उत्तराखंड के वन मंत्री को अपने मातहत काम करने वाले आईएफएस अफसर का चेहरा पसंद नहीं था। उन्होंने एक नोट बनाया और अधिकारी को ऐसी पोस्टिंग पर भेज दिया जो उनके लायक नहीं थी। उन्होंने सरकार के आदेश को CAT में चुनौती दी। ट्रिब्यूनल ने मामले की सुनवाई की और अपने फैसले में माना कि सरकार को अधिकार है कि वो किसी भी अफसर को तब्दील कर दे। लेकिन ये फैसला पनिशमेंट के लिए नियमों को ताक पर रखकर किया गया था। लिहाजा इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। ट्रिब्यूनल ने आईएफएस अधिकारी के ट्रांसफर का आदेश रद कर सरकार को तगड़ा झटका दे दिया।
कैट ने आईएफएस अफसर राजीव भरतारी को उत्तराखंड का प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर अफसर बनाने का आदेश दिया है। कैट (इलाहाबाद) की नैनीताल सर्किट के जस्टिस ओम प्रकाश ने सभी पक्षों को सुनने के बाद माना कि राजीव भरतारी का कैरियर बेदाग है। उन्हें कभी कोई चार्जशीट भी सर्व नहीं की गई। हालांकि सरकार का कहना है कि वो PCCF में अपनी ड्यूटी का निर्वहन सही तरीके से नहीं कर पा रहे थे। लेकिन CAT ने कहा कि इसका मतलब ये नहीं कि उन्हें कहीं भी और किसी भी तरीके से ट्रांसफर कर दो। तबादला करते समय कम से कम जरूरी प्रोटोकॉल तो फालो करना चाहिए था और तबादला दंड देने के लिए नहीं होना चाहिए था।
PCCF (HoFF) में दो साल पूरे होने से पहले किया गया तबादला
भरतारी 1986 बैच के आईएफएस अफसर हैं। 31 दिसंबर 2020 के एक आदेश के बाद वो PCCF (HoFF) में पदोन्नत हो गए। 1 जनवरी 2020 को उन्होंने अपना नया चार्ज भी ले लिया। 25 नवंबर 2021 को जारी एक आदेश के बाद वो उत्तराखंड बायो डाइवर्सिटी बोर्ड के चेयरमैन बना दिए गए। हालांकि तबादले में कोई दिक्कत नहीं लेकिन ये पद किसी ज्वाइंट सेक्रेट्री लेवल के अफसर के लायक था। भरतारी को ये फैसला रास नहीं आया। उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में फैसले को चुनौती दे डाली।
सिविस सर्विसेज बोर्ड से नहीं ली गई अप्रूवल
भरतारी की दलील थी कि उनका तबादला PCCF (HoFF) में दो साल पूरे होने से पहले किया गया। ये IFS (Cadre) Amendment Rules, 2014 के सेक्शन 2(a)(3) का सीधे तौर पर उल्लंघन है। उनका तबादला करने से पहले सिविल सर्विसेज बोर्ड से अप्रूवल भी नहीं ली गई। ये IFS (Cadre) Amendment Rules, 2014 के सेक्शन 2(a)(5) की अवहेलना है। भरतारी का कहना था कि अपने तबादले के विरोध में उन्होंने उत्तराखंड के चीफ सेक्रेट्री के पास पेश होकर अपना पक्ष भी रखा। लेकिन जवाब नहीं मिला।
सरकार की दलील- भरतारी महकमे का काम नहीं संभाल पा रहे थे
सरकार की तरफ से अपने जवाब में कहा गया कि उत्तराखंड बायो डाइवर्सिटी बोर्ड के चेयरमैन का पद किसी भी तरह से कमतर नहीं आंका जा सकता। तबादला आदेश से पहले सिविल सर्विसेज बोर्ड से अप्रूवल न लेने पर सरकार की दलील थी कि भरतारी खुद भी उसके एक सदस्य थे। लिहाजा प्रोटोकॉल के हिसाब से मामले को सिविल सर्विसेज बोर्ड नहीं भेजा गया। सरकार का कहना था कि PCCF (HoFF) के डायरेक्टर का कहना था कि भरतारी महकमे का काम नहीं संभाल पा रहे थे। हिदायतों के बावजूद Corbett Tiger Reserve, रामनगर में गैरकानूनी गतिविध चल रही थीं।
CAT ने अपने फैसले में कहा कि बेशक भरतारी खुद सिविल सर्विसेज बोर्ड के सदस्य थे। लेकिन सरकार को बोर्ड के अन्य सदस्यों से रायशुमारी करनी चाहिए थी। ट्रिब्यूनल का कहना था कि जिस तरह से मंत्री के नोट पर भरतारी का तबादला कर दिया गया उसे कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता।