लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की नीति और चुनौती कुछ अलग लग रही है। उन्होंने उम्मीदवार बदल कर नामांकन के आखिरी दिन (25 अप्रैल) कन्नौज से खुद पर्चा दाखिल किया। इस चुनाव में पहली बार वह जहां एक ओर सपा को इस छवि से बाहर निकलना चाहते हैं कि सपा केवल मुस्लिम-यादवों की पार्टी है, वहीं कई मोर्चों पर एनडीए के साथ-साथ बसपा को पछाड़ने की भी चुनौती है।
समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने 62 उम्मीदवारों में से केवल चार मुस्लिम और पांच यादव कैंडिडेट्स उतारे हैं। यहां तक कि पार्टी ने 17 आरक्षित सीटों के अलावा मेरठ और अयोध्या जैसी सामान्य सीटों पर भी दलितों को टिकट दिया है।
सपा ने अयोध्या से अवधेश प्रसाद को मैदान में उतारा है। पासी समुदाय से आने वाले अवधेश नौ बार विधायक रहे हैं। अभी वह अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।

Meerut Lok Sabha Election 2024: सपा ने उतारा जाटव उम्मीदवार
मेरठ में सपा ने सामान्य सीट पर जाटव उम्मीदवार सुनीता वर्मा को मैदान में उतारा है। वे नगर निगम की अध्यक्ष रह चुकी हैं और प्रभावशाली दलित नेता और पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी हैं। जाटव को बसपा का परंपरागत वोटर माना जाता है। इस बार बसपा से सपा का गठबंधन नहीं हो पाया है तो जाटव उम्मीदवार उतार कर बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की सपा की नीति कितनी कारगर साबित होगी, यह चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चल सकेगा।
सपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की 28 सीटों में से नौ कुर्मी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। उसे उम्मीद है कि अपना दल (कमेरवादी) की पल्लवी पटेल के अलग होने का असर इससे कम होगा।

SP PDA Politics : पिछड़े समुदाय पर सपा का जोर
स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से हुए नुकसान की भरपाई और भाजपा में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के पद को लेकर चल रहे आंतरिक कलह का फायदा उठाने के लिए सपा ने शाक्य, मौर्य, सैनी और कुशवाहा समुदायों के उम्मीदवारों को छह टिकट दिए हैं। पार्टी का मानना है कि अगर 50% कुर्मी वोट भी मिल जाते हैं, तो अपना दल (सोनेलाल) को हरा कर एनडीए को झटका दिया जा सकता है। सपा ने अपने संस्थापक सदस्य स्वर्गीय बेनी प्रसाद वर्मा की पोती श्रेया वर्मा को गोंडा से टिकट देकर भी कुर्मियों को रिझाने की कोशिश की है।
पार्टी ने सबसे पिछड़े समूह में आने वाले निषाद और बिंद समुदायों के पांच उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा है।
अखिलेश यादव ने इस बार पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक (पीडीए) के फार्मूले पर आधारित चुनावी रणनीति बनाई है और टिकट बंटवारे में भी इसका ख्याल रखा।
Yadav Vote Politics: यादव वोट बैंक बचाने की चुनौती
इन सबके साथ, सपा के सामने यादव वोट बैंक में सेंध लगने से बचाने की चुनौती भी है। शायद इसी वजह से अंत में अखिलेश यादव खुद भी मैदान में उतरे हैंं।
उत्तर प्रदेश में कन्नौज, मैनपुरी, बदायूं और फिरोजाबाद की सीटों को यादव बेल्ट की सीटें कहा जाता है। इन सीटों के अलावा एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, आजमगढ़, फैजाबाद, संत कबीर नगर, बलिया, कुशीनगर और जौनपुर ऐसे जिले हैं जहां पर यादव मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं।

Mainpuri Lok Sabha Election 2024: मैनपुरी से डिंपल फिर मैदान में
अखिलेश के अलावा यादव बेल्ट की सीटों से उनकी पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव फिरोजाबाद से, शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। डिंपल यादव ने मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद दिसंबर, 2022 में मैनपुरी सीट से 2.88 लाख वोटों के अंतर से उपचुनाव जीता था। तब उनकी इस जीत में मुलायम सिंह यादव के निधन से मिली सहानुभूति का बड़ा योगदान था क्योंकि 2019 में जब मुलायम सिंह यहां से चुनाव लड़े थे तो उन्हें 94 हजार वोटों से जीत मिली थी।
समाजवादी पार्टी ने पहले कन्नौज सीट से तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था लेकिन दो दिन के भीतर ही अखिलेश यादव ने इस सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान करने के बाद नामांकन भी कर दिया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि अखिलेश यादव को कन्नौज से खुद मैदान में उतरना पड़ा जबकि पहले वह इसके लिए तैयार नहीं दिखाई दे रहे थे।
Mulayam Singh Yadav Mainpuri: सिर्फ मैनपुरी में जीती थी सपा
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज, फिरोजाबाद, बदायूं और मैनपुरी की सीटों पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इनमें से सिर्फ एक सीट (मैनपुरी) पर ही सपा को जीत मिली थी। कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं से धर्मेंद्र यादव चुनाव हार गए थे। मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह यादव को जीत मिली थी।

Kannauj Lok Sabha Chunav 2024: तेज प्रताप का टिकट काटा
कन्नौज सीट से अखिलेश यादव का चुनाव लड़ना इस बात को साबित करता है कि अखिलेश यादव अब बीजेपी को यादव बेल्ट में सेंध नहीं लगाने देना चाहते। अगर अखिलेश की जगह तेज प्रताप यादव इस सीट से चुनाव लड़ते तो भी सपा का यहां पर दावा कमजोर नहीं था। ऐसा कहने के पीछे वजह यह है कि कन्नौज में 1999 से 2019 तक यादव परिवार ही जीतता रहा है।
1999 में अखिलेश के पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, 2000 से 2012 तक खुद अखिलेश यादव और 2012 से 2019 तक उतनी उनकी पत्नी डिंपल यादव इस सीट से सांसद रह चुकी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने डिंपल यादव को हराया था। हालांकि तब भी जीत का मार्जिन सिर्फ 12 हजार वोटों का ही रहा था।
अखिलेश के कन्नौज से चुनाव लड़ने से यह बात समझ आती है कि वह इस सीट के साथ ही यादव बेल्ट की अन्य सीटों को भी बीजेपी से वापस लेना चाहते हैं और यादव मतदाताओं के समर्थन के बिना ऐसा कर पाना मुश्किल है।

Bjp Yadav Politics: यादव बेल्ट में काम कर रही भाजपा
2001 में सोशल जस्टिस कमेटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश के पिछड़े समुदाय में यादवों की हिस्सेदारी 19.40% है। निश्चित रूप से बीजेपी इतने अहम वोट बैंक को अपने पाले में करना चाहती है। बीजेपी ने 2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद से ही उत्तर प्रदेश में यादव मतदताओं को अपनी ओर लाने की कोशिश की है। इसके लिए पार्टी ने इस समाज से आने वाले नेताओं को बड़े पदों से नवाजा है। हरनाथ यादव को राज्यसभा भेजने के साथ ही जौनपुर से विधायक गिरीश चंद्र यादव को योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। बीजेपी ने सुभाष यदुवंश को उत्तर प्रदेश में युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें विधान परिषद भी भेजा। इस तरह पार्टी यादव नेताओं को लगातार आगे कर रही है।
Azamgarh By Election Result 2022: आजमगढ़ में जीती थी बीजेपी
बीजेपी को अपनी कोशिशों का फायदा साल 2022 में आजमगढ़ संसदीय सीट के उपचुनाव में तब हुआ था जब उसके प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ यहां से चुनाव जीते थे। निरहुआ ने साढ़े 8 हजार वोटों के अंतर से अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराया था।

BJP Mohan Yadav: डॉ मोहन यादव पहुंचे यादव मतदाताओं तक
दिसंबर, 2023 में मध्य प्रदेश में फिर से सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने डॉ. मोहन यादव को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद पार्टी ने एक विशेष रणनीति के तहत डॉ. मोहन यादव को उत्तर प्रदेश और बिहार में यादव मतदाताओं के बीच भेजा है। डॉ. मोहन यादव पटना और लखनऊ के साथ ही उत्तर प्रदेश के कई शहरों में यादव सम्मेलनों में शिरकत कर चुके हैं। इन सम्मेलनों में वह इस बात को दोहराते हैं कि भाजपा ने उन्हें मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनकर पूरे यादव समाज का सम्मान किया है।
उत्तर प्रदेश में लगभग 10% यादव मतदाता हैं और मुलायम सिंह यादव अपने मुस्लिम-यादव समीकरण के चलते ही तीन बार खुद और एक बार अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रहे। लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली लगातार हार के बाद अखिलेश यादव के लिए अपने सजातीय मतदाताओं का समर्थन हासिल करना जरूरी हो गया है।
किस ओर हैं यादव मतदाता?
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 60% यादव मतदाताओं ने सपा-बसपा का समर्थन किया जबकि 23% ने बीजेपी और 5% ने कांग्रेस को वोट दिया। लेकिन इस चुनाव में बसपा अलग लड़ रही है और निश्चित रूप से इससे गठबंधन को मिलने वाले वोटों में बिखराव होगा। इसलिए अखिलेश यादव ज्यादा सतर्क हैं।
निश्चित रूप से अखिलेश यादव के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा का है और देखना होगा कि क्या यादव मतदाता इस बेल्ट में सपा की ओर लौटेंगे या नहीं?