भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा भी कहा जाता है क्योंकि यह तीन रंगों केसरिया, सफेद और हरे रंग के संयोजन से बना है। नागरिकों के एक बड़े वर्ग के बीच ऐसी गलतफहमी है कि तिरंगे का केसरिया रंग हिंदुओं और हरा रंग मुसलमानों का प्रतीक है। जिस संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव पेश और पारित किया गया था, वहां नेहरू ने साफ कर दिया था कि झंडे से कोई सांप्रदायिक संकेत नहीं जुड़ा है।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

नेहरू ने पेश किया था राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव

आजादी की तारीख से महज तीन सप्ताह पहले 22 जुलाई 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव पेश किया था। इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को पेश करते हुए उन्होंने कहा था, ”माननीय राष्ट्रपति जी मैं यह प्रस्ताव पेश करते हुए, बड़े गर्व का अनुभव कर रहा हूं। हम रिसॉल्व लेते हैं कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज क्षैतिज तिरंगा होगा, जिसमें गहरा केसरिया, सफेद और हरा रंग समानुपात में होगा। बीच की सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र होगा, जो चरखा को निरूपित करेगा। चक्र का डिजाइन उसी तरह का होगा जिस तरह का डिजाइन सारनाथ में रखी अशोक की लाट के चक्र का है। चक्र का व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के अनुपात में होगा।”

नेहरू ने दूर की रंगों की गलतफहमी

तिरंगे को लेकर फैली धारणाओं और मिथकों को नेहरू ने संविधान सभा में ही खारिज कर दिया था। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ में संविधान सभा में नेहरू के दिए भाषणों का जिक्र मिलता है। जिसके मुताबिक, नेहरू ने कहा था, ”यह एक ऐसा झंडा है, जिसके बारे में अलग-अलग बातें कही जाती है। कई लोग, इसका गलत मतलब लगा बैठे हैं। वे लोग इसे सांप्रदायिक नजरिए से समझते हैं। ये लोग मानते हैं कि इसका कोई हिस्सा इस या उस समुदाय की नुमाइंदगी करता है। लेकिन मैं कह सकता हूं कि जब यह झंडा तैयार किया गया तो कोई सांप्रदायिक संकेत इसमें नहीं जोड़ गए।”

राष्ट्रीय ध्वज किसका प्रतीक?

इस सवाल का जवाब भी नेहरू राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव पेश करते हुए देते हैं। वह कहते हैं, ”हमने एक ऐसे झंडे के बारे में सोचा जो पूरे तौर पर और अपने हर हिस्से से एक मुल्क के जज्बे का इजहार करे, उसकी परंपराओं का इजहार करे। एक ऐसी मिली-जुली भावना और परंपरा को खुद में समेटे जो हजारों साल की यात्रा में हिंदुस्तान में पनपी… यह झंडा बहुत सी दूसरी खूबसूरत चीजों का भी प्रतीक होगा। यह झंडा दिलों दिमाग से जुड़ी हर उस चीज का प्रतीक होगा जिसने इंसान और मुल्क की जिंदगियों को इज्जत बख्शी है।”  

संविधान सभा में चर्चा के दौरान नेहरू चक्र से लेकर झंडे के कपड़े तक के चयन की वजह को बताते हैं। पूरे भाषण को ध्यान में रखते हुए उसका सार निकाले तो यही मालूम चलता है कि नेहरू तिरंगे को भारत के हजारों साल के इतिहास और महान परंपरा से जोड़कर देखते हैं। उनके लिए झंडा आजादी का प्रतीक था, ना कि किसी संप्रदाय का।