19 जून, 1966 को सुबह 9:30 बजे ठाकरे परिवार के दोस्त सहदेव नाइक ने शिवाजी महाराज की मूर्ति के सामने एक नारियल फोड़ा और सभी ने ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ की जय के नारे लगाए… इस तरह 57 साल शिवसेना की स्थापना हुई थी। हालांकि इस पार्टी का विचार शायद कभी नहीं आता, अगर साल 1960 में कार्टून साप्ताहिक मार्मिक की शुरुआत न हुई होती है।

क्या है मार्मिक की कहानी?

जैसा की सर्वविदित है बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट थे। रेखांकन की उनकी ट्रेनिंग बचपन में ही शुरू हो गई थी। एक बार तो उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लेने का भी मन बना लिया था लेकिन फिल्मकार और कलाकार बाबू राव पेंटर ने उन्हें सलाह दी कि वे अकादमी पाठ्यक्रम में मेहनत करने का इरादा छोड़कर किसी पेंटर के स्टूडियो में काम कर लें।

साल 1954 में बाल फ्री प्रेस जर्नल के लिए काम करने लगे। कार्टून की दुनिया के बड़े नाम आरके लक्ष्मण भी उसी अखबार में काम करते थे। जब प्रतिष्ठित शंकर्स वीकली के शंकर पिल्लै ने जवाहरलाल नेहरू की रूस यात्रा के दौरान उनके साथ जाने का फैसला किया तो उन्होंने बाल से कहा कि वे उनकी अनुपस्थिति में उनकी पत्रिका के लिए कार्टून बना दें।

बाल ठाकरे छपने लगे। वह अपने कार्टून में सप्ताह की घटनाओं पर चुटकी लेते थे। जल्द ही उनका नाम चर्चा में आ गया। हालांकि अखबार के दक्षिण भारतीय अधिकारियों के साथ उनकी नहीं बनी। खासकर प्रबंध संपादक ए.बी. नायर और हरिहरण के साथ उनके रिश्ते खराब हो गए और उन्होंने साल 1959 में फ्री प्रेस जर्नल की नौकरी छोड़ दी। दक्षिण भारतीयों के साथ ठाकरे परिवार की तब से नहीं बनी, जब पूरा परिवार एक चाल में रहा करता था।

फ्री प्रेस जर्नल छोड़ने के बाद बाल ठाकरे ने छह साझेदारों के साथ मिलकर ‘न्यूज डेज’ नामक पत्रिका शुरू की। वह उन छह लोगों में अकेले मराठी थे। वहां भी दक्षिण भारतीय साझेदारों के साथ अनेक मुद्दों पर असहमति होने के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया।

इसके बाद बाल ठाकरे ने अपने छोटे भाई श्रीकांत के साथ 1960 में कार्टून साप्ताहिक मार्मिक की शुरुआत की। धवल कुलकर्णी अपनी किताब ‘ठाकरे भाऊ’ में लिखते हैं कि अत्रे के दैनिक मराठा ने संयुक्त महाराष्ट्र की जिस तरह से लड़ाई लड़ी थी। उसी तरह मार्मिक ने छह साल बाद शिवसेना के जन्म की भूमिका तैयार की।

मार्मिक में हुई थी शिवसेना के गठन की घोषणा

मार्मिक अपने कार्टूनों, व्यंग्य, और स्तंभों के माध्यम से मराठी मानुस के मसलों को उठाता रहता था, इससे उसका मराठी लोगों के साथ तार जुड़ गया। इसके कारण कई मराठी युवा ठाकरे के रानडे रोड वाले घर पर आते रहते थे, जहां मार्मिक का दफ्तर भी था। वे युवक ठाकरे परिवार से भेदभाव की शिकायत करते थे। मार्मिक के लेखों में इस बात की तरफ ध्यान दिलाया जाता था कि किस तरह अन्य राज्यों के लोग मुंबई में बढ़ते जा रहे हैं। पत्रिका में विशेषकर दक्षिण भारतीयों की आलोचना होती थी।

धवल कुलकर्णी लिखते हैं कि ठाकरे परिवार ने यह धारणा बना ली थी कि आला नौकरियों में दक्षिण भारतीयों की संख्या अन्य समुदायों की तुलना में बहुत अधिक है। ऐसे में बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ने यह विचार दिया कि एक राजनीतिक दल का गठन किया जाए ताकि इस अभियान को संगठित रूप दिया जा सके। ठाकरे परिवार के मुखिया ने संगठन को नाम दिया- शिवसेना (शिवाजी महाराज की सेना)

5 जून, 1966 में मार्मिक ने यह घोषणा की कि शिवसेना नामक संगठन की शुरुआत होने जा रही है ताकि मराठी मानुस के ऊपर यंदु-गुंडु (बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों के लिए यही शब्द इस्तेमाल करते थे।) की चढ़ाई का मुकाबला किया जा सके। दक्षिण भारतीयों को सबक सिखाने के मकसद से शुरू हुई शिवसेना ने आगे चलकर मुसलमानों, बौद्ध दलितों, और उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया।

दक्षिण भारतीय और ठाकरे परिवार

शिवसेना के जन्म की जड़ें प्रबोधनकार द्वारा चलाए गए उस अभियान से भी जुड़ती हैं जो उन्होंने अपने साप्ताहिक के माध्यम से 1922 में चलाई थी। प्रबोधनकार उस समय दादर के मिरांडा चाल में रहते थे। उनका ध्यान इस बात के ऊपर गया कि बड़ी तादाद में मद्रासी युवा कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मुंबई आ रहे थे जिसके कारण सरकारी, अर्ध सरकारी और निजी कम्पनियों में मज़दूरी की दर गिरने लगी थी।

उस समय सीनियर स्टेनो टाइपिस्ट महीने में 120 से 125 रुपए के बीच कमा लेते थे जबकि जो जूनियर स्टेनो टाइपिस्ट होते थे वे 60 से 75 रुपए महीने के कमा ले रहे थे। दक्षिण भारतीयों के आने के कारण यह कमाई 25 से 50 रुपए तक रह गई, जिसके कारण स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलने में मुश्किल हो रही थी। प्रबोधन में दो लेख छपने के बाद दादर और मातुंगा के मद्रासियों ने हाथ मिला लिया और उनके ऊपर यह आरोप लगाया कि वे धर्म, नस्लीयता, जन्मस्थान या भाषा के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने का काम कर रहे थे।

कुलकर्णी लिखते हैं कि प्रबोधनकार ने बम्बई के मुख्य सचिव से मिलकर एक आदेश पारित करवा था कि ताकि किसी भी विभाग में बहाली के वक्त स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए। शायद इन घटनाओं ने भी 1966 में शिवसेना की स्थापना का बीज डाला। ‘जय महाराष्ट्र’ शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना दोनों का नारा है। यह नारा प्रबोधनकार ने ही दिया था।