सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को अंतरिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने कहा है कि उनकी रेगुलर बेल पर हाईकोर्ट फैसला सुना सकता है। जब तक रेगुलर बेल नहीं मिलता, तीस्ता देश छोड़कर नहीं जा सकतीं।

कोर्ट ने उन्हें पासपोर्ट सरेंडर करने और जांच में सहयोग करने को कहा है। तीस्ता को 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में कथित रूप से फर्ज़ी दस्तावेज बनाने के आरोप में 26 जून से हिरासत में लिया गया था। गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

कैसे मिली जमानत?

तीस्ता की जमानत याचिका पर सुनवाई CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु भट की बेंच ने की। इस दौरान गुजरात सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, तीस्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील पेश की।

तीस्ता के बचाव में सिब्बल ने तर्क दिया कि FIR में 24 जून के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुनरावृत्ति है। कोई नया तथ्य नहीं है। एफआईआर से तीस्ता के खिलाफ अपराध का गठन ही नहीं हो रहा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि यह मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए जमानत पर हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। एफआईआर में वर्णित तथ्यों के अलावा भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

तमाम दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने कहा कि ”हमारे विचार में अपीलकर्ता अंतरिम जमानत पर रिहा होने की हकदार हैं।” अपनी लंबी टिप्पणी में बेंच ने स्पष्ट कर दिया कि हाईकोर्ट मामले के तमाम गुण-दोष के आधार पर स्वतंत्र रूप से विचार करेगा और इस न्यायालय द्वारा की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित नहीं होगा।

एक दिन पहले की थी कठोर टिप्पणी!

गुरुवार को तीस्ता को अंतरिम जमानत देने की इच्छा जाहिर करते हुए पीठ ने कठोर टिप्पणा की थी। कोर्ट को कुछ तथ्य बेहद परेशान करने वाले लगे, जिन्हें पांच प्वाइंट में समझा जा सकता है:

  1. तीस्ता 2 महीने से अधिक समय से हिरासत में है लेकिन अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है।
  2. उच्चतम न्यायालय द्वारा जकिया जाफरी मामले को खारिज करने के अगले ही दिन तीस्ता के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जिसमें कोर्ट की टिप्पणी के अलावा और कुछ नहीं है।
  3. गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत याचिका पर 3 अगस्त को नोटिस जारी उसे लम्बे समय के लिए टाल दिया।
  4. तीस्ता पर लगे आरोप हत्या या शारीरिक चोट पहुंचाने जैसे बहुत गंभीर अपराध नहीं हैं। बल्कि अदालत में दायर दस्तावेजों की कथित जालसाजी से संबंधित हैं।
  5. ऐसे कोई अपराध नहीं हैं जो जमानत देने पर रोक लगाते हों।