पिछले कुछ सालों में साइबर फ्रॉड और डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं टीवी, अखबारों और सोशल मीडिया के जरिए सुनने को मिली हैं। जो लोग इन घटनाओं के शिकार हुए हैं, उन्होंने अपने दर्द को बयां भी किया है लेकिन अगर साइबर फ्रॉड और और डिजिटल अरेस्ट जैसी घटना किसी बड़े कारोबारी या उद्योगपति के साथ हो तो निश्चित रूप से यह बड़ी चिंता का विषय है।
वर्धमान ग्रुप के अध्यक्ष एसपी ओसवाल के साथ 7 करोड़ की ठगी होने की घटना निश्चित रूप से भयावह है और जब इतने बड़े कारोबारी के साथ ठगी हो सकती है तो आम आदमी के साथ साइबर फ्रॉड और डिजिटल अरेस्ट होने का खतरा बहुत ज्यादा है। वर्धमान ग्रुप भारत में सबसे बड़ा टैक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग ग्रुप है।
5.25 करोड़ रुपए बरामद
बताना होगा कि पुलिस ने ठगी के इस हाई प्रोफाइल मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है और सात अन्य लोगों की तलाश कर रही है। पुलिस ने इन ठगों से 5.25 करोड़ रुपए भी बरामद कर लिए हैं। आखिर इतने बड़े ग्रुप के सीईओ ओसवाल जिनके पास कारोबार का लंबा अनुभव है, वह ठगी के शिकार कैसे हो गए, इस बारे में उन्होंने खुद ही अपना दर्द द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है। बताना होगा कि ओसवाल पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित भी हैं। उनकी उम्र 82 साल है।
कैसे हुई ठगी?
ठगों ने खुद को भारत का सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ बताया और स्काइप के जरिए सुप्रीम कोर्ट की नकली सुनवाई की। ठगों ने जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल के खिलाफ चल रहे मनी लांड्रिंग के मामले का भी उन्हें डर दिखाया और उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर कर दिया। हैरानी की बात यह है कि ओसवाल जीवन भर कभी भी नरेश गोयल से नहीं मिले और नहीं उनसे कभी कोई बातचीत की।
ओसवाल ने बातचीत में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 27 अगस्त को उन्हें टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के नाम से एक फोन कॉल आया जिसमें उनसे कहा गया कि अगर वह अपने फोन के कीपैड पर 9 नंबर नहीं दबाएंगे तो उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी। ओसवाल ने 9 नंबर दबा दिया और इसके बाद वह कॉल कट गई।
खुद को बताया सीबीआई का अफसर
ओसवाल बताते हैं कि कुछ ही घंटे बाद उन्हें विजय खन्ना नाम के एक शख्स का फोन आया जिसने खुद को सीबीआई का अफसर बताया। इस फर्जी अफसर ने कहा कि उनका नाम जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल के खिलाफ चल रहे मामले में संदिग्ध के तौर पर सामने आया है। बताना होगा कि नरेश गोयल को बीते साल ईडी ने मनी लांड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया था। ओसवाल को इस बात का डर दिखाया गया कि उनके खिलाफ इस मामले में जांच की जाएगी। ओसवाल बताते हैं कि ठगों ने उन्हें मुंबई पुलिस के चिन्ह छपे हुए कुछ दस्तावेज भी भेजे।
स्काइप पर आई सीबीआई की फर्जी टीम
उसी दिन यानी 27 अगस्त को ओसवाल को डिजिटल कस्टडी में ले लिया गया। उनके सामने स्काइप पर वही सीबीआई की फर्जी टीम थी। ओसवाल बताते हैं कि ठगों ने उन्हें सीबीआई का एक लिखित ऑर्डर भेजा जिसमें लिखा हुआ था कि अब उन्हें डिजिटल कस्टडी में लिया जा रहा है। इसके बाद ठगों ने व्हाट्सएप पर एक कॉपी भेजी और कहा कि अगर वह इस कॉपी में से किसी को कुछ भी शेयर करते हैं तो उन्हें 3 से 5 साल तक की सजा हो सकती है।
पूरे 2 दिन रहे डिजिटल कस्टडी में
28 अगस्त को उन्हें यह बताया गया कि अब उनका मामला सुप्रीम कोर्ट में जा रहा है और इसके बाद एक याचिका का ड्राफ्ट भी उनके साथ शेयर किया गया। ओसवाल बताते हैं कि पूरे 2 दिन तक वह डिजिटल कस्टडी में ही रहे।
जाने-माने कारोबारी ओसवाल के मुताबिक, ठग जिस तरह बात कर रहे थे उससे ऐसा लगता था कि वे सच कह रहे हैं, वे लोग रात को भी उनकी निगरानी करते थे और उनसे स्काइप चालू रखने को कहा गया था। ओसवाल कहते हैं कि उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आती थी क्योंकि उन पर नजर रखी जा रही थी।
सुप्रीम कोर्ट की नकली सुनवाई
अगले दिन यानी 28 अगस्त को ठगों ने स्काइप के जरिए सुप्रीम कोर्ट की नकली सुनवाई की। हैरानी की बात यह है कि इसमें एक शख्स ने खुद को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के रूप में पेश किया। उस आदमी ने मामले को सुना और इसके बाद ऑर्डर पास कर दिया और मुझे व्हाट्सएप पर ऑर्डर की कॉपी भेज दी। इस कॉपी पर कई अथॉरिटीज के स्टांप लगे हुए थे। ओसवाल कहते हैं कि वह उस नकली सीजेआई का चेहरा नहीं देख पाए। उसने दो बार हथौड़ा मारा और कहा ‘ऑर्डर, ऑर्डर, प्लीज अपना मामला पेश करें’। ओसवाल ने कहा कि उन्हें ऐसा लगा कि वह वास्तव में जस्टिस चंद्रचूड़ हैं।
ओसवाल ने बताया, ‘मुझे लगा कि यह सब सच है। आदेश में लिखा गया था कि उन्हें 28.8.2024 तक पैसे ट्रांसफर करने होंगे।’ ओसवाल इस बात को स्वीकार करते हैं कि कोर्ट के फर्जी ऑर्डर के बाद उन्होंने पहले 4 करोड़ रुपए और फिर अगले दिन 3 करोड़ रुपए ठगों के खातों में ट्रांसफर कर दिए। ओसवाल कहते हैं कि ठगों द्वारा जो फर्जी दस्तावेज बनाए गए थे, वे इतनी शानदार ढंग से लिखे गए थे कि उन्हें लगा कि यह सब सच है।
ओसवाल को ठगी का पता कब चला?
29 अगस्त को ओसवाल की तबीयत खराब होनी शुरू हुई और उन्हें अस्पताल जाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपने कंपनी में सीनियर साथी विकास कुमार को इस बारे में बताया तो विकास ने उन्हें बताया कि वह ठगी के शिकार हो गए हैं। लेकिन इसके बाद भी ठगों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने 2 करोड़ रुपए और मांगे लेकिन ओसवाल ने उनसे कहा कि वे अस्पताल जा रहे हैं।
ठगों ने उन्हें ईडी मुंबई द्वारा जारी नकली गिरफ्तारी वारंट भी भेजा और कहा कि और दो घंटे के भीतर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। ओसवाल ने ठगों से कहा कि वह पुलिस की कस्टडी में मरने को तैयार हैं लेकिन अब और पैसे ट्रांसफर नहीं करेंगे।
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट वह घटना है जिसमें किसी शख्स को किसी झूठी बात में फंसाने का डर दिखाकर पैसे वसूले जाते हैं ताकि उसे साइबर अपराध का शिकार बनाया जा सके। इसमें पीड़ित को ‘डिजिटल रूप से गिरफ्तार’ किया जाता है और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफार्मों के जरिये तब तक कैमरे के सामने दिखाई देने के लिए कहा जाता है जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।
ऐसे मामलों में अपराधी पुलिस अफसरों की तस्वीर का इस्तेमाल करते हैं और ‘समझौता’ या मामले को बंद करने के लिए पीड़ित से पैसे की मांग करते हैं। साइबर क्रिमिनल पुलिस स्टेशन या सरकारी दफ्तरों जैसे दिखने वाले स्टूडियो के जरिये सामने आते हैं और जांच एजेंसियों के अफसरों जैसे कपड़े भी पहनते हैं।