सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ईसाई समुदाय के दो संस्थाओं लंदन मिशनरी सोसायटी (London Missionary Society) और सीएसआई ग्रुप ऑफ क्रिश्चियन्स (CSI group of Christians) के बीच प्रॉपर्टी विवाद पर तीखी टिप्पणी की है। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच मद्रास हाई कोर्ट के दिसंबर 2021 के फैसले के खिलाफ दाखिल एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी। यह एसएलपी दोनों संस्थाओं के बीच प्रॉपर्टी विवाद से जुड़ा है।

क्या जीसस क्राइस्ट ने यही शिक्षा दी है?

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ (Justice KM Joseph) ने कहा कि दोनों संस्थाएं जिस तरीके से प्रॉपर्टी को लेकर लड़ रही हैं, उसका प्रभु ईसा मसीह की सीख से कोई लेना देना नहीं है। जस्टिस जोसेफ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि- कृपया समय-समय पर खुद को याद दिलाते रहें कि किस चीज के लिए लड़ रहे हैं। मुझे तो लगा कि आप अपनी आस्था की बात कर रहे हैं। क्या आपकी जिनपर आस्था है उन्होंने यही शिक्षा दी है? क्या आप जो कर रहे हैं उसका इससे (आस्था से) कोई लेना-देना है? यह वाकई बहुत शर्मनाक है…।

जस्टिस जोसेफ (Justice KM Joseph) ने कहा कि मुझे यह इसलिए नहीं कहना चाहिए कि मैंने भी इनमें से कुछ पार्टीज का प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन कहीं ना कहीं आपको एक बैलेंस तो बनाना होगा।

क्या है पूरा विवाद?

Live Law की एक रिपोर्ट के मुताबिक लंदन मिशनरी सोसायटी (London Missionary Society) भारत में साल 1800 के आसपास आई थी। बाद में साल 1922 के आसपास सोसाइटी की प्रॉपर्टीज को मैनेज करने के लिए एल एम एस कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। इससे पहले साल 1908 में साउथ इंडियन यूनाइटेड चर्च एसोसिएशन (South Indian United Church Association) की भी लंदन मिशन सोसायटी के सहयोग से स्थापना हुई थी।

फिर साल 1947 में सीएसआई बना और तय किया गया कि एलएमएस (London Missionary Society) के सारे सदस्य अपने आप एसआई में कन्वर्ट हो जाएंगे। करीब 20 साल बाद एलएमएस के पास जो प्रॉपर्टीज थीं, उन्हें भी सीएसआई को ट्रांसफर कर दिया गया, जबकि एलएमएस के मेंबर्स को इसका कोई लाभ नहीं मिला, जबकि प्रॉपर्टी को लेकर पहले ही विवाद चल रहा था। इसके बाद विवाद बढ़ता गया।