चंदन की लकड़ियों के तस्कर वीरप्पन के मामले में सेशन कोर्ट से सजायाफ्ता हो चुके 215 सरकारी मुलाजिमों के मामले में कोई भी फैसला देने से पहले मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस खुद उस गांव का दौरा करेंगे जहां वीरप्पन की तलाश में गए कर्मियों ने तबाही मचाई थी। हाईकोर्ट ने 215 मुलाजिमों की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस पी वेलूमुरगन ने कहा कि वो वछाती गांव का दौरा कर हकीकत का पता लगाएंगे। फिर फैसला देंगे।
सेशन कोर्ट ने फारेस्ट महकमे के 126, पुलिस के 84 और राजस्व विभाग के 6 मुलाजिमों को सजा सुनाई है। इन सभी ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। इस मामले में कुल 269 मुलाजिम आरोपी बनाए गए थे। इनमें से 54 की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी।
1992 में वीरप्पन की तलाश में वछाती गांव गए थे मुलाजिम
आरोप के मुताबिक कुख्यात तस्कर वीरप्पन की दहशत उस समय पूरे जोरों पर थी। सरकार के निर्देश पर तीनों महकमों (फारेस्ट, पुलिस और रेवेन्यू) ने उसको तलाश करने के लिए एक अभियान चलाया। जून 1992 में फारेस्ट के 155, पुलिस के 108 और राजस्व विभाग के 6 अफसर आदिवासी गांव वछाती में घुसे थे। आरोप है कि इन लोगों के हाथ वीरप्पन तो नहीं लगा लेकिन गांव वालों को इन लोगों ने नहीं बख्शा। वहां जमकर लूटपाट की गई। आरोप तो यहां तक भी है कि इन लोगों ने जानवरों को मारने के साथ एक महिला के साथ रेप भी किया।
सीपीआई (एम) ने दायर की थी जांच के लिए जनहित याचिका
इस अत्याचार के खिलाफ सीपीआई (एम) ने एक याचिका मद्रास हाईकोर्ट में दायर की थी। लेकिन अदालत ने उस पर सुनवाई से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट का मानना था कि सरकारी मुलाजिम इस तरह की हरकतें नहीं कर सकते। उसके बाद सीपीआई (एम) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट को हिदायत दी कि वो जल्दी से जल्दी इस जनहित याचिका को सुन कोई ठोस फैसला ले।
हाईकोर्ट ने बाद में मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश भी दिया। सरकार इस जांच के लिए तैयार थी लेकिन हाईकोर्ट की ही डबल बेंच ने सीबीआई जांच के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने उस चार्जशीट को भी खारिज कर दिया जिसमें गांव के लोगों पर तस्करी करने की बात कही गई थी।