खदीजा खान

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के चल रहे सर्वेक्षण पर रोक लगा दी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने यह सर्वे 24 जुलाई को ही शुरू किया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने वाराणसी जिला अदालत के उस आदेश पर 26 जुलाई तक रोक लगा दी, जिसमें ASI को मस्जिद परिसर का “वैज्ञानिक” सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने मस्जिद समिति से सर्वेक्षण पर रोक के अंतरिम आदेश की समाप्ति से पहले जिला अदालत के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जाने को भी कहा।

कथित तौर पर मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने के बाद औरंगजेब द्वारा बनाई गई 17वीं शताब्दी की मस्जिद के इस मामले ने पिछले साल तब गति पकड़ी, जब पांच हिंदू महिलाओं ने मस्जिद परिसर की बाहरी दीवार पर मां श्रीनगर गौरी की पूजा करने का अधिकार मांगा था।

तब से यह मामला मजिस्ट्रेट की अदालत से जिला अदालत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय और फिर वापस जिला अदालत में चला गया है।

क्या था वाराणसी कोर्ट का आदेश?

21 जुलाई को, वाराणसी अदालत ने एएसआई को मस्जिद परिसर का ‘वैज्ञानिक जांच/सर्वेक्षण/खुदाई’ का आदेश दिया था। जिला एवं सत्र न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेशा ने एएसआई से कहा कि वह इमारत के तीन गुंबदों के ठीक नीचे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण करें और यदि आवश्यक हो तो खुदाई करें।

अदालत ने एएसआई निदेशक को “पता लगाने का निर्देश दिया…क्या [वर्तमान संरचना] का निर्माण किसी हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना के ऊपर किया गया है”, और “इमारत में पाए गए सभी कलाकृतियों की एक सूची तैयार करें, जिसमें उनकी सामग्री और निर्माण की उम्र और प्रकृति का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक जांच करें।”

कोर्ट ने इस मामले को कैसे लिया?

वाराणसी जिला अदालत का 21 जुलाई का आदेश हिंदू महिलाओं द्वारा मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने का अधिकार मांगने के लिए दायर सिविल मुकदमे में आया था।

अदालत ने स्पष्ट किया कि सर्वेक्षण में वुजू खाना या स्नान क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाएगा, जिसे पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील कर दिया गया था। पिछले साल हिंदू वादियों ने दावा किया था कि उन्होंने वुजू खाना में एक शिवलिंग मिला है। हालांकि, मुकदमे में मुस्लिम प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि जो वस्तु मिली थी वह एक फव्वारा था।

जिला अदालत ने निर्देश दिया कि सर्वेक्षण कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाए और रिपोर्ट 4 अगस्त से पहले प्रस्तुत की जाए। अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद इस साल 16 मई को एएसआई सर्वेक्षण के लिए वर्तमान याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की थी।

हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया?

याचिकाकर्ता लक्ष्मी देवी और तीन अन्य ने 14 अक्टूबर, 2022 को वाराणसी जिला न्यायाधीश द्वारा “शिवलिंग” के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के लिए उनकी याचिका खारिज करने के बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। 16 मई, 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने “शिवलिंग” के कार्बन डेटिंग सहित “वैज्ञानिक सर्वेक्षण” का आदेश दिया था।

मामले में कैसे हुई सुप्रीम कोर्ट की एंट्री?

ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने शीर्ष अदालत में यह तर्क देते हुए याचिका दायर की कि कार्यवाही मस्जिद के धार्मिक चरित्र को बदलने का एक प्रयास है। Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991, किसी पूजा स्थल को उसी रूप में रखने को कहता है, जैसा वह 15 अगस्त 1947 को था। इस कानून का एकमात्र अपवाद रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर है।

20 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने “सिविल मुकदमे में शामिल मुद्दों की जटिलता” को रेखांकित करते हुए मामले को जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में कहा कि वह जिला न्यायाधीश द्वारा मामले के प्रारंभिक पहलुओं पर निर्णय लेने के बाद ही हस्तक्षेप करेगा।

कार्यवाही के दौरान, मस्जिद समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी ने तर्क दिया कि वाराणसी अदालत द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया 1991 के अधिनियम का उल्लंघन है। जवाब में, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (अब सीजेआई), सूर्यकांत और पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने कहा, “किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना … [1991] अधिनियम द्वारा वर्जित नहीं है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक काल्पनिक स्थिति का जिक्र किया, उन्होंने कहा- एक एगियारी (अग्नि मंदिर) में एक क्रॉस पाया जाता है: क्या एक क्रॉस की उपस्थिति एगियारी को ईसाई पूजा का स्थान बनाती है?

नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक ज्ञानवापी परिसर के उस क्षेत्र को सुरक्षित करने का आदेश दिया जहां “शिवलिंग” पाए जाने का दावा किया गया था। हालांकि मुसलमानों के वहां जाने या नमाज पढ़ने पर प्रतिबंधित नहीं है।

Places of Worship Act के खिलाफ भी याचिका

यह मामला पांच हिंदू महिलाओं द्वारा मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने का अधिकार मांगने के लिए दायर मुकदमे के इर्द-गिर्द घूमता है। हिंदू पक्ष ने दलील दी है कि मस्जिद एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया है कि मस्जिद वक्फ परिसर में बनाई गई थी, और पूजा स्थल अधिनियम मस्जिद के चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है।

मई 2022 में तथाकथित “शिवलिंग” की खोज के साथ अप्रत्याशित रूप से एक नया मुद्दा सामने आया। हालांकि, कानून का मुख्य प्रश्न यह है कि क्या Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991, हिंदू पक्ष के वादियों को मस्जिद परिसर के भीतर स्थित देवता की पूजा करने के अधिकार के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने से रोकता है।

अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि “15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वही रहेगा जो उस दिन मौजूद था।”

वर्तमान मामले में मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया है कि मुकदमे की अनुमति देने से मस्जिद का चरित्र बदल जाएगा क्योंकि यह 600 से अधिक वर्षों से अस्तित्व में है। हिंदू याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1993 तक, मस्जिद परिसर के अंदर हिंदू देवी-देवताओं की नियमित प्रार्थना की जाती थी और 1993 के बाद से सालाना एक तय दिन पर प्रार्थना की अनुमति दी गई है। इस तर्क पर भरोसा करते हुए वाराणसी कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूजा स्थल अधिनियम सिविल मुकदमे पर रोक नहीं लगाता है।

अधिनियम में अयोध्या स्थल के लिए अपवाद था। अधिनियम की धारा 5 में कहा गया है कि यह अधिनियम राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले या उससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।

लखनऊ स्थित विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और सनातन वैदिक धर्म के अनुयायियों और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अधिनियम को चुनौती देने वाली कम से कम दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगा रखी हैं, फिलहाल दोनों लंबित हैं।

अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। साथ ही यह “मनमाने ढंग से एक तारीख” लागू करता है और हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के धर्म के अधिकार को कम करता है। अदालत ने मार्च 2021 में उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी किया, लेकिन केंद्र ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।