आज विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में चुनाव आयोग (Election Commission) व अन्य संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा का हनन हो रहा है। इस लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा है और आम आदमी पार्टी लगातार ईडी के खिलाफ सड़कों पर उतरी हुई है। जब बीजेपी विपक्ष में थी तो वह भी ऐसे ही आरोप लगाती रही थी। बीजेपी नेताओं ने ‘चुनाव आयोग को शेषण से बचाओ’ जैसे नारे भी लगाए थे।
अक्तूबर, 1990 की बात है। कांग्रेस पार्टी के नेता अर्जुन सिंंह ने चुनाव आयोग में एक अर्जी दाखिल की थी। इसमें मांग की गई थी कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का ‘कमल’ निशान रद किया जाए। 12 दिसंबर, 1990 को टी.एन. शेषण चुनाव आयुक्त बने। यह मामला उनके सामने आया। चुनाव चिह्न को लेकर विवाद का यह पहला मामला था जिसका निपटारा शेषण को करना था।
Lok Sabha Election से पहले अर्जुन सिंंह ने EC में दी थी बीजेपी के खिलाफ याचिका
बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने एक रथ यात्रा की थी, जिसमें कमल निशान का इस्तेमाल किया था। अर्जुन सिंंह का कहना था कि 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून में सेक्शन जोड़े जाने के बाद सभी पार्टियों के लिए अपने संविधान में बदलाव करना जरूरी हो गया था, ताकि धर्मनिरपेक्षता और देश की एकता व अखंडता के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता दर्शाई जा सके।अर्जुन सिंंह का कहना था कि बिना संविधान में बदलाव किए कोई पार्टी चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड नहीं हो सकती थी और न ही आयोग से चुनाव चिह्न पा सकती थी।
अर्जुन सिंंह का तर्क था कि बीजेपी ने अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए अभियान चलाया था। यह धर्म से जुड़ा मसला था। लिहाजा पार्टी धर्मनिरपेक्ष नहीं रह गई थी। इसलिए बीजेपी का रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग रद कर दे और ‘कमल’ निशान भी जब्त कर ले, भले ही उसने अपना संविधान बदल भी क्यों न लिया हो।
बीजेपी ने इस पर अपना जवाब दाखिल किया। इसमें उसने कहा कि चुनाव आयोग को इस तरह की याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है और न ही चुनाव आयोग के पास किसी रजिस्टर्ड पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद करने का अधिकार है।
शेषण ने 12 दिसंबर, 1990 को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला था। अर्जुन सिंंह ने उसी दिन एक नई याचिका दायर की और मांग की कि चुनाव आयोग बीजेपी का ‘कमल’ निशान जब्त करने संबंधी अंतरिम आदेश जारी करे। मामले पर तत्काल फैसला इस लिहाज से जरूरी था क्योंकि मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव होने वाले थे।
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Election Commission के मुखिया टीएन शेषण के फैसले से भड़की बीजेपी
24 दिसंबर को शेषण ने मामले की पहली सुनवाई की। बीजेपी ने समय मांग लिया। दो हफ्ते बाद फिर सुनवाई हुई। बीजेपी ने चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। यह तर्क देकर कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने अर्जुन सिंंह की याचिका पर उसे तलब कर लिया, लेकिन एक साल पहले उसकी एक ऐसी ही याचिका पर सुनवाई तक से इनकार कर दिया था। बीजेपी ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया। हालांकि, दोनों मामले अलग-अलग थे।
मामले की सुनवाई चलती रही। अंतत: 12 अप्रैल को टी.एन. शेषण ने अपना फैसला दिया। फैसला अर्जुन सिंंह के पक्ष में गया। बीजेपी भड़क गई। शेषण पर सीधे तौर पर पक्षपात और कांग्रेस से मिलीभगत के आरोप लगाए।
लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व अन्य भाजपा नेताओं ने 15 अप्रैल को शेषण के फैसले के खिलाफ रैली की और गिरफ्तारी दी। उन्होंने ‘चुनाव आयोग को शेषण से बचाओ’ जैसे नारे लगाए।
लोकसभा चुनाव करीब था। बीजेपी दूसरे चुनाव चिह्न पर लड़ने की सोच रही थी। इसी बीच, 16 अप्रैल को सभी राजनीतिक दलों की सहमति के आधार पर तय हुआ कि चुनाव चिह्न से जुड़े सभी विवाद आम चुनाव तक लंबित रख दिए जाएं। इस तरह बीजेपी को ‘कमल’ निशान का विकल्प तलाशने की जरूरत नहीं पड़ी और पार्टी ने ‘कमल’ निशान पर ही चुनाव लड़ा।
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टी.एन. शेषण ने रूपा प्रकाशन से प्रकाशित आत्मकथा ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लास’ में यह वाकया बयां किया है। शेषण के निधन के बाद यह किताब लोगों के सामने आई थी। शेषण 2019 में दिवंगत हो गए थे।

टी.एन. शेषण देश के सबसे चर्चित मुख्य चुनाव आयुक्तों में से एक रहे। उनके इस पद पर आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इस पद की पेशकश पर वह बड़े असमंजस की स्थिति में थे। राजीव गांधी से सलाह लेने रात के दो बजे पहुंच गए थे। फिर भी असमंजस खत्म नहीं हुआ। जब कहीं से उन्हें सुकून देने वाली सलाह नहीं मिली, तब उन्होंने एक शख्स से अंतिम सलाह लेने का तय किया। इसके लिए फोन मिलाया और जब उधर से फोन आया तो शेषण का सारा असमंजस दूर हो गया था। वो पूरा वाकया यहां पढ़ सकते हैं।
