पंजाब में सिख साम्राज्य की स्थापना करने वाले महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे दलीप सिंह 15 साल की उम्र में वे इंग्लैड चले गए थे। वहीं उनकी पूरी जिंदगी गुजरी। दलीप सिंह का जन्म 6 सितंबर, 1838 को हुआ और रणजीत सिंह की मौत 27 जून, 1839 को हो गई। दलीप पांच साल की उम्र में पंजाब के शासक बन दिए गए। लेकिन अंग्रेजों ने 1849 में पंजाब पर कब्जा कर लिया और साम्राज्य छिन गया।

इसके बाद दलीप सिंह की मां को जेल में डाल दिया गया और उन्हें सेना के डॉक्टर सर जॉन स्पेंसर लोगिन और उनकी पत्नी देखरेख में इंग्लैंड भेज दिया गया। वहां उनकी ईसाई धर्म में  दिलचस्पी बढ़ी। इंग्लैंड में ही उन्होंने साल 1864 में एक जर्मन बैंकर की बेटी बाम्बा मूलर से शादी की। दोनों को 10 बच्चे हुए, जिनमें से पांच ही जीवित रहे।

अंतिम जीवित संतान राजकुमारी सोफ़िया थीं। तब सोफिया के लिए महारानी विक्टोरिया गॉडमदर थीं। दलीप सिंह अपना साम्राज्य वापस पाने के लिए इंग्लैंड से निकले थे लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 30 मार्च 1886 को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद वह कभी भारत नहीं लौट सकें। लेकिन राजकुमारी सोफिया लौटीं।

सोफिया की पहली भारत यात्रा

दलीप सिंह की बेटी और महाराजा रणजीत सिंह की पोती, सोफिया दिल्ली में किंग एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के लिए पहली बार 1903 में भारत आई थीं। तब वह 27 साल की थीं। भारत में निरंकुश औपनिवेशिक शासन, नागरिकों की हालत और राष्ट्रवादी नेताओं के जुनून ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। इस यात्रा ने उनके जीवन को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। कालातंर में सोफिया भारतीय महिलाओं के वोटिंग राइट मूवमेंट की प्रेरणा बनीं।  

सोफिया ने साल 1908 से ही महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। वह महिला मताधिकार के लिए आंदोलनरत एम्मेलिन (Emmeline Pankhurst) के साथ लंबे समय से काम कर रही थीं। एक भारतीय राजकुमारी के रूप में सोफिया की पहचान ब्रिटिश मताधिकार आंदोलन में महत्वपूर्ण है।

18 नवंबर, 1910 को सोफिया ने लगभग 300 महिलाओं के साथ ब्रिटेन के संसद तक मार्च किया था। महिलाओं की मांग थी कि सरकार मताधिकार बिल पारित करे। इस प्रदर्शन को ‘ब्लैक फ्राइडे’ के रूप में याद किया जाता है। प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया था क्योंकि पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं पर हमला करना शुरू कर दिया और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।

सोफिया और हेराबाई की मुलाकात

भारत की अपनी दूसरी यात्रा के दौरान, वह सामाजिक कार्यकर्ता सरला देवी से मिलीं, जिन्होंने उनसे भारतीय महिलाओं की दुर्दशा के बारे में बात की। साल 1911 में जब सोफिया श्रीनगर में हेराबाई टाटा (विमेन राइट एक्टिविस्ट) से  मिली थीं, तब उन्होंने एक  छोटा हरा, सफेद और पीला बैज लगा रखा था। बैज पर लिखा था- ‘Votes for women’  

द इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित आद्रीजा रॉयचौधरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हेराबाई की बेटी मिथन जमशेद लैम ने अपने संस्मरण में सोफिया और अपनी मां की मुलाकात का जिक्र किया है। तब मिथन सिर्फ 13 साल की थीं। उन्होंने लिखा है कि जब सोफिया, मिथन के परिवार के साथ घुल-मिल गईं तो उन्होंने बताया कि वह ‘वीमेन लीग फॉर पीस एंड फ्रीडम इन ब्रिटेन’ की सदस्य हैं। राजकुमारी सोफी के साथ बातचीत और उनके द्वारा भेजे गए साहित्य ने तुरंत मेरी माँ की दिलचस्पी जगा दी।

राजकुमारी सोफिया से मुलाकात के बाद हेराबाई और मिथन की जिंदगी बदल गई। अब उन्हें एक नई राजनीतिक आवाज मिल चुकी थी। इसके दोनों ने भारतीय महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।