मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने केंद्र की मोदी सरकार से फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) को बंद करने का अनुरोध किया है। इसे (FMR को) 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ही लागू किया था। लेकिन कई महीनों से हिंंसा की मार झेल रहे मणिपुर की भाजपा सरकार के मुखिया, एन बीरेन सिंंह का कहना है कि राज्य के इस हाल के जिम्मेदार कारणों में से एक यह FMR भी है।
आखिर, क्या है यह FMR
साल 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए FMR लेकर आयी थी। FMR की नीति म्यांमार और भारत सरकार के बीच पारस्परिक सहमति से बनी थी। FMR के तहत सीमा पर रहने वाले दोनों देशों के नागरिक बिना वीजा एक-दूसरे के देश में 16 किमी अंदर तक आ-जा सकते हैं।
हालांकि, FMR 2020 से निष्क्रिय है। पहले भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी के कारण आवाजाही पर रोक लगाई। फिर जब 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हो गया और शरणार्थी संकट बढ़ने लगा तो भारत ने सितंबर 2022 में एफएमआर को निलंबित कर दिया। लेकिन, मणिपुर सरकार की मांग है कि केंद्र इस प्रावधान को खत्म ही कर दे।
राज्य सरकार का मानना है कि FMR से ‘अवैध अप्रवासियों’ का संकट बढ़ रहा है। बीरेन सिंह ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि उन्होंने केंद्र सरकार से भारत-म्यांमार सीमा पर FMR को स्थायी रूप से बंद करने को कहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने की दिशा में काम कर रही है। सीएम ने सुझाव दिया है कि FMR पर रोक लगाकर न सिर्फ ‘अवैध अप्रवासियों’ की आमद पर नियंत्रण पाया जा सकेगा, बल्कि नशीले पदार्थों की तस्करी पर नकेल कसना भी आसान हो जाएगा।
बता दें कि 3 मई को मणिपुर में पहली बार मैतेई और कुकी के बीच हिंसा भड़की थी। अब तक 175 लोग मारे गए हैं। 1118 घायल हुए हैं, जबकि 32 लापता हैं। राज्य लगातार हिंसा और अशांति की घटनाओं से जूझ रहा है। मणिपुर में जारी संघर्ष के लिए राज्य सरकार कई बार ‘अवैध अप्रवासियों’ और ड्रग्स को जिम्मेदार बता चुकी है।
सीएम की चिंता क्या है?
शनिवार को बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र से समझौते के संबंध में सख्त रुख अपनाने और इसे स्थायी रूप से वापस लेने का अनुरोध किया है। सीएम ने राज्य में भड़की हिंसा के लिए FMR को एक प्रमुख कारण बताते हुए कहा, “आज जो आग फैली है, इसकी शुरुआत अभी नहीं हुई। उन्होंने कहा, “जातीय रूप से समान समुदाय के लोग बॉर्डर के पार रहते हैं। वे भारत में 16 किमी से ज्यादा अंदर आ रहे हैं। एफएमआर का फायदा उठाकर लोग केवल आ रहे हैं (जा नहीं रहे)। मैं यह खुलेआम कह रहा हूं कि बॉर्डर की सुरक्षा के लिए तैनात सेना अपना काम ठीक से नहीं कर रही है। उन्हें सीमा पर तैनात होकर बॉर्डर की रक्षा करनी चाहिए, ना कि सीमा से 14-15 किलोमीटर अंदर खड़े रहना चाहिए। मणिपुर सरकार ने FMR को सस्पेंड कर दिया और केंद्र सरकार से भी जरूर कदम उठाने की मांग की है। एक-एक कर सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। सबसे पहले एनआरसी कर बायोमेट्रिक्स लिए जा रहे हैं। दूसरा कदम है सीमा पर बाड़ लगाना और तीसरा एफएमआर का खात्मा।”
सिंह जिन ‘समान समुदायों’ का जिक्र कर रहे हैं, वे मणिपुर में कुकी और म्यांमार में चिन हैं। दोनों में गहरा जातीय संबंध है। राज्य सरकार और मैतेई समाज के एक बड़े वर्ग का आरोप है कि म्यांमार से बड़े पैमाने पर चिन लोग अवैध तरीके से आ रहे हैं। उन्हें राज्य के कुकी-बहुल जिलों में शरण मिली है और यही राज्य में कम्युनिटी वायलेंस का कारण है।
एफएमआर को लाने की क्या वजह थी?
एफएमआर (फ्री मूवमेंट रिजीम) की संकल्पना अंग्रेजों की गलती से पैदा हुई असुविधा को कम करने के लिए की गई थी। दरअसल अंग्रेजों ने 1826 में भारत और म्यांमार के बीच बॉर्डर बनाते हुए वहां की जनजातियों की बसावट का ध्यान नहीं रखा। उन्होंने एक ही जातीयता और संस्कृति के लोगों को उनकी राय लिए बिना दो देशों में बांट दिया।
भारत और म्यांमार की सीमा चार राज्यों (मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश) से लगती है। भारत-म्यांमार बॉर्डर की लंबाई 1643 किमी है। सीमा पर रहने वालों के बीच न सिर्फ जातीय, बल्कि पारिवारिक संबंध भी हैं। मणिपुर के मोरेह क्षेत्र में ऐसे गांव हैं जहां कुछ घर म्यांमार में हैं। नागालैंड के मोन जिले में बॉर्डर लाइन लोंगवा गांव के मुखिया के घर से होकर गुजरती है, जिससे उनका घर दो हिस्सों में बंट जाता है।
दोनों देशों की सरकारों ने एफएमआर की मदद से सीमा पर रहने वाले लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाने, स्थानीय व्यापार और व्यवसाय को प्रोत्साहन देने की कोशिश की। भारत और म्यांमार के बीच हुआ यह समझौता सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों को बिना वीज़ा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति देता है।
1 फरवरी, 2021 को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से सत्तारूढ़ जुंटा ने कुकी-चिन लोगों के खिलाफ उत्पीड़न का अभियान शुरू कर दिया है। इससे बड़ी संख्या में म्यांमार के आदिवासियों को देश की पश्चिमी सीमा पार कर भारत, विशेषकर मणिपुर और मिजोरम में आना पड़ा है। वह भारत से अपने लिए आश्रय मांग रहे हैं।
मिजोरम में केंद्रीय गृह मंत्रालय के विरोध के बावजूद, 40,000 से अधिक शरणार्थियों के लिए शिविर स्थापित किए गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि मिजोरम की आबादी के एक बड़े वर्ग का सीमा पार के लोगों के साथ घनिष्ठ जातीय और सांस्कृतिक संबंध है।
पिछले डेढ़ साल में मणिपुर में भी बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासी आए हैं। ऐसे अप्रवासियों की पहचान के लिए राज्य सरकार ने हाल ही में एक समिति गठित की है। समिति ने अवैध अप्रवासियों की संख्या 2,187 बताई है। सूत्रों के मुताबिक, पिछले सितंबर में मोरेह में 5,500 अवैध अप्रवासियों को पकड़ा गया था, उनमें से 4,300 को वापस भेज दिया गया था।
राज्य की गृह विभाग ने एक आदेश जारी कर कहा है कि “म्यांमार में लॉ एंड ऑर्डर की मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है कि भारत में अवैध नागरिकों की संख्या बढ़ सकती है।”