मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को उनके पति ने अचानक तलाक दे दिया था। शाहबानो ने गुजारा भत्ता के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस किया। कोर्ट ने साल 1985 में पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। लेकिन कोर्ट से केस जीतने के बाद भी शाहबानो को गुजारा भत्ता नहीं मिल सका क्योंकि मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर राजीव गांधी सरकार ने कोर्ट के फैसले को संसद में पलट दिया। हिंदूवादी संगठनों ने इसे मुस्लिम तुष्टीकरण कहा। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि कैसे राजीव गांधी के इस फैसले का विरोध खुद उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने भी किया था।
‘आपको SC के फैसले के साथ खड़ा होना चाहिए’
द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी आने वाली वाली किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में बताया है कि शाहबानो मामले में सोनिया गांधी भी कोर्ट का फैसला पलटने के पक्ष में नहीं थीं।
किताब पर्दे के पीछे की अज्ञात बातों सामने लाती है। नीरजा चौधरी, दिवंगत एनसीपी नेता डीपी त्रिपाठी के हवाले बताती हैं कि सोनिया ने राजीव से कहा था, “राजीव, अगर आप मुझे इस मुस्लिम महिला विधेयक के बारे में नहीं समझा सकते, तो देश को कैसे मनाएंगे?” त्रिपाठी उन दिनों राजीव के सबसे करीबी सदस्य थे। वह बताते हैं कि सोनिया ने उनकी मौजूदगी में राजीव गांधी से कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ा होना चाहिए।
क्या सोनिया ने राजीव और अरुण को अलग किया?
यह बोफोर्स घोटाला ही था जिसके कारण राजीव गांधी की ‘मिस्टर क्लीन’ वाली छवि पर धब्बा लग गया। राजीव के चचेरे भाई अरुण नेहरू का उन पर जो प्रभाव था, उस बारे में सब जानते हैं। लेकिन बाद में दोनों अलग हो गए। अरुण ने इस ब्रेकअप के लिए सोनिया को जिम्मेदार ठहराया। अक्टूबर 1986 में राजीव ने कैबिनेट फेरबदल में अरुण को मंत्री पद से हटा दिया था।
शपथ ग्रहण के बाद, बेचैन राजीव ने फोतेदार को फिर से रेस कोर्स रोड पर अपने साथ चलने के लिए कहा। फोतेदार ने बाद में कहा कि ‘राजीव जी उस दिन तनाव में थे।’ जैसे ही कार रेसकोर्स रोड पर पहुंची, फोतेदार ने सोनिया गांधी और गांधी परिवार के वफादार कैप्टन सतीश शर्मा को इंतजार करते देखा। सोनिया के चेहरे पर एक विस्तृत मुस्कान थी। फोतेदार ने बाद में कहा, ‘मुझे तब समझ आया कि अरुण नेहरू को क्यों हटाया गया था।’
कैबिनेट से रुखसती के बाद अरुण नेहरू… सही समय का इंतजार करते रहे। उन्होंने तब हमला किया जब वे तैयार थे। वह समय आया मंत्री पद जाने के एक साल बाद 1987 में, जब स्वीडिश रेडियो ने बोफोर्स के एक पूर्व कर्मचारी की गवाही के आधार पर एक कार्यक्रम चलाया था। कार्यक्रम में बताया गया था कि बोफोर्स ने भारतीय राजनेताओं को रिश्वत दी थी।
नीरजा चौधरी लिखती हैं, “एचआर भारद्वाज ने मुझे बताया था कि हम यह जानते थे कि वह अरुण नेहरू ही थे जिन्होंने बोफोर्स की कहानी स्वीडिश रेडियो पर लीक की थी।”
राजीव गांधी और देवरस की मुलाकात
इंदिरा गांधी के कहने पर साल 1982 से 1984 के बीच राजीव गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ के प्रमुख बालासाहेब देवरस के भाई भाऊराव देवरस से तीन बार मुलाकात की थी। चौथी मुलाकात 1991 की शुरुआत 10 जनपथ पर हुई थी। किताब इस बात का खुलासा भी करती है कि कैसे राजीव गांधी ने संघ के अनुरोध पर अपने मातहतों के सुझाव को दरकिनार सरकारी टीवी चैनल दूरदर्शन पर रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण करवाया था। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)
नेहरू की वसीयत के खिलाफ जाकर इंदिरा ने किया पिता का अंतिम संस्कार
नीरजा चौधरी की किताब इस बात का भी खुलासा करती है कि इंदिरा गांधी ने अपने पिता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की वसीयत के विपरीत जाकर उनकी अंत्येष्टि की थी। अज्ञेयवादी नेहरू ने अपनी वसीयत में यह स्पष्ट कर दिया था उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से न किया जाए। (इंदिरा गांधी ने ऐसा क्यों किया था, इस बारे में विस्तार से जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)
