महिला आरक्षण बिल संसद में पास हो चुका है। जनगणना और परिसीमन के बाद कानून लागू हो पाएगा, जिससे लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी। 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 78 महिलाएं सांसद चुनी गई थीं, जो कुल निर्वाचित सांसदों का लगभग 14% था।

राज्यों में दिसंबर 2022 तक हुए विधानसभा चुनावों की बात करें तो महिला प्रतिनिधित्व के मामले में सबसे ऊपर छत्तीसगढ़ विधानसभा है। छत्तीसगढ़ के निर्वाचित विधायकों में 14.44% संख्या महिलाओं की है। इस सूची में अन्य राज्य हैं पश्चिम बंगाल (13.7%), झारखंड (12.35%), राजस्थान (12%), उत्तर प्रदेश (11.66%) और उत्तराखंड (11.43%)।

विधानसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में यह छह राज्य टॉप पर हैं। हम इस सीरीज में राज्यवार विश्लेषण करेंगे कि इन राज्यों (छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक क्यों है।

इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश के बारे में जानेंगे:

उत्तर प्रदेश अधिकांश सूचकांकों पर अन्य राज्यों से पीछे हो सकता है, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में ऐसा नहीं है। ये इस राज्य की महिलाओं पर भी लागू होता है। राज्य ने भारत को पहली महिला प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी), पहली महिला मुख्यमंत्री (सुचेता कृपलानी), पहली दलित महिला मुख्यमंत्री (मायावती), और यहां तक कि पहली महिला राज्यपाल (सरोजिनी नायडू) भी दिया हैं।

उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं। आखिरी विधानसभा चुनाव (2022) में हुआ था। तब 403 विधायकों में से 47 महिलाएं थीं। इस साल की शुरुआत में हुए उपचुनाव में एक और महिला को जीत मिली। इस तरह उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में शीर्ष 5 राज्यों में से एक है।  

8 जनवरी 2022 को पांच राज्यों के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा करते हुए, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने बताया था कि 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश की मतदाता सूची में 52 लाख महिलाओं को जुड़ी हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग 46.6% है।

राज्य में साल-दर-साल बढ़ रही है महिला MLA की संख्या

राज्य में महिला विधायकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2007 के विधानसभा चुनाव में 370 महिला उम्मीदवार थीं। उनमें से सिर्फ 23 चुनी गईं। उसी वर्ष बहुजन समाज पार्टी को बहुमत वाली और मायावती मुख्यमंत्री बनीं। 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की, तो महिला विजेताओं की संख्या (35) और प्रतियोगियों (583) की संख्या भी बढ़ी। 2017 में और भी अधिक महिलाओं ने जीत हासिल की (42)। हालांकि महिला प्रतियोगियों की संख्या घटकर   कम हो गई।

2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 155 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, तब पार्टी का नारा था “लड़की हूं, लड़ सकती हूं”। हालांकि कांग्रेस की सिर्फ एक महिला उम्मीदवार को ही जीत मिली थी। ज्यादातर की जमानत जब्त हो गई थी। भाजपा ने  45, सपा ने 42 और बसपा ने 38 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।

राजनीतिक परिवार वाली महिला नेत्रियाँ

राजनीति से पारिवारिक जुड़ाव रखने वाली प्रमुख मौजूदा महिला विधायकों में भाजपा की रायबरेली विधायक अदिति सिंह हैं। वह पूर्व विधायक अखिलेश सिंह की बेटी हैं। उन्होंने इस सीट से कांग्रेस, निर्दलीय और पीस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लगातार जीत दर्ज कर रिकॉर्ड बनाया है। 2017 में भारी अंतर से जीतकर वह भाजपा में चली गई और 2022 में अपने सपा प्रतिद्वंद्वी को लगभग 7,000 वोटों से हराया।

ऐसा ही एक उदाहरण कांग्रेस की रामपुर खास से विधायक आराधना मिश्रा हैं। वह दिग्गज कांग्रेस नेता और सांसद प्रमोद तिवारी की बेटी हैं। 2014 में संसद में जाने से पहले वह इस सीट से नौ बार विधायक रहे थे। पिता के सीट छोड़ने के बाद बेटी ने संभाला। पहले वह उपचुनाव जीतीं। फिर 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भी जीत हासिल की। पिछले साल जीतने वाले केवल दो कांग्रेस नेताओं में से वह एक हैं। उन्होंने अपने बीजेपी प्रतिद्वंद्वी को 14,000 वोटों से हराया था।

छिबरामऊ से बीजेपी विधायक अर्चना पांडे पार्टी के पूर्व सांसद आरपी त्रिपाठी की बेटी हैं। पिछले कुछ वर्षों में पांडे ने पार्टी में अपने लिए जगह बनाई है और संगठनात्मक कार्यों में सक्रिय हैं। उन्होंने पहली योगी आदित्यनाथ सरकार में खनन, उत्पाद शुल्क और निषेध राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था।

सिराथू से सपा विधायक पल्लवी पटेल, दिवंगत नेता सोने लाल पटेल की बेटी हैं। असमोली से सपा विधायक पिंकी सिंह यादव पूर्व कांग्रेस सांसद बृजेंद्र पाल सिंह की बेटी हैं। चायल से सपा विधायक पूजा पाल, पूर्व विधायक राजू पाल की पत्नी हैं। मछलीशहर से सपा विधायक रागिनी सोनकर, पूर्व विधायक कैलाश सोनकर की बेटी हैं और अमेठी के सपा विधायक महराजी प्रजापति पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं।

दिग्गजों में 68 वर्षीय गुलाब देवी चार बार विधायक रही हैं और वर्तमान आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं। वह भाजपा के पूर्व राज्य उपाध्यक्षों की सूची में शामिल रही हैं। चार बार की विधायक सपा की 60 वर्षीय विजमा यादव, अपने पति और पूर्व विधायक जवाहर यादव की हत्या के बाद चुनी गई थीं। कांग्रेस की आराधना मिश्रा, विधायक के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल पूरा कर रही हैं।

आगामी चुनाव और राज्य में महिला प्रतिनिधित्व

भाजपा महिला मोर्चा की प्रवक्ता चेतना पांडे ने हाल ही में महिला आरक्षण अधिनियम पर केंद्रित एक अभियान को अंतिम रूप देने के लिए एक बैठक की थी। पांडे इस कानून (नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देती हैं और कहती हैं, “हमारी पार्टी ने दिखाया है कि हम महिला अधिकारों की परवाह करते हैं। इसके अलावा, हम एकमात्र पार्टी हैं जो संगठन में महिलाओं को 33% आरक्षण देती है। हम हर बूथ और विधानसभा में अभियान चलाकर महिलाओं तक पहुंचेंगे और उन्हें इसके बारे में जागरूक करेंगे।”

यह पूछे जाने पर कि क्या इसका मतलब यह है कि भाजपा आगामी चुनावों में महिलाओं को 33% टिकट देगी? उन्होंने कहा, “ये पार्टी नेतृत्व द्वारा लिए जाने वाले निर्णय हैं, लेकिन निश्चित रूप से, जो महिलाएं नेतृत्व करने की इच्छुक हैं और उनमें क्षमता है, प्राथमिकता दी जाएगी।”

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले कहा था कि पार्टी आगामी चुनावों में महिलाओं को 20% टिकट देगी। पार्टी नेताओं का कहना है कि मजबूत महिला उम्मीदवारों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

सपा विधायक रागिनी सोनकर का कहना है कि उन्हें विश्वास है कि महिलाओं को मैदान में उतारने के मामले में पार्टी अन्य सभी पार्टियों से आगे रहेगी। नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 को लेकर वह कहती हैं, “भाजपा सरकार का अधिनियम महज एक स्टंट है क्योंकि इसे जल्द ही लागू नहीं किया जा सकता है।”