गांधी की हत्या (Mahatma Gandhi Assassination) के वक्त सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) देश के गृह मंत्री थे। देश में सांप्रदायिक संगठनों के खिलाफ गुस्सा तो दिख रही रहा था, कहीं-कहीं पर पटेल भी उंगली उठ रही थी। वामपंथी नेता पी. सुंदरैया (Puchalapalli Sundarayya) ने सरदार पटेल पर आरोप लगाया था कि, ”हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, तथा सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या की योजना बनाई थी, ताकि फासिस्ट शासन चिरस्थायी हो सके।”
वही जयप्रकाश नारायण भी ऐसा मान रहे थे कि सरदार अपने कर्तव्य में चूक गए थे। इतना ही नहीं, स्टेट्समेन अख़बार में तो यह तक छाप दिया था कि महात्मा गांधी की रक्षा में नाकाम होने के कारण पटेल को इस्तीफा दे देना चाहिए।
सरदार ने लिख दिया इस्तीफा
सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए ये आरोप झकझोर देने वाले थे। उन्होंने फैसला ले लिया कि अब वह नैतिकता के आधार पर अपने पद से फैसला दे देंगे। पीयूष बबेले ने अपनी किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ में बताया है कि 3 फरवरी, 1948 को अपना इस्तीफा लिख दिया था।
पूरे घटनाक्रम का जिक्र पटेल के निजी सचिव वी. शंकर ने किया है। वह बताते हैं कि, ”सरदार पटेल ने मन की कमजोरी के किसी क्षण में इस्तीफा देने का फैसला कर लिया। मुझे इस्तीफे के बारे में तब पता चला जब सरदार की बेटी मणिबेन यह पत्र भेजने के लिए मेरे पास लाईं। तब मैं बीच में आया और मैंने सरदार को बताया कि अपराध की ऐसी स्वीकृति सही नहीं होगी। अगर अपनी अंतरात्मा में उन्हें इस बात की तसल्ली है कि वे जो कुछ कर सकते थे, वह सब उन्होंने किया तो उस हालत में स्वार्थी लोगों के शोरगुल के उत्तर में त्यागपत्र देना कमजोरी की निशानी होगो।”
वी. शंकर पटेल को आगे समझाते हैं, ”वैधानिक दृष्टि से न केवल सरदार को बल्कि समस्त मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना चाहिए।” वी. शंकर का यह तर्क पटेल को सही लगा। उन्होंने इस्तीफा न भेजने की बात मान ली। सरदार अपना त्यागपत्र नष्ट कर देना चाहते थे। लेकिन वी. शंकर ने उन्हें सलाह दी कि इतिहास के लिए इसलिए सुरक्षित रखा जाए।