सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को दिल्ली में शेल्टर होम (Shelter Homes) के विध्वंस को चुनौती देने वाली याचिका को 20 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के समक्ष पहुंचा था। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि पिछली बार जब याचिका का उल्लेख किया गया था, तब से नौ और रैन बसेरों को तोड़ दिया गया है।
वकील ने शीर्ष अदालत से 17 मार्च को मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया, हालांकि CJI ने इसे अगले सोमवार के लिए सूचीबद्ध किया।
इससे पहले 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा सराय काले खां में बेघरों के लिए बनाए गए एक रैन बसेरे को तोड़े जाने से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की थी।
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने उठाया था मामला
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण भी इस मामले को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए उठा चुके हैं। 15 फरवरी को इस मामले में जस्टिस हृषिकेश रॉय और दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनवाई भी की थी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति एस आर भट की अनुपस्थिति में जस्टिस हृषिकेश रॉय के समक्ष मामले को रखने की स्वतंत्रता दी थी।
ऐसे में सोमवार को जब वकील ने तत्काल सुनावई की इच्छा जाहिर करते हुए 17 मार्च की तारीख मांगी तब प्रशांत भूषण ने बताया कि यह मामला न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।
वकील ने तब स्पष्ट किया कि चूंकि न्यायमूर्ति भट बैठे नहीं रहे और विध्वंस पहले ही शुरू हो चुका था, इसलिए मामले की तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।
CJI ने तब मामले को न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया, जिसमें कहा गया कि चूंकि न्यायमूर्ति दत्ता न्यायमूर्ति भट के साथ बैठे थे, इसलिए इसका उल्लेख वहां किया जाना था।
क्यों तोड़े जा रहे हैं रैन बसेरे?
प्रशांत भूषण द्वारा दायर आवेदन में आरोप लगाया गया है कि रैन बसेरों को तोड़ने का निर्णय DUSIB द्वारा जारी एक प्रस्ताव के बाद राज्य स्तरीय आश्रय निगरानी समिति (SLSMC) की बैठक में लिया गया था।
प्रस्ताव में विध्वंस के लिए दिए गए कारण थे कि यह “हिस्ट्री-शीटर्स का ठिकाना” बन गया है और यह साइट दिल्ली में आयोजित होने वाले G20 शिखर सम्मेलन के लिए चयनित स्थानों में से एक है।
फैसले को चुनौती देते हुए आवेदन में कहा गया है, “आश्रय गृहों के बेघरों को अपराधी बताकर हटाने की शर्त पर शहर के सौंदर्यीकरण और ड्रीम प्रोजेक्ट्स के निर्माण के आदेश की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह जीवन के अधिकार का घोर उल्लंघन है।”
दिल्ली में कितने सेल्टर होम?
दिल्ली शहरी आश्रय बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, देश की राजधानी में करीब 200 सेल्टर होम हैं। इसमें से सिर्फ 66 ही परमानेंट हैं। बाकि सभी अस्थायी (Temporary) हैं।
कुछ सेल्टर होम विशेष रूप से ड्रग एडिक्ट्स के लिए ही बनाया गया है। वहीं कुछ में सिर्फ महिलाएं और फैमली वाले लोग रह सकते हैं।