समलैंगिक विवाह को लीगल बनाने को लेकर जारी कानूनी लड़ाई के बीच सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी ने तर्क दिया है कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी न बनाने से क्या-क्या नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि समलैंगिक जोड़े उन अधिकारों का लाभ नहीं उठा सकते हैं जो विषमलैंगिक विवाहित जोड़ों को मिला हुआ है। उदाहरण के लिए बीमा एक ऐसा अधिकार है जिसका लाभ क्वियर समुदाय नहीं उठा सकता है क्योंकि भारत में समलैंगिक विवाह गैरकानूनी है।

मैं SCBA से मेडिकल इंश्योरेंस नहीं खरीद सकती- गुरुस्वामी

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में बहस करते हुए मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि विवाह केवल गरिमा का सवाल नहीं है। यह बहुत से अधिकारों का मूलभूत आधार है। समलैंगिक विवाह लीगल न होने से LGBTQ समुदाय उन अधिकारों से वंचित है।

गुरुस्वामी ने बताया कि कैसे शादी का सुरक्षा कवच न मिलने से LGBTQ समुदाय के लोग बैंक अकाउंट, जीवन बीमा, मेडिकल बीमा, किराए का घर आदि… जैसे सामान्य अधिकारों का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

उन्होंने कहा, “मैं खुद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) का मेडिकल इंश्योरेंस नहीं खरीद सकती, जबकि मैं SCBA की सदस्य हूं। मैं SCBA से अपने परिवार के लिए मेडिकल इंश्योरेंस नहीं खरीद सकती। मैं अपने पार्टनर को अपने जीवन बीमा में नॉमिनी नहीं बना सकती। और ये सब कोई सैद्धांतिक समस्या नहीं है।”

कौन हैं मेनका गुरुस्वामी?

डॉ. मेनका गुरुस्वामी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। डॉ. गुरुस्वामी की पढाई-लिखाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया से हुई। वह ऑक्सफोर्ड में रोड्स स्कॉलर और हार्वर्ड में गैमन फेलो थीं। वह येल लॉ स्कूल, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो फैकल्टी ऑफ लॉ में विजिटिंग फैकल्टी रही हैं। वह 2017-2019 तक कोलंबिया लॉ स्कूल में बीआर अंबेडकर रिसर्च स्कॉलर और लेक्चरर थीं, जहां उन्होंने ‘Constitutional Design In Post Conflict Democracies’ को पढ़ाया।

समलैंगिक कपल हैं मेनका गुरुस्वामी और अरुंधति काटजू

सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी और उनकी पार्टनर अरुंधति काटजू को टाइम मैगजीन ने साल 2019 में दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों में शामिल किया था। विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव विवेक काटजू की बेटी अरुंधति काटजू भी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता हैं। अरुंधति के दादा ब्रह्म नाथ काटजू इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

परदादा हिंदू पर्सनल लॉ के थे खिलाफ!

द इंडियन एक्सप्रेस पर लिखे एक आर्टिकल में विवेक काटजू ने बताया था कि उनके पूर्वज 1820 के दशक में कश्मीर घाटी से पलायन कर मालवा क्षेत्र में आग बसे थे। वह क्षेत्र अब मध्य प्रदेश में आता है।

विवेक काटजू के दादा कैलास नाथ काटजू 1914 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में बस गए। बाद में वह एक प्रमुख वकील बने। लाखों लोगों की तरह विवेक काटजू के दादा भी महात्मा गांधी के अनुयायी और कांग्रेस के सदस्य थे।

अरुंधति काटजू वर्तमान में समलैंगिक विवाह को कानून बनाए जाने पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में दलील कर रही हैं। लेकिन उनके परदादा यानी कैलास नाथ काटजू जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य के रूप में हिंदू पर्सनल लॉ के खिलाफ थे। यह वही कानून है, जिससे हिंदू महिलाओं को तलाक और संपत्ति का अधिकार मिला।

377 कराया था खत्म

मेनका गुरुस्वामी और अरुंधति काटजू ने धारा 377 को खत्म करवाने के लिए लंबा अभियान चलाया था। अरुंधति काटजू और मेनका गुरुस्वामी ने ही सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। साल 2018 में उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को निरस्त कर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

प्रियंका चोपड़ा कर चुकी हैं तारीफ

न्यायिक बिरादरी की इस लेस्बियन कपल की तारीफ करते हुए प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने टाइम मैगजीन में लिखा था, “अरुंधति और मेनका ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में LGBTQ+ अधिकारों के लिए एक बड़ा कदम उठाने में मदद की है।”

वर्तमान में मेनका गुरुस्वामी और अरुंधति काटजू अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानून बनाने के समर्थन में दलील कर रही हैं।