केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले हफ्ते तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्हें आश्चर्य है कि क्या डीएमके अध्यक्ष ने अपने नाम (स्टालिन) को बहुत गंभीरता से लिया है और लोकतंत्र की भावना को खतरे में डाल रहे हैं।”
रक्षा मंत्री का इशारा सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन (1878-1953) की तरफ था, जिनके नाम पर डीएमके सुप्रीमो का नाम रखा गया है। राजनाथ सिंह के तंज का जवाब देते हुए डीएमके के मुखपत्र ‘मुरासोली’ ने अपने संपादकीय में लिखा कि स्टालिन के नाम से ही रक्षा मंत्री में डर पैदा हो गया।
‘मुरासोली’ में जोसेफ स्टालिन की कई ‘उपलब्धियों’ का उल्लेख किया गया है, जिसमें सोवियत संघ को एक औद्योगिक महाशक्ति बनाना, पूंजीवाद से लड़ना, साम्राज्यवाद का विरोध करना, मार्क्सवाद-लेनिनवाद के आदर्शों की रक्षा करना और सभी सोवियत नागरिकों को नौकरी की गारंटी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना शामिल था।
स्टालिन ने अपने कार्यकाल में जो कुछ भी किया, उसे लेकर कई तरह की राय है। कई लोगों के लिए वह तानाशाह हैं, जिसके वजह से लाखों लोगों की जान गई। वहीं एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो स्टालिन की एक योद्धा के रूप में सराहना करता हैं क्योंकि उन्होंने पश्चिमी देशों से खतरों के बावजूद सोवियत संघ में कम्युनिस्ट सपने की रक्षा की और पूंजीवाद एवं साम्राज्यवाद के अन्याय के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे।
एमके स्टालिन के नाम की कहानी?
तमिलनाडु के 8वें वर्तमान मुख्यमंत्री मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन (एमके स्टालिन) का जन्म एम करुणानिधि और उनकी दूसरी पत्नी दयालु अम्मल के घर 1 मार्च, 1953 को हुआ था। एमके स्टालिन के पिता एम करुणानिधि करीब दो दशक तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। एमके स्टालिन एमके मुथु और एमके अलागिरी के बाद करुणानिधि के तीसरे बेटे हैं।
स्टालिन के नाम के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है। साल 1953 के मार्च की बात है। एम करुणानिधि के एक उभरते हुए नेता थे। एक मार्च को उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ। इसके ठीक चार दिन बाद पांच मार्च को सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन का देहांत हो गया। एम करुणानिधि तमिलनाडु में स्टालिन के लिए आयोजित एक शोकसभा में शामिल हुए थे, वहीं उन्होंने निर्णय लिया कि वह सोवियत क्रांतिकारी के सम्मान में अपने नवजात बेटे का नाम स्टालिन रखेंगे। करुणानिधि ने उसी शोकसभा में अपने बेटे का नाम स्टालिन रखने की घोषणा भी की।
जोसेफ़ स्टालिन एक सोवियत नेता, राजनीतिक सिद्धांतकार और क्रांतिकारी थे। उन्होंने 1924 से 1953 में अपनी मृत्यु तक सोवियत संघ का नेतृत्व किया। स्टालिन ने क्रांतिकारी नेता व्लादिमीर लेनिन की मृत्यु के बाद अपने यूएसएसआर की बागडोर संभाली थी।
जब रूस में स्टालिन नाम से हुई परेशानी
साल 1989 में रूस यात्रा के दौरान डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन को उनके नाम के कारण परेशानी का सामना करना पड़ा था। चेन्नई में आयोजित एक सभा में एमके स्टालिन ने बताया था, “हवाई अड्डे पर अधिकारियों ने मुझसे अपना नाम बताने के लिए कहा। जब मैंने ‘स्टालिन’ कहा तो कई लोग मेरी तरफ देखने लगे। मेरे पासपोर्ट की जांच करते समय, अधिकारियों ने देश में प्रवेश करने की अनुमति देने से पहले मुझसे कई सवाल पूछे।”