18वीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार से शुरू हो गया। सदन का कामकाज शुरू होने से पहले संविधान के नियमों के तहत नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी। सबसे पहले राष्ट्रपति भवन में प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। भर्तृहरि महताब ओडिशा की कटक सीट से लगातार सातवीं बार सांसद चुने गए हैं।
राष्ट्रपति ने भर्तृहरि महताब को नए स्पीकर का चुनाव होने तक संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के तहत प्रोटेम स्पीकर की जिम्मेदारी दी है। महताब सदन की अध्यक्षता करेंगे और सभी साथी सांसदों को शपथ दिलाएंगे।
कब शुरू होता है सांसद का कार्यकाल?
किसी भी लोकसभा सांसद का 5 साल का कार्यकाल तब शुरू होता है जब चुनाव आयोग रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 73 के अंतर्गत चुनाव का नतीजा घोषित कर देता है। उस दिन से सांसद को चुने हुए जनप्रतिनिधि की तरह कुछ निश्चित अधिकार मिल जाते हैं। जैसे- चुनाव आयोग के द्वारा नोटिफिकेशन जारी किए जाने की तारीख से उन्हें अपनी सैलरी मिलनी शुरू हो जाती है और साथ ही भत्ते भी मिल जाते हैं।

सांसद का कार्यकाल शुरू होने का मतलब यह भी है कि अगर सांसद अपनी पार्टी बदल लेते हैं तो जिस राजनीतिक दल से वह आते हैं, वह दल स्पीकर से उन्हें दल बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने के लिए कह सकता है।
चुनाव जीतने और कार्यकाल शुरू हो जाने से ही किसी सांसद को सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति नहीं मिल जाती। लोकसभा में बहस करने और वोट देने के लिए किसी सांसद को संविधान के अनुच्छेद 99 में निर्धारित शपथ लेकर अपनी सीट हासिल करनी होती है। यदि कोई सांसद बिना शपथ लिए सदन की कार्यवाही में भाग लेता है या मतदान करता है तो संविधान में यह व्यवस्था है कि उसे इसके लिए 500 रुपए का हर्जाना देना होगा।
हालांकि इस नियम में कुछ अपवाद भी हैं। कोई भी व्यक्ति संसद का सदस्य चुने बिना ही मंत्री भी बन सकता है। लेकिन उसे 6 महीने के भीतर चुनाव जीतकर लोकसभा या राज्यसभा में आना होता है। इस 6 महीने की अवधि के दौरान वह सदन की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं लेकिन वोट नहीं कर सकते।

संसद की शपथ में क्या लिखा होता है?
संविधान की तीसरी अनुसूची में संसदीय शपथ की बात कही गई है। इसमें लिखा है- “मैं, ए.बी., राज्यों की परिषद (या लोगों के सदन) का सदस्य निर्वाचित (या नामांकित) होने के बाद, ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से पुष्टि करता हूं कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखूंगा जैसा कि कानून द्वारा स्थापित किया गया है, कि मैं भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखूंगा और जिस कर्तव्य पर मैं आगे बढ़ने जा रहा हूं, उसे ईमानदारी से निभाऊंगा।”
इतने सालों में किस तरह बदल गई शपथ?
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली ड्राफ्टिंग कमेटी के द्वारा तैयार किए गए संविधान के मसौदे में किसी भी शपथ में ईश्वर का जिक्र नहीं किया गया था। समिति ने कहा था कि शपथ लेने वाला व्यक्ति पूरी तरह संविधान के प्रति निष्ठा रखेगा। जब संविधान सभा के सदस्य इस मसौदे पर चर्चा कर रहे थे तो उस वक्त राष्ट्रपति की शपथ को लेकर सवाल उठा था।
संविधान सभा के सदस्य जैसे केटी शाह और महावीर त्यागी ने ईश्वर के नाम पर शपथ को जोड़े जाने के लिए संशोधन किए जाने की मांग रखी।

केटी शाह ने कहा था, जब मैंने संविधान को पढ़ा तो मुझे यह लगा कि इसमें कुछ खालीपन है। मैं नहीं जानता क्यों हम ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद वाली बात को भूल गए थे। महावीर त्यागी ने कहा था कि जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं वे ईश्वर के नाम पर शपथ लेंगे और जो लोग नास्तिक हैं, ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, उन्हें संविधान के नाम पर शपथ लेने की आजादी होगी। हालांकि तब ईश्वर के नाम पर शपथ को संविधान में जोड़े जाने को लेकर असहमति भी सामने आई थी।
बीआर अंबेडकर ने इस संशोधन को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग ईश्वर को मानते हैं, वे सोचते हैं कि अगर वे ईश्वर के नाम पर शपथ लेते हैं तो ईश्वर जो दुनिया को चलाने वाली ताकत है और साथ ही उनके व्यक्तिगत जीवन की भी ताकत है, यह शपथ अच्छे कामों के लिए जरूरी है।

शपथ में अंतिम बदलाव संविधान (सोलहवें संशोधन) अधिनियम, 1963 के जरिए किया गया था। इसमें कहा गया था कि शपथ लेने वाले भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखेंगे। यह संशोधन राष्ट्रीय एकता परिषद की सिफारिश के आधार पर किया गया था।
कैसे शपथ लेते हैं सांसद?
शपथ के लिए बुलाए जाने से पहले सांसदों को अपना चुनाव जीतने से संबंधित सर्टिफिकेट लोकसभा स्टाफ को देना होता है। संसद ने यह कदम 1957 में हुई एक घटना के बाद सुरक्षा के मद्देनजर उठाया था। इस घटना में मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति ने सदन में आकर सांसद की शपथ ले ली थी। जांच पड़ताल पूरी होने के बाद सांसद अपनी शपथ अंग्रेजी में या संविधान में तय की गई 22 भाषाओं में से किसी भी एक भाषा में ले सकते हैं।
मुश्किल से लोकसभा के आधे सांसद अपनी शपथ हिंदी या अंग्रेजी में लेते हैं। पिछली दो लोकसभा में संस्कृत भी एक लोकप्रिय भाषा के रूप में सामने आई है।
साल | संस्कृत में शपथ लेने वाले सांसद |
2014 | 39 |
2019 | 44 |
सांसदों को अपने चुनाव सर्टिफिकेट में लिखे गए नाम का ही उपयोग करना चाहिए और शपथ में लिखे गए शब्दों का पालन करना चाहिए। 2019 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीती साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शपथ पढ़ते हुए अपने नाम के आगे एक शब्द जोड़ा था लेकिन पीठासीन अधिकारी ने कहा था कि नियमों के मुताबिक चुनाव सर्टिफिकेट पर जो नाम लिखा गया है वही रिकॉर्ड में जाएगा।
2024 में राज्यसभा की सांसद स्वाति मालीवाल ने अपनी शपथ पूरी होने के बाद इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया था और तब राज्यसभा के सभापति ने स्वाति मालीवाल से कहा था कि उन्हें फिर से शपथ लेनी होगी।
शपथ सांसदों के लिए उनकी व्यक्तिगत पसंद का मामला है। पिछली लोकसभा में 87% सांसदों ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली जबकि 13% ने संविधान के प्रति अपनी निष्ठा के नाम पर शपथ ली। ऐसा भी हुआ है कि सांसदों ने अपने एक कार्यकाल में ईश्वर के नाम पर शपथ ली है जबकि दूसरे कार्यकाल में संविधान के प्रति निष्ठा के नाम पर।

क्या जेल में बंद सांसद शपथ ले सकते हैं?
संविधान कहता है कि अगर कोई सांसद 60 दिन तक संसद की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है तो उसकी सीट को रिक्त घोषित किया जा सकता है। अदालतों ने जेल में बंद सांसदों को शपथ देने की अनुमति के मामले में इस बात को आधार बनाया है।
उदाहरण के लिए जून, 2019 में जब लोकसभा सांसदों का शपथ ग्रहण कार्यक्रम होना था तो उत्तर प्रदेश की घोसी लोकसभा सीट से चुनाव जीते अतुल कुमार सिंह गंभीर आपराधिक मुकदमों के मामले में जेल में थे। लेकिन अदालत ने जनवरी 2020 में उन्हें संसद में जाकर शपथ लेने की अनुमति दे दी थी और अतुल कुमार सिंह ने हिंदी भाषा में संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली थी।