भारतीय इतिहास में 19 अप्रैल के नाम कई महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज हैं। 19 अप्रैल, 1451 को बहलोल लोदी दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठे थे। लोदी वंश ने 1451 से 1526 तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया था। 19 अप्रैल को ही 1910 में युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे को फांसी हुई थी। 19 अप्रैल, 1950 को जनसंघ (अब भाजपा) के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, वह कैबिनेट से त्यागपत्र देने वाले पहले व्यक्ति थे।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) ने इनमें से केवल एक घटना का जिक्र किया है। परिषद की वेबसाइट पर ‘आज का इतिहास’ बताते हुए सिर्फ अनंत लक्ष्मण कान्हेरे की फांसी का जिक्र किया गया है। क्या इसे इन दिनों इतिहास को लेकर चल रही बहस में एक पक्ष के आरोप और दूसरे पक्ष की दलील से जोड़ कर देखा जा सकता है? बता दें कि हाल ही में एनसीईआरटी ने अपनी किताबों से मुगल दरबार से जुड़ी कई बातें हटा दी हैं। मौलाना अबुल कलाम आजाद का भी नाम हटा दिया गया है।
इतिहास को लेकर इस दौर में क्या चल रहा है? आजकल विद्वानों ही नहीं, नेताओं के बीच भी यह चर्चा का विषय है। हाल ही में जब एनसीईआरटी की किताबों से इतिहास के कई तथ्य हटाए गए तो यह बहस और तेज हुई। कई विद्वान और नेता कह रहे हैं कि इस दौर में इतिहास बदला, तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और नए सिरे से इतिहास लिखने की भी कवायद की जा रही है। यह मुगलों, मुसलमानों और मौजूदा सरकार या सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ जाने वाली बातों का जिक्र इतिहास से हटाने की कवायद का हिस्सा है। दूसरी ओर, कुछ विद्वानों का मानना है कि इतिहास लेखन में भारत और भारतवासियों की भूमिका की अनेदखी की गई है, कई गैरजरूरी बातों या गलत संदर्भों को इसमें शामिल किया गया है। इसलिए इसमें सुधार की जरूरत है।
जहां एनसीईआरटी ने हाल ही में इतिहास की किताबों में कई बदलाव किए हैं, वहीं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) इतिहास लिखने में जुटा है। ICHR के मेंबर सेक्रेटरी उमेश अशोक कदम का एक बयान मीडिया में छपा है। जिसके मुताबिक, उन्होंने नवंबर 2022 में बताया था कि क्षेत्रीय भाषाओं, लिपियों को स्रोतों की तरह इस्तेमाल कर ‘इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा है। देश भर में सौ से अधिक इतिहासकार इस काम में लगे हैं। इसका पहला वॉल्यूम मार्च 2023 में आ सकता है।
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में ICHR के मेंबर सेक्रेटरी का एक बयान प्रकाशित हुआ है, जिसके मुताबिक ‘इतिहास के पुनर्लेखन’ को लेकर शुरू किए गए प्रोजेक्ट का नाम ‘Comprehensive history of India’ है। यह सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक भारत के इतिहास को “दोबारा लिखने” की एक परियोजना है। तीन वर्षों में इसके 12 से 14 वॉल्यूम प्रकाशित होंगे। पहला वॉल्यूम मार्च 2023 में प्रकाशित होना था। लेकिन अभी यह प्रकाशित हुआ है या नहीं, इंटरनेट पर खोजने से इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं मिली।
हालांकि, 13 फरवरी 2023 को तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया था कि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) ने ‘इतिहास के पुनर्लेखन’ की कोई परियोजना शुरू नहीं की है।
दिल्ली सल्तनत को आईसीएचआर ने प्रदर्शनी से भी रखा था बाहर
इसी साल जनवरी में ICHR द्वारा दिल्ली की ललित कला अकादमी में ‘मध्यकालीन भारत का गौरव: अल्पज्ञात भारतीय राजवंशों (8वीं-18वीं शताब्दी तक)’ विषय पर एक प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। इसमें मुगलों और दिल्ली सल्तनत को शामिल नहीं किया गया था। तब आईसीएचआर के मेंबर सेक्रेटरी ने ‘इंडिया टुडे’ से कहा था, “…इतिहास को मुग़ल या सल्तनत केंद्रित नहीं होना चाहिए।” उन्होंने कहा था कि वह मुस्लिम राजवंशों का भारतीय संस्कृति से सीधा संबंध नहीं मानते। उनका बयान था, “वे लोग (मुस्लिम) मध्य पूर्व से आए थे और उनका भारतीय संस्कृति से सीधा संबंध नहीं था। मध्ययुगीन काल में इस्लाम और ईसाई धर्म भारत में आए और भारतीय सभ्यता को उखाड़ फेंका और यहां की ज्ञान प्रणाली को नष्ट किया।”
इतिहास पर दक्षिणपंथी सोच हावी करने का आरोप
प्रसिद्ध इतिहासकार एस. इरफान हबीब ने जनसत्ता.कॉम को दिए एक हालिया इंटरव्यू में बताया कि आज इतिहास लिखने या इस विषय का सिलेबस तैयार करने वाले लोगों में सभी दक्षिणपंथी सोच वाले ही हैं। वे इसी सोच को इतिहास पर भी हावी कर रहे हैं। हबीब का कहना है कि कांग्रेस की सरकारों में एक तरह की सोच वाले इतिहासकारों का वर्चस्व नहीं बन सका था। लेकिन, आज के दौर में दक्षिणपंथी सोच वालों का पूरा वर्चस्व है।
ICHR के कर्ता-धर्ता कौन
वर्तमान में ICHR के अध्यक्ष प्रोफेसर राघवेंद्र तंवर हैं। प्रोफेसर एमेरिटस और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार तंवर पंजाब हिस्ट्री कांफ्रेंस और इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। प्रोफेसर तवंर को 2016 में हरियाणा इतिहास और संस्कृति अकादमी का निदेशक नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2002-2005 तक यूजीसी के राष्ट्रीय फेलो के रूप में भी काम किया है, जो अकादमिक क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित पद था। प्रोफेसर तवंर की कई किताबें और शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।
परिषद के मेंबर सेक्रेटरी उमेश अशोक कदम हैं। वह दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। जेएनयू की वेबसाइट पर मौजूद प्रोफाइल के मुताबिक प्रो. कदम ने साल 1996 में डीडी शिंदे सरकार कॉलेज, कोल्हापुर से इतिहास में बीए किया है। साल 1998 में शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर से इतिहास में एम.ए. और 2005 में इतिहास में ही पीएचडी भी किया है।
प्रोफेसर उमेश कदम ने 1999 में शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर से बतौर लेक्चरर करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे में भी पढ़ाया और साल 2013 से जेएनयू में पढ़ा रहे हैं। प्रोफेसर कदम मध्यकालीन भारत के अनेक टॉपिक पर विशेषज्ञता रखते हैं। उनकी कई किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने ICHR द्वारा विनायक दामोदर सावरकर पर प्रकाशित एक किताब का संपादन किया है।
ICHR के कर्ता-धर्ताओं में अध्यक्ष और मेंबर सेक्रेटरी के अलावा डायरेक्टर (Research & Administration) डॉ. ओम जी उपाध्याय, डायरेक्टर (Journal, Publication & Library) और राजभाषा अधिकारी डॉ. राजेश कुमार, डिप्टी डायरेक्टर (Research) डॉ. एस.के अरुणी, डिप्टी डायरेक्टर (Library) डॉ. ज्योत्सना अरोड़ा, डिप्टी डायेक्टर (Publication) डॉ. एमडी नौशाद अली, डिप्टी डायरेक्टर (Journal) और सह-राजभाषा अधिकारी डॉ. सौरभ कुमार मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर (Research) डॉ. नूपुर सिंह, डिप्टी डायरेक्टर (Admn.) धर्मेंद्र सिंह, डिप्टी डायरेक्टर (Documentation) माल्विका गुलाटी, असिस्टेंट डायरेक्टर (Research) डॉ. नितिन कुमार, असिस्टेंट डायरेक्टर (Research) डॉ. विनोद कुमार, असिस्टेंट डायरेक्टर (Research) डॉ. प्रविण कुमार शर्मा, असिस्टेंट डायरेक्टर (Grant) रिजवान आलम भी शामिल हैं।
न्यूजलॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डिप्टी डायरेक्टर सौरभ कुमार मिश्रा पहले पत्रकार थे। उन्होंने भोपाल के एक कॉलेज से मीडिया स्टडीज में पीएचडी की है। उनके पास इतिहास की डिग्री नहीं है।
लोदी वंश ने बसाया आगरा
19 अप्रैल, 1451 को बहलोल लोदी द्वारा लोदी वंश की स्थापना के साथ ही सैयद वंश का अंत हो गया था। लोदी वंश के पद्चिन्ह भारत के विभिन्न इलाकों में आज भी देखने को मिलते हैं। दिल्ली में लोदी गार्डन, लोदी कॉलोनी और लोदी रोड जैसे इलाके हैं। राजधानी के चिराग दिल्ली में बहलोल लोदी का मकबरा आज भी सुरक्षित है।
निज़ाम खान सिकंदर लोदी, जिनके शासनकाल में वास्को डी गामा भारत में उतरे, लोदी शासकों में सबसे शक्तिशाली थे। उन्होंने बिहार और बंगाल में विजय प्राप्त की, ग्वालियर को अधीन किया और 1504 में आगरा शहर की स्थापना की। आगरा की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है, “दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक सुल्तान सिकंदर लोदी ने 1504 में आगरा की स्थापना की।” पूर्वांचल के जौनपुर की गद्दी पर 1484 ई0 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का आधिपत्य रहा था।