तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने बयान के बाद से सनातन शब्द चर्चा में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए सनातन धर्म एक दार्शनिक अवधारणा (Philosophical Concept) है। संघ ‘सनातन धर्म’ को दो तरह से परिभाषित करता है। पहला- सनातन धर्म भारतीय सभ्यतागत मूल्यों से जुड़ी जीवन शैली है। दूसरा- सनातन धर्म, हिंदू धर्म भी है।

हिंदू धर्म और सनातन धर्म

संघ कहता है कि सनातन धर्म सभ्यता के आगमन के बाद से ही अस्तित्व में है। साथ ही यह शब्द हिंदू धर्म की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है। एक वरिष्ठ आरएसएस नेता ने कहा, “जो धर्म (जीवन पद्धति) अनंत काल से चला आ रहा है वह सनातन धर्म है। यह सर्व-समावेशी है। इसी से अन्य सभी आस्थाएं और विचार निकले हैं। भारत में जो भी नए धर्म बने, वे इसी दर्शन से निकले। हिंदू धर्म स्वयं सनातन धर्म का ही एक रूप है। जो लोग इसकी तुलना ‘ब्राह्मणवाद’ से कर रहे हैं वे अज्ञानता और स्वार्थवश ऐसा कर रहे हैं। वास्तव में ‘ब्राह्मणवाद’ शब्द ही काल्पनिक है।”

हिंदू जीवन शैली (सनातन धर्म) और ‘बाहर से आए धर्मों’ के बीच अंतर बताते हुए RSS नेता ने तर्क दिया, “भारत की धार्मिक परंपरा समानताएं तलाशती है। साथ रहने के विचार पर काम करती है। बाकी लोग मतभेद तलाशते हैं और बहिष्कार पैदा करते हैं। हमारे लिए ऐसे विचार धर्म के विरुद्ध हैं।”

‘हिंदू’ शब्द का इस्तेमाल बाहरी लोगों ने शुरू किया

संघ के बयान में हिंदू धर्म और सनातन धर्म एक-दूसरे की जगह लेते रहते हैं। शब्दों की इस अदला-बदली को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बार-बार दोहराए गए कथन से समझा जा सकता है। भागवत ने कहा कि ‘हिंदू’ शब्द स्वयं प्राचीन भारतीय सभ्यता के लिए एक स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुआ शब्द नहीं है, बल्कि असल में इसका उपयोग बाहर से आये लोगों ने मूल निवासियों को दर्शाने के लिए किया।

आरएसएस के एक नेता ने कहा, यही कारण है कि भौगोलिक क्षेत्र की बात करते हुए भागवत अक्सर भारत में रहने वाले सभी लोगों को हिंदू कहते हैं। उस संदर्भ में आरएसएस हिंदुओं का वास्तविक धर्म सनातन धर्म समझता है।

गोलवलकर ने सनातन धर्म को कैसे समझा?

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में सनातन धर्म को कई परंपराओं का समूह बताया है। गोलवलकर कहते हैं, “तर्क और इतिहास भी इस बात पर सहमत नहीं हैं कि धर्म के विचार संकीर्ण और आर्थिक हित अधिक व्यापक हैं… भारत, नेपाल आदि ऐसे राज्य हैं जिनका गठन तो आर्थिक आधार पर हुआ। लेकिन ये सभी मानते सनातन धर्म (इसमें सभी वैदिक, गैर-वैदिक और इस भूमि में पैदा हुए अन्य धर्म शामिल हैं) को हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि धर्म का अनुसरण एक व्यापक आधार देता है, जबकि आर्थिक हित संबंधों को संकीर्ण बनाते हैं।”

समाज की सेवा में एक स्वयंसेवक के कर्तव्यों के बारे में बात करते हुए, गोलवलकर ने पुस्तक में लिखा है कि संकट के समय में आदमी और आदमी के बीच कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए। सभी की मदद की जानी चाहिए, चाहे वह ईसाई हो या मुस्लिम। इस संदर्भ में उन्होंने कहा: “ताकि हमारे कार्य हमारे सनातन-शाश्वत-धर्म की महिमा और तेज को सामने लाने में सफल हों।”

जब संघ ने सनातन धर्म और नेशनहुड को बताया एक समान

आरएसएस के भीतर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने साल 2003 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अरबिंदो आश्रम की श्री माँ को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए सनातन धर्म को हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता के बराबर बताया गया। इसमें कहा गया, “यह श्री अरबिंदो का दृढ़ विश्वास था कि हिंदू धर्म कोई और नहीं बल्कि सनातन धर्म है, जो वास्तव में हमारे देश की असली राष्ट्रीयता है। सनातन धर्म का उत्थान और पतन हिंदू राष्ट्र के उत्थान और पतन से जुड़ा है। श्री अरविन्द की तरह ही श्री माँ का भी दृढ़ विश्वास था कि विभाजन अवास्तविक है, उसे खत्म होना है और यह होकर रहेगा।” गोलवलकर ने भी अपने बंच ऑफ थॉट्स में इसी तरह की बात लिखी है।

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‘सनातन धर्म, हिंदू राष्ट्र है’

हाल ही में आरएसएस प्रमुख भागवत ने लगातार कई संदर्भों में सनातन धर्म शब्द का इस्तेमाल किया है। अगस्त 2022 में त्रिपुरा में एक मंदिर का उद्घाटन करते हुए भागवत ने कहा था, “भारत में लोगों का खान-पान, संस्कृति और परंपराएं अलग-अलग हैं। इन सबके बावजूद हम सभी एक दूसरे से जुड़े होने की भावना रखते हैं। सभी समुदायों की सोच में भारतीयता है, वे सनातन धर्म का गुणगान करते हैं। हमें सनातन धर्म की रक्षा करनी है। यह धर्म सभी को अपना मानता है। यह किसी को परिवर्तित नहीं करता है क्योंकि यह जानता है कि सच्चे दिल से किसी से प्रार्थना करना किसी को उसके भगवान तक ले जाता है।”

जनवरी 2023 में नागपुर में एक भाषण के दौरान भागवत ने सनातन धर्म की तुलना हिंदू राष्ट्र से की थी। उन्होंने कहा था, “धर्म इस देश का सत्व (स्वभाव) है और सनातन धर्म हिंदू राष्ट्र है। हिन्दू राष्ट्र जब भी आगे बढ़ता है तो उस धर्म के लिए ही आगे बढ़ता है। और अब यह भगवान की इच्छा है कि सनातन धर्म का उत्थान हो और इसलिए हिंदुस्तान का उत्थान निश्चित है।” आरएसएस प्रमुख ने अपने भाषणों में कई बार कहा है कि धर्म जीवन जीने का एक तरीका है, कर्तव्य की भावना है और इसे केवल धार्मिक प्रथाओं के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

इस साल मार्च में उत्तराखंड में भागवत ने कहा था कि सनातन धर्म को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह समय की कसौटी पर खरा उतरा है।

सनातन धर्म का विचार भारत के विश्व गुरु बनने की महत्वाकांक्षा से भी जुड़ा है। भागवत ने अक्सर कहा है कि समय आ गया है जब भारत दुनिया की समस्याओं का समाधान प्रदान करेगा। फरवरी 2021 में हैदराबाद में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि दुनिया 2000 वर्षों से पीड़ित है और केवल सनातन धर्म ही इसे ठीक कर सकता है।

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) के संस्थापक दीन दयाल उपाध्याय ने अपने मौलिक पाठ ‘एकात्म मानववाद’ में सनातन धर्म का उल्लेख नहीं किया है। हालांकि उन्होंने 160 से अधिक बार धर्म शब्द का उल्लेख व्यापक अर्थों में किया है। इसका वर्णन करते हुए उपाध्याय ने कहा, “राष्ट्र के आदर्श चिति का निर्माण करते हैं, जो व्यक्ति की आत्मा के अनुरूप है। चिति को समझने के लिए कुछ प्रयास की आवश्यकता है। जो कानून किसी राष्ट्र की चिति को प्रकट करने और बनाए रखने में मदद करते हैं, उन्हें उस राष्ट्र का धर्म कहा जाता है। इसलिए यह ‘धर्म’ ही सर्वोच्च है… धर्म केवल मंदिरों या मस्जिदों तक ही सीमित नहीं है। ईश्वर की आराधना धर्म का ही एक अंग है। धर्म बहुत व्यापक है।”