर ने प्रेजेंटेशन दिया था। रेलवे बोर्ड में भी कई बार मीटिंग हुई थीं। ये सब सैंक्शन मिलने के पहले हुआ था। यानी नवंबर 2016 से अप्रैल 2017 के बीच। जब ट्रेन बनने लगी तब प्रेजेंटेशन की कोई जरूरत नहीं पड़ी। जनवरी 2018 में पत्रकारों का एक समूह आया था, उन लोगों को हमने एक प्रेजेंटेशन दिया था। हो सकता है रेलवे बोर्ड या कहीं और से लोग विदेश गए हो, प्रेजेंटेशन दिया हो। लेकिन ICF से कोई नहीं गया था। इम्पोर्ट की बात हो रही थी, तो हो सकता कुछ लोग गए हों और पीएओ में प्रेजेंटेशन भी दिया हो। लेकिन मुझे इसके बारे में नहीं पता।”
क्या वर्ल्ड क्लास है ट्रेन?
अश्विनी वैष्णव बोले थे–
2017 में वंदे भारत पर काम शुरू हुआ। कई चुनौतियां आईं। आसान नहीं था। इतनी कॉम्प्लेक्स मशीन को डिजाइन करना, बिल्ड करना, टेस्ट करना आसान नहीं था। लेकिन 2019 की जनवरी में पहली वंदे भारत निकली। उसके बाद दुनिया भर के ट्रेन मैन्युफैक्चरर्स हिल गए। उनकी कोशिश रही कि उसके बाद ट्रेन ही न बन सके। लेकिन आपकी जब फाउंडेशन तैयार करनी है। आप लोगों के लिए अगर देश को तैयार करना है, तो हम हिम्मत हारने वाले लोग नहीं हैं। कितनी भी मुश्किल लेकर आए ग्लोबल मैन्युफैक्चरर्स, हम रुके नहीं। मोदी जी ने कहा कि चालू करो। पहले डेढ़ साल हमने टेस्ट किया। जो बदलाव करना था, उसे किया। आप सोचो- जो पहली दो ट्रेन बनी वो बिना रिप्लेसमेंट के दुनिया के करीब-करीब 18 चक्कर के बराबर चली।
सुधांशु मणि ने कहा– क्षमता के लिहाज से आईसीएफ के लिए यह ट्रेन बनाना कोई मुश्किल काम नहीं था। हमने इसमें काफी देर कर दी। रफ्तार के मामले में भी चीन, जापान सहित कई देश हमसे बहुत आगे हैं। हम 160 की रफ्तार वाली ट्रेन 2018 में बना पाए। जापान में 1964 से ही इससे ज्यादा स्पीड वाली ट्रेनें चल रही हैं। हाई स्पीड (बुलेट ट्रेन) की टेक्नोलॉजी हम उसी से ले रहे हैं।
वैष्णव ने बताया कि
जब ट्रेन का सीरियल प्रॉडक्शन करने के लिए कहा गया तो पीएम ने कहा कि अच्छी है ट्रेन, इसको और अच्छा करो। मोदी जी ने जो कमिटमेंट दिखाया तो टीम में भी कॉन्फिडेंस आ गया। अब क्या चाइलेंज लिया कि जो यूरोप में ट्रेन होते हैं, उनमें मार्जिन ऑफ एरर्स अगर तीन मिलीमीटर होता है तो इस ट्रेन में हमें मार्जिन लेना चाहिए एक मिलीमीटर से भी कम।
सुधांशु मणि बोले– वर्ल्ड क्लास ‘वंदे भारत’ अब तक नहीं बनी है। हम इसे ‘नियर वर्ल्ड क्लास’ कहते हैं। अभी भी इसमें सुधार की काफी गुंजायश है। सबसे पहले तो आउटर सरफेस। विदेश में चलने वाली ट्रेनों का आउटर सरफेस कार के आउटर सरफेस की तरह होता है। हम वहां तक नहीं पहुंचे हैं। अंदर की फिनिशिंंग की बात करें तो वहां भी पैनल में गैप दिख जाते हैं। चीन में ट्रेनों में विमान जैसी या उससे भी बढ़ कर सुविधाएं उपलब्ध हैं।
देखिए, सुधांशु मणि का जनसत्ता.कॉम को दिए इंटरव्यू का वीडियो
मणि ने कहा कि यह बात सच है कि इस ट्रेन से प्रधानमंत्री का नाम जुड़ने की वजह से इसे महत्व मिला है और इसकी प्रॉडक्शन में तेजी आई है। नहीं तो कई कारणों की वजह से इसके निर्माण में देरी हुई। प्रधानमंत्री ने लाल किले से ये ट्रेनें चलाने की घोषणा की, हर ट्रेन का उदघाटन करने के लिए खुद जाते हैं, बजट में 400 वंदे भारत चलाने का ऐलान हुआ…इन सब बातों से यह मैसेज जरूर गया कि ये पीएम की ट्रेन है, इसकी रफ्तार रोकी नहीं जा सकती।
यहां देखिए, अश्विनी वैष्णव ने कैसे टीचर की तरह रोचक अंदाज में सुनाई ‘वंदे भारत’ की कहानी