डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस को हराया है। पूरे अमेरिका में उनके समर्थक नाच-गाकर और झूमकर ट्रंप की जीत का जश्न मना रहे हैं लेकिन क्या ट्रंप के खिलाफ चल रहे अदालती मामले उनके समर्थकों के जश्न का मजा खराब कर सकते हैं। क्या इन मामलों की वजह से ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाने पर कोई असर पड़ेगा? निश्चित रूप से ट्रंप के समर्थकों को इस बात की चिंता सता रही है कि इन मुकदमों में क्या फैसला आएगा?

चुनाव में हार का सामना करने वाली कमला हैरिस की डेमोक्रेटिक पार्टी को भी इन मामलों में अदालत का फैसला आने का इंतजार है। क्या इन मामलों की वजह से ट्रंप को व्हाइट हाउस पहुंचने में मुश्किल पेश आ सकती है? ट्रंप को 20 जनवरी को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में फिर से शपथ लेनी है लेकिन क्या इन मामलों की वजह से उनके शपथ लेने में अड़चन आएगी?

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चार मुकदमे झेल रहे हैं ट्रंप

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ चार आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से दो केंद्रीय मामले हैं जबकि दो मामले राज्यों से जुड़े हैं। केंद्रीय मामलों में पहला मामला 6 जनवरी का है जिसमें उनके समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला कर दिया था, तब 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के बाद ट्रंप के समर्थकों ने चुनाव नतीजों को मानने से इनकार कर दिया था।

दूसरा मामला क्लासीफाइड डॉक्यूमेंट्स से जुड़ा हुआ है। इस मामले में ट्रंप पर आरोप है कि वह राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास व्हाइट हाउस से कुछ सरकारी दस्तावेज अपने घर मार-ए-लागो में ले गए थे। यह घर फ्लोरिडा है।

अब बात करते हैं कि ट्रंप के खिलाफ राज्यों में कौन-कौन से दो मामले चल रहे हैं? पहला मामला मैनहट्टन में हश मनी यानी चुप रहने के लिए पैसे देने से जुड़ा हुआ है। इस मामले में दो महिलाओं ने कहा था कि चुनाव लड़ने से कई साल पहले उनके ट्रंप के साथ संबंध थे लेकिन 2016 के चुनाव से पहले उन्हें चुप रहने के लिए मोटा पैसा दिया गया था।

दूसरा मामला जॉर्जिया में 2020 के चुनाव के परिणाम को पलटने की कोशिश से जुड़ा है।

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क्या कहता है अमेरिका का संविधान?

अमेरिका का संविधान कहता है कि केंद्र और राज्यों के मामलों में अलग-अलग नियम लागू होते हैं। ट्रंप चूंकि राष्ट्रपति बन चुके हैं इसलिए उनके पास केंद्रीय मामलों में होने वाली कार्रवाई पर अधिक दखल देने की ताकत होगी। इसे लेकर विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे मामले खत्म हो सकते हैं लेकिन राज्यों में चल रहे मामलों की कार्रवाई को रोक दिया जाए तो यह मामले लंबे वक्त तक खिंच सकते हैं या इनमें काफी वक्त लग सकता है।

अमेरिका के संविधान के Article II, Section 2, Clause 1 के मुताबिक राष्ट्रपति को अमेरिकी मामलों में रियायत और माफी देने का अधिकार है सिर्फ ऐसे मामलों के अलावा जो महाभियोग से संबंधित हैं। सीधे कहा जाए तो इन मामलों में ट्रंप खुद को माफ कर सकते हैं और उन्होंने राष्ट्रपति रहते हुए अपने पहले कार्यकाल में ऐसा करने पर विचार भी किया था। हालांकि अमेरिका में अभी तक किसी भी राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया है और अगर ट्रंप ऐसा करते हैं तो यह उनके लिए कानूनी चुनौती बन सकता है।

जैक स्मिथ को हटाने का किया था ऐलान

अगर अमेरिकी सरकार का न्याय विभाग केंद्रीय मामलों को खारिज करने का फैसला लेता है तो फिर माफी की जरूरत ही नहीं होगी। याद दिलाना होगा कि ट्रंप ने कहा था कि अगर वह राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाएंगे तो केंद्रीय मामलों में विशेष पैरवी करने वाले एडवोकेट जैक स्मिथ को ‘2 सेकंड के अंदर’ उनके पद से हटा देंगे।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया है कि जैक स्मिथ साल 2000 में बनाई गई DoJ नीति के मुताबिक इन दोनों मामलों को समाप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं। DoJ नीति में कहा गया है कि राष्ट्रपति पद पर बैठे शख्स के खिलाफ अभियोग या आपराधिक मुकदमा चलाने से कार्यकारी शाखा को सौंपे गए कामों को करने की उसकी क्षमता कमजोर हो जाएगी।

रिकॉर्ड में फेरबदल का दोषी पाया था

इस साल मई में मैनहट्टन की एक जूरी ने ट्रंप को एक सेक्स स्कैंडल को छुपाने के लिए रिकॉर्ड में फेरबदल करने का दोषी पाया था। इस मामले में उन्हें 26 नवंबर को सजा सुनाई जानी है लेकिन ऐसी उम्मीद है कि उनके वकील इसे टालने का अनुरोध करेंगे। ट्रंप के वकीलों का तर्क यह हो सकता है कि उन्हें सजा दिए जाने से राष्ट्रपति बनने से जुड़ी प्रक्रिया में देरी हो सकती है और इससे नई सरकार के गठन पर असर पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट जा सकता है मामला

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, जस्टिस जुआन एम. मर्चन जो पहले ही ट्रंप को दो बार स्थगन दे चुके हैं, वह फिर से स्थगन देने पर विचार कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रंप अपील करेंगे और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है।

फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के कानूनों की समझ रखने वाले विद्वानों का मानना ​​है कि पद पर काम कर रहे राष्ट्रपति को जेल भेजना “संवैधानिक रूप से सही नहीं” होगा और ऐसी संभावना है कि सजा को कम से कम अगले राष्ट्रपति के चुनाव तक के लिए टाल दिया जाएगा।