आजादी के वक्त भारत कई रियासतों में बंटा हुआ था। कई ऐसी रियासतें भी थीं जिन्हें भारत के साथ मिलाने में बहुत जतन करना पड़ा था। इस मामले में ग्वालियर रियासत एक अपवाद के रूप में सामने आया।
ग्वालियर पहला ऐसा रियासत बना, जिसका सबसे आसानी से विलय संभव हो पाया। तत्कालीन गृह सचिव वी.पी. मेनन ने इसके लिए ग्वालियर रियासत की भरपूर तारीफ की थी।
जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत की नई सरकार ने जीवाजीराव को मध्य भारत का राज्य प्रमुख नियुक्त कर दिया। रहे। यह केवल नाम मात्र का पद था, जिस पर वह मई 1948 से अक्टूबर 1956 तक रहे।
राष्ट्र निर्माण में जीवाजीराव का सहयोग
ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक जीवाजीराव सिंधिया ने राष्ट्र निर्माण में कई तरह से सहयोग किया था। पहले तो ग्वालियर के भारत में विलय के साथ ही रियासत के राजकोष से 3.09 करोड़ रुपये भारत के राजकोष में चला गया।
इसके बाद जीवाजीराव ने अपने व्यक्तिगत कोष से 17 करोड़ रुपये का दान दिया, जो आज के हिसाब से 20 हज़ार करोड़ रुपये के बराबर है। ग्वालियर के शासक का यह सहयोग नए-नए आजाद हुए भारत को संवारने के लिए था।
रियासत के सिंहासन को मुसलमान गद्दी क्यों कहते थे?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई ने मंजुल प्रकाशन से छपी अपनी किताब ‘सिंधिया राजघराना: सत्ता, राजनीति और षडयंत्रों की महागाथा’ में ग्वालियर रियासत से जुड़ी एक दिलचस्प बात लिखी है।
वह लिखते हैं, “सिंधियाओं के पूर्वजों की हिंदू परम्पराओं में गहन आस्था थी, लेकिन उनका सिंहासन मुसलमान गद्दी या मुस्लिम तख्त कहलाता था, क्योंकि पूर्ववर्ती सिंधिया शासक 1858 तक मुगल साम्राज्य के नाम पर ही शासन करते थे। सिंधियाओं की 1930 के दशक तक मुस्लिमों के प्रति सद्भावना बनी रही। इसके बाद यह रियासत हिंदू महासभा के ‘एक गढ़’ में बदलती चली गई। इस बदलाव में अहम भूमिका सरदार चंद्रोजीराव आंग्रे ने निभाई थी, जो सरदार सम्भाजी आंग्रे के पिता थे। सम्भाजी आंग्रे ही बाद में विजया राजे के सलाहकार बने।”
गांधी हत्या का ग्वालियर कनेक्शन क्या है?
महात्मा गांधी की हत्या (30 जनवरी, 1948) में जो बंदूक इस्तेमाल हुआ था, उसे नाथूराम गोडसे ग्वालियर से ही खरीदकर लाया था। गांधी हत्या से तीन दिन पहले यानी 27 जनवरी को गोडसे और नारायण आप्टे ग्वालियर गए थे। रात में डॉ दत्तात्रेय परचुरे के घर ठहरे। 28 जनवरी को गोडसे और परचुरे बंदूक विक्रेता जगदीश प्रसाद गोयल से मिले और इटली की बनी ऑटोमैटिक बैरेटा माउज़र खरीदी।
दिलचस्प यह है कि इस बंदूक को ग्वालियर रेजिमेंट का एक कर्नल इथियोपिया से भारत लेकर आया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इस अफसर को महाराजा जीवाजीराव का एसीडी भी बनाया गया था। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
