प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक बार फिर द्विपक्षीय बातचीत होने की संभावना है। दोनों नेता अगले महीने दक्षिण अफ्रीका में होने जा रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मिले, उससे पहले 14 अगस्त को भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर की 19वें दौर की बातचीत होने वाली है। इस बातचीत का उद्देश्य सीमा पर शांति बहाल करना है। रक्षा मंत्री रहते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार ने भी भारत-चीन की सीमा पर शांति बहाल करने के लिए चीन का दौरा किया था।
नरसिम्हा राव सरकार में रक्षा मंत्री थे पवार
ये साल 1991 की बात है। राजीव गांधी की हत्या बाद केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार बनी थी। इस सरकार में रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी शरद पवार के पास थी। भारत-चीन सीमा से लगे इलाकों का दौरा करने के बाद पवार ने यह महसूस किया कि दोनों देशों को की फौजों को सीमा से पीछे हटना चाहिए। चीन की सेनाएं ऊंचे पर और भारतीय सेनाएं नीचे क्षेत्र में तैनात थीं।
भारत की सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचने के लिए ऊपर चढ़ना होता था। इस सीमा तक राशन पहुंचाना भी काफी खर्चीला था। पवार चाहते थे कि यह खर्च बचाकर, पैसों का इस्तेमाल गरीबी व बेरोजगारी मिटाने में किया जाए। पवार ने इस विषय में प्रधानमंत्री से बात की, उन्होंने द्विपक्षीय बातचीत को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया।
चीन का मिला निमंत्रण
रक्षा मंत्री बनने के कुछ दिन बाद ही चीन की सरकार ने शरद पवार को आमंत्रित किया। पवार अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखते हैं, “विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय निमंत्रण स्वीकार करने के पक्ष में नहीं था। लेकिन प्रधानमंत्री ने मुझे चीन जाने और सीमा से सेनाओं को पीछे हटाने के विषय पर वार्ता करने को कहा।”
प्रधानमंत्री की हरी झंडी मिलने के बाद पवार जुलाई 1992 में एक प्रतिनिधि मंडल के साथ चीन पहुंचे। प्रतिनिधिमंडल में उनके साथ रक्षा सचिव एन.एन. वोहरा और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे। चीन के रक्षा मंत्री जनरल चे होतेन के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल के साथ पवार और उनकी टीम ने पांच दिन तक कई बार वार्ता की।
पवार लिखते हैं, “सेनाओं की सीमा से पीछे हटाने पर वार्ता करने के पीछे हमारा उद्देश्य इस खर्च को कम कर, बची राशि का प्रयोग देश की गरीबी व बेरोजगारी की समस्या हल करने में प्रयोग करना था। यह समस्या दोनों देशों के लिए समान चुनौती थी। चीन ने इस विषय पर सकारात्मक रुख दिखाया। पहले दिन की वार्ता के बाद जब मैंने प्रधानमंत्री को सूचित किया तो उन्होंने प्रसन्नता जाहिर करते हुए इस ट्रैक पर बातचीत को आगे बढ़ाने को कहा।”
इसके बाद की वार्ता में दोनों पक्षों के प्रतिनिधि मंडल सेनाओं को पीछे हटाने को तैयार हुए। पवार लिखते हैं, “अब मेरा काम समाप्त हो गया था और दोनों देशों के प्रमुखों को इस बारे में आगे वार्ता करनी थी और अन्तिम निर्णय लेना था।”
चीन के प्रधानमंत्री से ‘रहस्यमयी’ जगह पर मुलाकात
वार्ता खत्म होने के बाद शरद पवार को चीन के प्रधानमंत्री ली पेंग से मिलना था। दोनों नेताओं के मिलना तय हुआ लेकिन मुलाकात की जगह को गुप्त रखा गया था। मुलाकात में पवार को चीन के प्रधानमंत्री को वार्ता के बारे में संक्षेप में बताना था। पवार लिखते हैं, “हम लोग सुबह सात बजे हवाई जहाज में बैठे और चार घंटे बाद समुद्र के किनारे एक रहस्यमयी स्थान पर उतरे। वहां पर दूर-दूर तक कोई व्यक्ति नहीं था लेकिन वह जगह शानदार तरीके से सजा-धजा था। मुझे बताया गया कि यह स्थान प्रमुख चीनी नेताओं के छुट्टी के दिन बिताने के लिए है। एक जगह पर चीन के प्रधानमंत्री से मिलकर हमने उन्हें संक्षेप में पांच दिनों की वार्ता की जानकारी दी। चीन के प्रधानमंत्री ने शीघ्र ही इस विषय को हल करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री को सरकारी निमंत्रण देने का निर्णय लिया।”
पवार आगे लिखते हैं, “पांच दिनों की वार्ता का सार संक्षेप सुनने के बाद चीन के प्रधानमंत्री ने मुझे साथ-साथ टहलने के लिए आमंत्रित किया। चीनी प्रधानमंत्री के साथ अनौपचारिक बातचीत का यह अच्छा अवसर था। मेरी रुचि विशेष रूप से रूस के उथल-पुथल में थी। मैंने पूछा-रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव द्वारा ग्लास्नोस्ट और पेरिस्ट्रोइका को लागू करने से रूस में उथल-पुथल मच गई है और इसके प्रभाव से यू.एस.एस.आर. में विखंडन हो रहा है। अपने व्यक्तिगत विचार के रूप में ली पेंग ने तुरन्त उत्तर दिया- रूस पहले से ही आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। गोर्वाचोव की सबसे बड़ी गलती आर्थिक सुधार और राजनीतिक खुलापन को साथ-साथ लागू करना था। यदि गोर्वाचोव आर्थिक सुधारों को लागू करते हुए कठोर राजनीतिक नियंत्रण कायम रखते, तो परिस्थिति उनके नियंत्रण से बाहर नहीं जाती।”
बतौर रक्षा मंत्री ‘बाबरी’ बचाने का किया था प्रयास
6 दिसम्बर, 1992 को जब कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा, तब रक्षा मंत्रालय की कमान शरद पवार के हाथों में ही थी। उन्होंने प्रधानमंत्री राव से उन्माद पर काबू पाने और बाबरी को बचाने के लिए शक्ति प्रयोग करने का सुझाव दिया। साथ पवार विवादित ढांचे पर सेना की टुकड़ियां भी तैनात करवाना चाहते थे। लेकिन प्रधानमंत्री ने पवार की बात नहीं मानी। इसके बाद रक्षा मंत्री ने खुफिया विभाग को एक विशेष काम सौंपा था। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)