भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, अंग्रेजों की गुलामी से उसे मुक्ति मिली थी। लेकिन एक बड़ा काम भी साथ आया था- जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ने भारत के साथ विलय करने से मना कर दिया। पहले से ही दो हिस्सों में बंट चुका भारत और ज्यादा बंटवारा नहीं देख सकता था। ऐसे में जनमत संग्रह करवा जूनागढ़ भारत में आया, बाद में सेना की कार्रवाई ने 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भी विलय करवा दिया। लेकिन जम्मू-कश्मीर उस समय अलग रहा।
पाकिस्तान की सनक और राजा हरि सिंह
जम्मू-कश्मीर में तब राजा हरि सिंह का शासन था। उन्होंने तब ना पाकिस्तान के साथ जाने का मन बनाया और ना ही भारत के साथ। उनकी तरफ से एक स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट पर साइन किया गया। पाकिस्तान ने तो इसे तुरंत स्वीकार कर लिया, लेकिन भारत को यह कभी मंजूर नहीं रहा। इस बीच पाकिस्तान अभी भी इस बात को पचा नहीं पा रहा था कि एक मुस्लिम बाहुल जम्मू-कश्मीर उसके साथ नहीं गया, इसके ऊपर एक हिंदू राजा वहां का प्रमुख रहा। ऐसे में उसने अपना दुस्साहस दिखाते हुए बड़ी साजिश रची।
घुसपैठियों की लूटपाट, पाक बेनकाब
यह बात 24 अक्टूबर 1947 की है जब पाकिस्तान की सेना ने कबाइलयों की आड़ में जम्मू-कश्मीर पर जबरदस्ती कब्जा करने की कोशिश की। इस कोशिश से कुछ महीने पहले ही पाकिस्तान की नापाक साजिश की सुगबुगाहट होने लगी थी। सीमावर्ती क्षेत्रों में लगातार लूटपाट की खबरें आ रही थीं, राजा हरि सिंह भी उससे परेशान थे। उस समय राजा हरि सिंह ने खुद पाकिस्तान की सरकार से अपील की थी कि इस लूटपाट पर रोक लगे, लेकिन काफी सहुलियत के साथ उनकी हर मांग को नजरअंदाज कर दिया गया।
ऑपरेशन गुलमर्ग, श्रीनगर तक साजिश
यह वो वक्त था जब मोहम्मद अली जिन्ना ने भी हरि सिंह को मनाने की कोशिश की थी, वे चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के साथ विलय कर ले। लेकिन जिन्ना की कोई भी गुहार हरि सिंह का मन नहीं बदल पा रही थी। ऐसे में पाकिस्तान की सरकार में, वहां की फौज में एक आक्रोश पनप रहा था, मुस्लिम बाहुल जम्मू-कश्मीर को अपने कब्जे में करने की चाहत बढ़ती जा रही थी। ऐसे में 24 अक्टूबर को पाकिस्तान की सेना ने कबाइलियों की आड़ में हमला कर दिया। पाक आर्मी के रिटायर्ड मेजर जनरल अकबर खान की किताब को सही माने तो पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन का नाम ‘गुलमर्ग’ रखा था।
भारत की कूटनीतिक जीत है ये सीजफायर
राजा हरि सिंह की सेना में बगावत
ऑपरेशन गुलमर्ग के तहत पाक सेना को श्रीनगर तक पहुंचना था, इसके लिए 22 हजार फौजियों की मदद ली गई और सीधे जम्मू-कश्मीर पर अटैक हुआ। उस समय जम्मू-कश्मीर के मुजफ्फराबाद और कुछ दूसरी जगहों पर राजा हरि सिंह की अपनी सेना सुरक्षा कर रही थी। लेकिन वो इतनी ताकतवर नहीं थी कि उन कबाइलियों और पाक सेना का मुकाबला कर पाती। इसके ऊपर राजा हरि सिंह की सेना में कई मुस्लिम फौजी थे, उनमें से कई पाकिस्तान के साथ मिल गए थे, ऐसे में हालात चिंताजनक होते जा रहे थे।
कैसे जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ?
एक तरफ राजा हरि सिंह बेबस दिख रहे थे, दूसरी तरफ कबाइलियों की लूटपाट काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी, महिलाओं का रेप हो रहा था, कई को मारा गया था, अस्पताल तक बख्शे नहीं जा रहे थे। अब हरि सिंह को भारत से मदद चाहिए थी, वे चाहते थे कि हिंदुस्तान की सेना जम्मू-कश्मीर की रक्षा करे। लेकिन नियम स्पष्ट था- जब तक भारत के साथ विलय नहीं हो जाता, भारत अपनी सेना जम्मू-कश्मीर नहीं भेज सकती थी। हरि सिंह के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा था और उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना।
दो तिहाई जम्मू-कश्मीर भारत ने कैसे जीता?
अब विलय हो गया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर को बचाना बाकी था। कबाइली लड़ाके तेजी से श्रीनगर की तरफ बढ़ रहे थे। ऐसे में दिल्ली से हरी झंडी मिलते ही भारतीय सेना ने मोर्चा संभाल लिया। भारत के कई जवान शहीद हुए, भीषण गोलीबारी हुई, लेकिन अंत में एक महीने के भीतर बारामूला, उरी, बडगाम और कश्मीर के बड़े हिस्से पर भारत ने अपना कब्जा वापस लिया। लेकिन तब मीरपुर, गिलगिट-बाल्टिस्तान जैसे इलाकों पर पाकिस्तान का कब्जा हुआ। इस बीच 1 जनवरी 1948 को भारत इसी मुद्दे को लेकर यूएन के पास चला गया और यूएन के दखल ने ही दिसंबर 31 1948 को सीजफायर करवा दिया। जम्मू-कश्मीर का दो-तिहाई हिस्सा भारत के पास आया और 30 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया।
लेकिन आजादी के बाद हुए इस एक हमले ने साफ कर दिया था कि पाकिस्तान धोखा देने वाला मुल्क है, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। बात जब भी जम्मू-कश्मीर की आएगी, उसके लिए ना कोई करार मायने रखेगा और ना ही कोई सीजफायर।
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