बांग्लादेश में पिछले महीने से चल रहे जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन और हिंसा के बाद आखिरकार शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालात इस कदर खराब हो गए कि उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा और उनके सरकारी आवास पर आम जनता ने धावा बोल द‍िया।

कुछ ऐसा ही जुलाई, 2022 में श्रीलंका में भी हुआ था। तब प्रदर्शनकारियों ने राजधानी कोलंबो में स्थित प्रधानमंत्री के दफ्तर पर कब्जा कर लिया था और राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागना पड़ा था। 

1974 में इंदिरा गांधी की सरकार की भी छात्रों के आंदोलन के बाद मुश्किलें बढ़ी थी और इसके बाद लगे आपातकाल की वजह से उनकी सरकार की विदाई का रास्ता तैयार हुआ था। 

क्या थी विरोध की वजह?

बांग्लादेश में प्रदर्शन पिछले महीने तब शुरू हुआ था, जब छात्रों के एक गुट ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ने वाले सैनिकों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में दिए जा रहे 30% आरक्षण को खत्म करने की मांग उठाई थी। हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था और सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि पूर्व सैनिकों के परिजनों का आरक्षण घटाकर 5% किया जाना चाहिए और 93% नौकरियां मेरिट के आधार पर दी जानी चाहिए। 2% का कोटा जातीय अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडर और विकलांग लोगों के लिए रखा जाए। 

शेख हसीना की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन प्रदर्शनकारी इस बात पर अड़ गए थे कि देश भर में जो भी हिंसा हुई है, उसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाए। उनका कहना था कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल किया और इस वजह से हिंसा भड़की। 

इस दौरान प्रदर्शनकारी लगातार उनके इस्तीफे की मांग करते रहे लेकिन शेख हसीना इसके लिए तैयार नहीं हुईं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी कहा और उनके खिलाफ सख्त रूख अपनाया।

सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन 

प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना की सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने टैक्स ना भरें, रविवार को काम पर ना जाएं। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए जब पुलिस ने भीड़ पर रबर की गोलियां चलाई और आंसू गैस का इस्तेमाल किया तो प्रदर्शनकारी भड़क गए और हालात बद से बदतर होते चले गए। 

महामारी के बाद बिगड़े हालात 

कोरोना महामारी के बाद से ही बांग्लादेश में लोगों के लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा था। देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिरा है और 2016 के बाद से विदेशी कर्ज दोगुना हो गया है। शेख हसीना के आलोचकों ने इसके लिए उनकी सरकार के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि बांग्लादेश ने जितनी आर्थिक कामयाबी हासिल की उससे सिर्फ हसीना की पार्टी अवामी लीग के करीबी लोगों को ही मदद मिली।

आलोचकों का कहना है कि हसीना के शासन में उनके राजनीतिक विरोधियों और मीडिया को कुचलने की कोशिश की गई। 

मुजीबुर रहमान की बेटी हैं शेख हसीना 

शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं। शेख हसीना का पूरा नाम शेख हसीना वाजिद है। वह 20 साल से ज्यादा वक्त तक बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल चुकी हैं। पिछले कुछ सालों में उन पर इस बात का आरोप लगा है कि वह तानाशाह की तरह शासन चला रही हैं। 

राजनीति में आर्मी का दखल

शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद आर्मी प्रमुख जनरल वेकर-उज़-ज़मां मीडिया के सामने आए और उन्होंने कहा कि सेना देश के अंदर अंतर‍िम सरकार बनाएगी। बांग्लादेश की सियासत में इससे पहले भी सैन्य तानाशाहों का दखल रहा है। बांग्लादेश में 1975 से 1991 तक सेना का ही शासन था। 

1975 में जब सेना ने तख्ता पलट किया था, तब शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकतर सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इस भयावह घटना में शेख हसीना और उनकी छोटी बहन ही बच पाई थीं क्योंकि वह बांग्लादेश से बाहर थीं। 1981 में शेख हसीना बांग्लादेश लौटीं और अपने पिता के द्वारा बनाई गई पार्टी अवामी लीग की नेता बनीं। 

मिली थी एकतरफा जीत 

इस साल जनवरी में जब बांग्लादेश में लोकसभा चुनाव हुए थे तब अवामी लीग और उसके सहयोगी दलों को 225 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें से 222 सीटों पर अकेले अवामी लीग को जीत मिली थी। इस बड़ी जीत के पीछे वजह यह भी थी कि मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था। यह पांचवा मौका था जब शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी। व‍िपक्ष ने चुनाव को द‍िखावा करार द‍िया था। 

भारत में 1974 में हुआ था छात्र आंदोलन

बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन इतने बड़े आंदोलन में बदल गया कि देशभर में लोग सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रपति को इस्तीफा देना पड़ा। 1974 में भारत में कुछ ऐसा ही हुआ था जब तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ गुजरात से छात्र आंदोलन शुरू हुआ था।

छात्रों का यह आंदोलन धीरे-धीरे विकराल रूप लेते हुए बिहार और अन्य राज्यों में भी फैल गया था और इसकी कमान जयप्रकाश नारायण ने संभाल ली थी। हालात ऐसे बन गए थे कि इंदिरा गांधी सरकार को 1975 में आपातकाल लगाना पड़ा और आपातकाल के बाद जब देश में चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी की सरकार सत्ता से बाहर हो गई। 

जुलाई, 2022 में जनता के गुस्से का सैलाब श्रीलंका में भी उमड़ा था जब हजारों की संख्या में लोग राजधानी कोलंबो में स्थित श्रीलंकाई राष्ट्रपति के आवास में घुस गए थे। तब तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर जाना पड़ा था। श्रीलंका में भी जनता का गुस्सा इसलिए भड़का था क्योंकि देश भर में लोग लंबे पावर कट, जरूरी चीजों की किल्लत, महंगाई की वजह से परेशान थे।