लेबनान में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पेजर में हुए सिलसिलेवार धमाकों की दुनिया भर में चर्चा है। पहले यह धमाके पेजर में हुए उसके बाद वॉकी-टॉकी और रेडियो सेट में भी धमाके हो चुके हैं। इन धमाकों में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 3000 से ज्यादा लोग घायल हैं। पेजर सिर्फ दक्षिणी लेबनान के बेरुत में ही नहीं फटे बल्कि सीरिया की राजधानी दमिश्क में भी ऐसी घटनाएं हुई।

इन धमाकों के बाद एक अहम सवाल यह सामने आया है कि आखिर लेबनान के लड़ाके पेजर का इस्तेमाल क्यों कर रहे थे और धमाकों के लिए पेजर को ही क्यों चुना गया?

यह कहा जा रहा है कि जिन पेजर में विस्फोट हुए हैं, उनके बाजार में बिकने से पहले ही इनमें विस्फोटक लगाया गया था और इन्हें बहुत दूरी से भी कंट्रोल करके उड़ाया जा सकता था।

इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष

यहां याद दिलाना होगा कि इजराइल और हमास के बीच गाजा में भयंकर लड़ाई चल रही है लेकिन लेबनान का आतंकी संगठन हिजबुल्लाह भी इस लड़ाई में कूद गया था। इसके बाद इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच पिछले कुछ महीनों में संघर्ष तेज हो गया है।

ऐसा कहा जा रहा है कि पेजर में होने वाले यह धमाके इजराइल ने किए हैं लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। हम फिर उस सवाल पर लौट कर आते हैं कि आखिर हिजबुल्लाह के लड़ाके पेजर का इस्तेमाल क्यों कर रहे थे जबकि पेजर लगभग दुनिया भर में चलन से बाहर हो चुके हैं।

मोबाइल के आने से पहले पेजर ही एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस थी जो छोटे मैसेज भेजने के लिए इस्तेमाल की जाती थी। 1950 में पेजर पहली बार इस्तेमाल किए जाने लगे और 1980 और 1990 के दशक में यह काफी लोकप्रिय हुए थे। भारत में भी 1990 और 2000 के बीच में पेजर का इस्तेमाल किया जाता था। मोबाइल फोन आने के साथ ही पेजर भारत और दुनिया भर में लगभग गायब हो गए।

पेजर एक छोटा रेडियो रिसीवर होता है। जिस तरह कोई भी रेडियो अपने आसपास के स्टेशन से जुड़ सकता है उसी तरह पेजर भी भेजे गए मैसेज को एक्सेस कर सकता है। यह एक ग्रुप मैसेजिंग की तरह होता है लेकिन इससे प्राइवेट मैसेज भी भेजे जा सकते हैं। हर पेजर पर फोन नंबर की तरह ही एक नंबर होता है। इस नंबर से जो संदेश जुड़े होते हैं, वह केवल उसी को रिसीव हो सकते हैं जिसके लिए इसे डिजाइन किया गया है। आसपास के अन्य पेजर सिग्नल को सेंस तो कर सकते हैं लेकिन इसे डिकोड कर पढ़ नहीं सकते।

पेजर को नहीं कर सकते ट्रेस और ट्रैक

पेजर को ट्रेस और ट्रैक नहीं किया जा सकता। ठीक उसी तरह जिस तरह घरों में चलने वाले रेडियो को ट्रेस नहीं किया जा सकता। मोबाइल फोन को ट्रैक किया जा सकता है क्योंकि वह सिग्नल रिसीव करने के साथ ही सिग्नल भेजता भी है। यही वजह है कि हिज्बुल्लाह के लड़ाके पेजर का इस्तेमाल कर रहे थे।

महीनों तक चल सकती है बैटरी

पेजर एक बैटरी पर कई महीनों तक चल सकते हैं और इस वजह से यह दूरदराज के इलाकों में फायदे का सौदा होते हैं क्योंकि वहां बिजली की सप्लाई बहुत अच्छी नहीं होती और क्योंकि यह ग्रुप मैसेजिंग के लिए इस्तेमाल होते हैं इसलिए हिज्बुल्लाह जैसे संगठन बड़ी संख्या में लोगों को मैसेज भेजने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।

हैक करना होता है मुश्किल

पेजर को हैक करना बहुत मुश्किल होता है। इसमें कुछ ही इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट होते हैं। जैसे- रेडियो रिसीवर, छोटा सर्किट, छोटी डिस्प्ले स्क्रीन, बैटरी और छोटा स्पीकर। यह स्पीकर संदेश मिलने पर बीप की आवाज करता है।

यह कहा जा रहा है कि इन पेजर में जो धमाके हुए, वह हैकिंग की वजह से हुए हैं। इस वजह से पेजर का हार्डवेयर बहुत गर्म हो गया। पेजर को लेकर यही कहा जाता है कि इसे हैक नहीं किया जा सकता। इसलिए हैकिंग की वजह से पेजर में धमाके हुए, इस थ्योरी को लगभग खारिज कर दिया गया है।

हां, ऐसा जरूर हो सकता है कि पेजर के अंदर विस्फोटक सामग्री लगाई गई हो लेकिन अभी ये भी साफ नहीं है कि कब और कैसे इन पेजरों में विस्फोटक लगाए गए थे।