ये नीतीश कुमार के कॉलेज के दिनों की बात है। नीतीश अपने दोस्तों के साथ इंजीनियरिंग के फोर्थ ईयर की एजुकेशनल ट्रिप में दिल्ली से आगरा होते हुए जयपुर गए थे। ट्रिप से लौटने के दौरान नीतीश कुमार के बैग से उनके कपड़े चोरी हो गए थे।

नीतीश के दोस्त कौशल उस यात्रा की कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं, “उन दिनों भारतीय सिनेमा के रुपहले पर्दे पर हिन्दी के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के गुरु कुर्ता का बोलबाला था। नीतीश के पास भी वैसा एक कुर्ता था। नीतीश ने वहीं गुरु कुर्ता पहन, ताजमहल के सामने खड़े होकर, बड़े शौक़ से अपनी तस्वीर उतरवाई।”

फतेहपुर सीकरी में सुना सूफी कलाम

आगरा से नीतीश की टोली फतेहपुर सीकरी पहुंचीं। वहां संगमरमरी आंगन में बैठे कुछ साजिन्दे और कव्वाल मिलकर अमीर खुसरो का कलाम डूबकर गा रहे थे। उन्हें सुनकर सभी दोस्त मंत्र मुग्ध हो गए और उनके चारों ओर बैठ गए। सूफी कलाम सुनने के उस गज़ब के अनुभव को नीतीश कुमार के दोस्तों ने एक किताब में दर्ज किया है। राजकमल प्रकाशन से छपी उस किताब का नाम ‘नीतीश कुमार- अंतरंग दोस्तों की नजर से’ है।

सलीम चिश्ती की मजार पर किया सजदा

फतेहपुर सीकरी में सूफी कलाम सुनने के बाद नीतीश कुमार और उनके दोस्त सलीम चिश्ती की मजार पर सजदा करने पहुंचे। वहां ग्रुप के एक साथी अरुण ने झूठी शान में आकर एक सिगरेट सुलगा ली। यह हरकत देख मजार के मुजावर (सेवादार) ने तुरंत उन्हें डांट लगा दी थी। इसके बाद सभी दोस्त जयपुर के लिए निकले। वहां भी खूब मौज मस्ती हुई। जयपुर से दिल्ली लौटने के लिए रात की एक पैसेंजर ट्रेन थी। वैसे तो पूरी ट्रेन में बस जनरल कम्पार्टमेंट्स ही थे लेकिन उसमें से एक बोगी को नीतीश कुमार के ग्रुप ने अपने कब्जे में लेकर उसके ऊपर मोटे-मोटे अक्षरों में रिजर्व्ड लिख दिया।

मदद करना पड़ा महंगा

अरुण, नीतीश और हॉस्टल में नीतीश के पुराने रूममेट अशोक, बोगी के एकदम अंतिम छोर पर एक साथ बैठे थे। देर रात गए ट्रेन किसी अनजान जगह पर ट्रेन रुकी। एक बूढ़ी औरत और उसके साथ एक लड़का डिब्बे में आने के लिए प्रार्थना करने लगा। तरस खाकर अरुण या अशोक में से किसी ने उन्हें अन्दर बुलाकर अपने आसपास ही जगह दे दी।

किताब के लेखक उदय कांत ने दोस्त कौशल के हवाले से बताया है कि सुबह सभी की नींद तब खुली जब नीतीश ने शोर मचाते हुए जगाया। वह बताते हैं, “नीतीश के चमड़े के बैग का ऊपर वाला हिस्सा कटा हुआ था और उसके सारे कपड़े गायब थे। हम सब थककर बेसुध सोये हुए थे इसलिए किसी को पता भी न चला कि यह कब हो गया। नीतीश के कपड़े तो सारे गायब हो गए थे पर उसके पैसे बच गए थे जो उसने अपने बैग में सबसे नीचे बिछे अखबार की तह के अन्दर में रखे थे। कहना न होगा कि अरुण या अशोक की दरियादिली के दोनों लाभार्थी तब तक गायब हो चुके थे!”

अरुण भी हुए थे शिकार…

नीतीश की दुर्दशा पर अरुण ज़ोर से हंस रहे थे। लेकिन उनकी यह हंसी क्षणभंगुर ही साबित हुई। हंसते-हंसते बेदम होकर जब उन्होंने अपना बैग देखा तो पता चला उनका बैग भी वैसे ही कटा हुआ था! अरुण का नुकसान नीतीश से भी ज्यादा बड़ा था क्योंकि उनके कपड़ों के साथ-साथ पैसे भी गायब थे। सुबह ट्रेन जब दिल्ली पहुंची तो नीतीश को अपने दोस्त संतोष टेकरीवाल के कपड़े उधार लेकर पहनने पड़े थे। खैर, दिन निकलने के बाद नीतीश और अरुण ने कनॉट प्लेस की खादी के शोरूम से कुछ कपड़े खरीदे। गनीमत रही कि मित्रों की आर्थिक सहायता से उनकी वापसी की यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो गई।”