सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की विशेष पीठ आज संशोधित धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। इनमें 27 जुलाई, 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं भी शामिल हैं। वहीं, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि ED ने पिछले छह सालों में वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधायकों और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कुल 132 मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए हैं।

यह याचिकाएं जस्टिस सूर्यकांत, सीटी रविकुमार और उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई हैं। पीएमएलए के इन प्रावधानों में मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों में गिरफ्तारी, तलाशी, कुर्की और जब्ती के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं।

पिछले 10 सालों में PMLA के तहत 5297 मामले

इस सबके बीच केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पिछले 10 वर्षों में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत 5,297 मामले दर्ज किए हैं।

केंद्र द्वारा संशोधनों के माध्यम से पीएमएलए का दायरा बढ़ाए जाने के बाद कुल मामलों में से 4,467 मामले 2019 और 2024 के बीच दर्ज किए गए थे। पिछले छह सालों में वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधायकों और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कुल 132 मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए गए हैं।

पीएमएलए के तहत सबसे अधिक मामले साल 2021 में दर्ज

एक सवाल के लिखित जवाब में राय ने कहा कि 2019 में पीएमएलए के तहत 188 मामले, 2020 में 708, 2021 में 1,166, 2022 में 1,074, 2023 में 934 और इस साल अब तक 397 मामले दर्ज किए गए। उन्होंने आगे बताया, “2014 में 195 मामले, 2015 में 148, 2016 में 170, 2017 में 171 और 2018 में 146 मामले दर्ज किए गए।”

पीएमएलए के तहत 140 आरोपी जेल में

नित्यानंद राय ने कहा कि 2016 से पीएमएलए प्रावधानों के तहत 140 आरोपी वर्तमान में जेल में हैं। मंगलवार को, वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने भी राज्यसभा में इस वर्ष 1 जनवरी, 2019 से 31 जुलाई के बीच विधायक, एमएलसी और राजनीतिक नेता या किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े कोई भी व्यक्ति, मौजूदा और पूर्व सांसदों के खिलाफ ईडी द्वारा लगाए गए प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज करने से संबंधित आंकड़े साझा किए।

जिसके मुताबिक, ईडी ने 2019 में 15 ईसीआईआर या मनी लॉन्ड्रिंग मामले दर्ज किए। इसके बाद 2020 में 28, 2021 में 26, 2022 में 34, 2023 में 26 और 2024 में तीन (31 जुलाई तक)। इन मामलों में अदालती सुनवाई कुल तीन मामलों में पूरी हुई, एक 2020 में और दो 2023 में। इन मामलों में केवल एक ही सजा 2020 में होने की सूचना मिली थी।”

पीएमएलए के तहत मिली सजा की दर लगभग 93%

चौधरी ने कहा कि 31 जुलाई तक एजेंसी द्वारा कुल 7083 ईसीआईआर दायर किए गए हैं। उन्होंने कहा, “पीएमएलए के तहत मिली सजा की दर लगभग 93% है। कानून के तहत 1.39 लाख करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या तो जब्त कर ली गई, फ्रीज कर दी गई या कुर्क कर ली गई। पीएमएलए के तहत जब्त की गई आय का कुल मूल्य लगभग 3,725.76 करोड़ रुपये है।”

ईडी की बढ़ी ताकत

गौरतलब है कि 2009, 2013, 2015 और 2019 में संशोधनों के माध्यम से पीएमएलए का दायरा बढ़ाया गया जिससे ईडी को अब ताकत मिल गई है। 2009 में, भारतीय दंड संहिता की धारा 120B के तहत आपराधिक साजिश को कई अन्य अपराधों के साथ पीएमएलए की अनुसूची में जोड़ा गया था। इसने पिछले कुछ सालों में ईडी को किसी भी मामले में घुसने की अनुमति दी है जहां साजिश का आरोप लगाया गया है, भले ही मुख्य अपराध पीएमएलए अनुसूची का हिस्सा न हो।

2009 में ईडी को मनी लॉन्डरिंग के मामले पर नज़र रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी घुसने का अधिकार भी मिल गया। 2015 और 2018 में संशोधनों के बाद ईडी को मनी लॉन्डरिंग के मामलों में विदेशों में अर्जित संपत्तियों के बराबर भारत में संपत्तियों को संलग्न करने की अनुमति दी गई थी। 2019 में पीएमएलए में डाले गए कुछ स्पष्टीकरणों के माध्यम से, सरकार ने ईडी को आपराधिक गतिविधि के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्जित संपत्तियों को संलग्न करने की अनुमति दी थी।

निकेश ताराचंद शाह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला

नवंबर 2017 में, निकेश ताराचंद शाह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन और संजय किशन कौल की पीठ ने पीएमएलए के तहत जमानत के दोहरे आधार को असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि मनमानी पर आधारित था।

हालांकि, इसे 27 जुलाई 2022 को विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ मामले में जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने खारिज कर दिया था। इस पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी टी रविकुमार भी शामिल थे।

पीठ ने अधिनियम की धारा 45 में निर्धारित जमानत के लिए दो शर्तों को वैध माना

पीठ ने अधिनियम की धारा 45 में निर्धारित जमानत के लिए दो शर्तों को वैध माना। प्रावधान कहता है कि जब सरकारी वकील किसी आरोपी की जमानत याचिका का विरोध करता है तो अदालत केवल तभी राहत दे सकती है, जब वह संतुष्ट हो कि इस बात के उचित आधार हैं कि आरोपी इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रिहा होने पर ऐसा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।

242 याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाया गया था जिसमें धारा 3 सहित पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाया गया था, जो परिभाषित करता है कि मनी लॉन्ड्रिंग क्या है। जस्टिस खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने समय-समय पर संशोधित पीएमएलए कानून को बरकरार रखा, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों में गिरफ्तारी, तलाशी, कुर्की और जब्ती के संबंध में ईडी की शक्तियों से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं।

पीठ ने इस बात को भी रेखांकित किया कि आरोपी/अपराधी के बेगुनाह होने की संभावना को मानव अधिकार माना जाता है लेकिन इसे संसद/विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून द्वारा बाधित किया जा सकता है।

ECIR को FIR के बराबर नहीं किया जा सकता

इसमें यह भी कहा गया है कि इंफोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ECIR) को एफआईआर के बराबर नहीं किया जा सकता है। साथ ही प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर देना अनिवार्य नहीं है और अगर ईडी गिरफ्तारी के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करता है तो यह पर्याप्त है।

अगस्त 2022 में इसके खिलाफ एक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि याचिका में उठाए गए कम से कम दो मुद्दों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। वह दो मुद्दे हैं- अभियुक्त को ईसीआईआर देने की आवश्यकता नहीं है और आरोपी के निर्दोष होने का विचार।

(इनपुट-इंडियन एक्सप्रेस)