Swami Swaroopanand Died: ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। वह 99 साल के थे। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर उनकी मृत्यु हो गई। हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु के रूप में प्रसिद्ध शंकराचार्य का राजनीतिक दल के नेताओं से भी बहुत नजदीकी थी।

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बताया जाता है कि शंकराचार्य ने 9 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था, शास्त्रों की शिक्षा ली थी, आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे, जेल गए थे, राम मंदिर मामले पर भाजपा और विहिप को घेरा था, आरक्षण के खिलाफ बयान देकर और ताजमहल के नीचे शिवलिंग होने का दावा कर  विवादों में भी आए थे। आइए जानते हैं शंकराचार्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से:

बचपन में छोड़ा घर?

स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में 2 सितंबर 1924 को हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। बताया जाता है कि स्वरूपानंद सरस्वती ने 9 वर्ष की आयु में ही घर छोड़ दिया। वह धर्म यात्रा पर निकल गए। वाराणसी पहुंचने पर उन्होंने करपात्री महाराज से शास्त्रों की शिक्षा हासिल की। दण्ड संन्यास की दीक्षा लेने के बाद उन्हें स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम मिला। शंकराचार्य की उपाधि साल 1982 में गुजरात स्थित द्वारका शारदा पीठ और बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर मठ का प्रमुख बनने के बाद मिली।  

युवा साधु बना स्वतंत्रता सेनानी

1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत हुई थी, तब स्वरूपानंद सरस्वती की उम्र करीब 19 वर्ष थी। अंग्रेजी के खिलाफ उद्वेलित अन्य युवाओं की तरह वह भी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इसके लिए अंग्रेजी शासन ने उन्हें 6 माह तक जेल में भी रखा।

राम मंदिर को लेकर भाजपा-विहिप पर सवाल

शंकराचार्य का मानना था कि भाजपा और विहिप राम मंदिर को धार्मिक रूप न देकर, राजनीतिक रूप देना चाहते हैं। उन्होंने 6 फरवरी 2021 मनकामेश्वर मंदिर में मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा था, ”अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर नहीं बन रहा है। वहां आने वाले दिनों में विश्व हिंदू परिषद का कार्यालय बनेगा। मंदिर वे बनाते हैं, जो राम को मानते हैं। राम को आराध्य मानते हैं। राम को महापुरुष मानने वाले लोग मंदिर नहीं बनाते।”

विहिप पर निशाना साधते हुए शंकराचार्य ने कहा था कि भगवा धारण करने लेने से कोई सनातन को मानने वाला नहीं बना जाता है। उनका दावा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनकी ही सलाह पर मंदिर का ताला खुलवाया था।

आरक्षण का किया था विरोध

शंकराचार्य संविधान प्रदत्त जातिगत आरक्षण के खिलाफ थे। उन्होंने कई मौके पर आरक्षण के खिलाफ खुलकर बयान दिया था। साल 2016 में उन्होंने देश की बदतर हालत के लिए आरक्षण को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था, ”आरक्षण की व्यवस्था से देश की व्यवस्था का सत्यानाश हो रहा है।”

साल 2018 में आरक्षण के पूरी तरह सामाप्त करन की मांग करते हुए उन्होंने कहा था, ”आरक्षण पूरी तरह खत्म होना चाहिए और सबको उन्नति का समान अवसर देकर समाज सेवा के योग्य बनाना चाहिए। अगर बिना योग्यता के आरक्षण के आधार पर डॉक्टर बनाएंगे तो पेट में कैंची ही छोड़गा, और अगर प्रोफेसर बनाएंगे तो वह पढ़ाएगा नहीं। इसी प्रकार इंजीनियर बनाएंगे तो पुल गिराएगा।

ऐसा मत करो। उन्हें भी योग्य बनने दो, उन्हें प्रतिस्पर्धा में आने दो। तब उनकी तरक्की होगी। उनको केवल वोट बैंक बनाकर रखना उनके प्रति अत्याचार के समान है।” शंकराचार्य ने दलित नेताओं द्वारा मनुस्मृति का विरोध करने और उसकी प्रतियों को जलाने की घटना को अफसोसजनक बताया था।

‘RSS का हिंदुत्व से कोई लेना-देना नहीं’

शंकराचार्य RSS की मंशा पर भी सवाल उठा चुके थे। उनका कहना था कि संघ के लोग हिंदुओं को धोखा दे रहे हैं उनका हिंदुत्व से कोई लेना देना नहीं है। अरुणाचल प्रदेश में संघ के हजारों स्वयंसेवक गोमांस खाते हैं।  

‘ताजमहल के नीचे शिवलिंग’

साल 2015 में शंकराचार्य ने दावा किया था कि आगरा स्थित ताजमहल के नीचे शिवलिंग है। उन्होंने हिंदुओं के लिए वहां पूजा-अर्चना की व्यवस्था करने की बात कही थी।

‘बेटियों को तर्पण का अधिकार नहीं’

शंकराचार्य का मानना था कि पितरों को तृप्ति तभी मिल सकती है, जब उनका दाह संस्कार और तर्पण  पुत्र या पौत्र या फिर पुत्री का बेटा करे। बेटियों के दाह संस्कार करने से पितरों को तृप्ति नहीं मिलती। ऐसा करना हिंदू धर्म शास्त्रों के खिलाफ हैं।  शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना था कि बेटियां माता-पिता की संपत्ति पर अपना हक जताने के लिए दाह संस्कार और पिंडदान करती हैं।