Ritansh Azad
अक्तूबर 31, देश के बहुत ही महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी और लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती है। एक लंबे अरसे से RSS/BJP की ये कोशिश रही है कि उन्हें अपना नेता बनाकर पेश किया जाए। इसी कड़ी में RSS/ बीजेपी भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को भी अपने हीरो की तरह पेश करती रही है। लेकिन जैसा मैं अपने पिछले लेखों में बता चुका हूँ कि ये बिलकुल ही निराधार बात है, इन राष्ट्रीय नायकों का आरएसएस से कोई लेना देना नहीं था, बल्कि ये सभी आरएसएस की विचारधारा के धुर विरोधी थे!
इतिहासकार बताते हैं कि आरएसएस की इन कोशिशों के पीछे ये कारण है कि उनका आज़ादी की लड़ाई में अपना कोई नायक या नायिका नहीं है। यह इसीलिए क्योंकि आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई से दूरी बनाए रखी थी और कई बार आज़ादी के संघर्ष का विरोध तक किया था! इसीलिए आज उनके द्वारा सरदार पटेल को अपना नायक दिखाने की लगातार कोशिशें जारी हैं।
इनमें सबसे बड़ी कोशिश थी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नर्मदा नदी के तट पर, गुजरात में सरदार पटेल जी की एक 182 मीटर ऊंची मूर्ति बनवाना। 31 अक्टूबर 2018 को इस मूर्ति का अनावरण किया किया गया और इसका नाम Statue of Unity रखा गया। इसे दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है । इसके अलावा लगातार आरएसएस और बीजेपी उन्हें जवाहरलाल नेहरू के विरोध में खड़ा करके, उन्हें अपने साथ जोड़ने के प्रयास करती रही है।
लेकिन, संघ जिन सरदार पटेल को अपना सबसे बड़ा हीरो बता रही है, उन्होंने ही आरएसएस को देश के लिए खतरा बताते हुए, उसे बैन किया था ! ये ऐतिहासिक तथ्य है कि नाथूराम गोडसे द्वारा 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस को भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया था।
उस सरकार में गृह मंत्री सरदार पटेल थे और 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगते हुए उनके मंत्रालय ने अपनी विज्ञप्ति में लिखा “यह पाया गया है कि देश के कई हिस्सों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्य आगजनी, डकैती और हत्या सहित हिंसा के कई कामों में शामिल रहे हैं और उन्होंने अवैध हथियार और गोला-बारूद एकत्र किए हैं। उन्हें लोगों को आतंकवादी तरीकों का सहारा लेने, हथियार इकट्ठा करने और सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले पर्चे प्रसारित करते हुए पाया गया है।’’
इस ऑर्डर में आगे लिखा था “संघ की आपत्तिजनक और नुकसानदायक गतिविधियाँ बेरोकटोक जारी हैं और संघ की गतिविधियों से प्रायोजित और प्रेरित हिंसा के पंथ ने कई लोगों की जान ले ली है। इसमें स्वयं गांधीजी की जान सबसे हालिया और सबसे कीमती थी।’’
यानि उस समय की भारत सरकार जिसके सरदार पटेल ग्रह मंत्री और उप प्रधानमंत्री थे, का मानना था कि संघ द्वारा बनाए गए माहौल ने गांधी जी की जान ली थी । इतिहासकार मृदुला मुखर्जी लिखती हैं “गांधीजी की हत्या के तुरंत बाद, भारत सरकार ने, जिसमें सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके लगभग 25,000 सदस्यों को जेल में डाल दिया।’’
इसी तरह सरदार पटेल ने अपने कई पत्रों और भाषणों में भी आरएसएस और उसकी विचारधारा के खिलाफ बात रखी है । 23 फरवरी 1949 में चेन्नई में दिए गए एक भाषण में सरदार पटेल कहते हैं “हम सरकार में RSS के आंदोलन से निपट रहे हैं । वे चाहते हैं कि हिंदू राज्य या हिंदू संस्कृति को बलपूर्वक थोपा जाए। कोई भी सरकार ये बर्दाश्त नहीं कर सकती । इस देश में लगभग उतने ही मुसलमान हैं जितने विभाजन के बाद उस देश (पाकिस्तान) में हैं। हम उन्हें भगाने वाले नहीं हैं । यह एक अशुभ दिन होगा अगर हम विभाजन होने के बावजूद यह खेल शुरू दें। हमें यह समझना चाहिए कि ये (मुसलमान ) यहीं रहेंगे और यह हमारा दायित्व और ज़िम्मेदारी है कि हम उन्हें यह महसूस कराएं कि यह उनका देश है।’’
इसी भाषण में वो आरएसएस के संबंध में कहते हैं, “मैंने उन्हें एक खुला प्रस्ताव दिया है,अपनी योजनाएं बोदलो ,गोपनीयता छोड़ो, सांप्रदायिक संघर्ष छोड़ो , भारत के संविधान का सम्मान करो, ध्वज (राष्ट्रीय ध्वज) के प्रति अपनी वफादारी दिखाओ और हमें विश्वास दिलाओ कि हम तुम्हारे शब्दों पर भरोसा कर सकें । कहना कुछ और करना कुछ ,ये एक खेल है, जो नहीं चलेगा।’’
इसी तरह 17 दिसंबर 1947 को जयपुर में दिए गए एक भाषण में वे कहते हैं “भारतीय सेना को मज़बूत बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है । सेना के समर्थन में बहुत बड़े और व्यापक प्रयास (Industrial effort) की ज़रूरत है। यह सब कुछ संघ (RSS) की लाठियों से हासिल नहीं हो सकता जो वह मुट्ठी भर मुसलमानों के सिर फोड़ने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ।’’ वे आगे युवाओं को हिदायत देते हुए कहते हैं “यदि वे (युवा) उस रास्ते पर चलते हैं जिस पर संघ चल रहा है, तो वे देश का नुकसान करेंगे।’’
इतिहास के कई जानकार बताते हैं कि सरदार पटेल एक समय तक आरएसएस के प्रति नरम थे, लेकिन गांधी जी की हत्या के बाद उनका आरएसएस के प्रति रवैया काफी कड़ा हो गया था । गांधी जी की हत्या के बाद हिन्दू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 18 जुलाई 1948 को वह लिखते हैं “जहां तक आरएसएस और हिंदू महासभा का सवाल है, गांधीजी की हत्या से संबंधित मामला अदालत में विचाराधीन है और मुझे इन दोनों संगठनों की भागीदारी के बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहिए, लेकिन हमारी रिपोर्टें इसकी पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संगठनों, खासकर पहले संगठन की गतिविधियों के परिणामस्वरूप देश में ऐसा माहौल बना दिया गया कि ऐसी भयानक त्रासदी संभव हो सकी।’’
वे आगे लिखते हैं “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का चरमपंथी धड़ा इस साजिश में शामिल था। आरएसएस की गतिविधियाँ सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट खतरा हैं। हमारी रिपोर्टें बताती हैं कि प्रतिबंध के बावजूद उनकी गतिविधियाँ ख़त्म नहीं हुई हैं। दरअसल, जैसे-जैसे समय बीत रहा है, आरएसएस सर्कल के लोग अधिक उद्दंड होते जा रहे हैं और विध्वंसक गतिविधियों में ज्यादा से ज्यादा से शामिल हो रहे हैं।’’
इसी तरह आरएसएस के उस समय के सरसंघचालक गोलवलकर को 11 सितंबर 1948 में लिखे अपने पत्र में सरदार पटेल लिखते हैं “हिंदुओं को संगठित करना और उनकी मदद करना एक बात है, लेकिन निर्दोष और असहाय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों से अपने कष्टों का बदला लेना बिल्कुल अलग बात है…” वे आगे लिखते हैं “उनके (आरएसएस के) सभी भाषण साम्प्रदायिक ज़हर से भरे हुए थे। हिंदुओं को उत्साहित करने और उनकी सुरक्षा के लिए संगठित होने के लिए ज़हर फैलाना जरूरी नहीं था। ज़हर के अंतिम नतीजे के रूप में देश को गांधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान भुगतना पड़ा। सरकार या जनता की रत्ती भर भी सहानुभूति अब आरएसएस के प्रति नहीं रही। दरअसल उनका विरोध ही बढ़ा है। विरोध तब और अधिक गंभीर हो गया, जब गांधीजी की मृत्यु के बाद आरएसएस के लोगों ने खुशी व्यक्त की और मिठाइयाँ बाँटीं। इन परिस्थितियों में सरकार
के लिए आरएसएस के खिलाफ कार्रवाई करना ज़रूरी हो गया… तब से छह महीने से अधिक समय बीत चुका है। हमें आशा थी कि समय गुज़र जाने के बाद गंभीर और सही विचार से आरएसएस के लोग सही रास्ते पर आ जायेंगे। लेकिन जो रिपोर्टें मेरे पास आ रही हैं, उनसे यह ज़ाहिर हो रहा है कि उन्हीं पुरानी गतिविधियों में नई जान डालने की कोशिशें चल रही हैं।’’
ऊपर दर्ज की गई बातें ये साफ करती हैं कि सरदार पटेल मानते थे आरएसएस और हिन्दू महासभा के द्वारा बनाया गया ज़हरीला माहौल ही गांधी जी की हत्या के लिए ज़िम्मेदार था। हमें याद रखना चाहिए कि गांधी जी का हत्यारा नाथूराम गोडसे आरएसएस और हिन्दू महासभा दोनों का सदस्य था, इस बात की पुष्टि उनके भाई गोपाल गोडसे ने की थी । गांधी जी की हत्या के केस की बारीकियों पर कभी और बात की जा सकती है। साथ ही आरएसएस पर बैन कैसे हटा, वो कहानी भी कभी और सुनाई जा सकती है। लेकिन यहाँ दर्ज की गई बातें ये साफ बता रही हैं कि सरदार पटेल आरएसएस के मुखर विरोध में खड़े थे और उनकी सांप्रदायिक विचारधारा को देश के लिए खतरनाक मानते थे। इसीलिए आज प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के नेताओं द्वारा उनकी विरासत पर अपना हक जाताना ऐतिहासिक तथ्यों के बिलकुल खिलाफ नज़र आता है। उनका ये दावा बिलकुल निराधार और खोखला है । इससे अजीब बात क्या होगी कि जिस व्यक्ति ने उन्हें बैन किया, उन्हें खतरा बताया, उसी को संघ/बीजेपी के नेता अपना सबसे बड़ा नायक बताते हैं।
(लेखक सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता हैं)
