भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘सैम बहादुर’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। 150 मिनट की फिल्म में सैम मानेकशॉ के पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ की महत्वपूर्ण घटनाओं को दिखाया गया है। फिल्म को लेकर हमने जीओसी-इन-सी दक्षिणी कमान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल दीपिंदर सिंह से बात की है। सैम मानेकशॉ 1969 से 1973 तक सेना प्रमुख थे। इस दौरान लेफ्टिनेंट जनरल दीपिंदर सिंह (सेवानिवृत्त) उनके मिलिट्री असिस्टेंट थें।
“फिल्म देखकर ‘सैम मानेकशॉ’ के अंदर का सिपाही ज्यादा खुश नहीं होगा”
हमने जनरल से पूछा कि अगर सैम मानेकशॉ खुद यह फिल्म देखते तो उनका रिएक्शन कैसा होता? उन्होंने जवाब दिया कि इस फिल्म को देखकर उनके (सैम) भीतर का शोमैन तो रोमांचित होता लेकिन उनके अंदर का सिपाही ज्यादा खुश नहीं होता। उनके व्यक्तित्व के दोनों पहलू थे। मुझे लगता है कि अगर फिल्म में सेना और उसके माहौल को सकारात्मक दिखाया जाता तो वह खुश होते।
“स्वीटी…” इस तरह हालचाल लेते थे सैम
सैम मानेकशॉ की विशेषताओं को याद करते हुए जनरल बताते हैं कि वह मानवीय भावों से लबरेज व्यक्ति थे। वरिष्ठ अधिकारी होने का भाव उन पर हावी नहीं था। जनरल कहते हैं, “अगर वह देख लेते कि मैं किसी कारण उनसे उदास हूं तो वह मेरे ऑफिस में आ जाते और अपना हाथ मेरे कंधे पर रखकर पूछते- स्वीटी मेरे पास नया टेप (म्यूजिक टेप) है, क्या तुम चाहती हो कि उसकी एक कॉपी मैं तुम्हे दे दूं।”
जब जनरल टिक्का खान ने रोल्स रॉयस कार में किया स्वागत
1971 के युद्ध के बाद सैम ने दो बार लाहौर का दौरा किया। दोनों ही यात्राओं में दीपिंदर सिंह सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ के साथ गए थे। दोनों यात्रा जम्मू के दक्षिण में स्थित ‘ठाकोचक’ नामक एक गांव की भारत में वापसी के लिए थी। 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने इस गांव पर कब्जा कर लिया था। हालांकि शिमला समझौते के बाद उसे गांव पर से कब्जा छोड़ना था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा था। इस वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सैम मानेकशॉ को दो बार लाहौर भेजना पड़ा था।
पहली यात्रा बेनतीजा रही थी। दूसरी यात्रा में सैम, पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल टिक्का खान को पुंछ सेक्टर के एक गांव के बदले में ‘ठाकोचक गांव’ वापस करने के लिए मनाने में कामयाब रहे। पड़ोसी देश को जो गांव मिला वह तीन तरफ से पाकिस्तान से घिरा हुआ था।
लाहौर यात्रा के बारे में जनरल बताते हैं, “दोनों ही यात्राओं के दौरान पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने हमारे प्रति बहुत अच्छा व्यवहार किया। सैम का लाहौर में जनरल टिक्का खान ने रोल्स रॉयस कार में स्वागत किया था, जो पाकिस्तानी सेना प्रमुख के पास उनकी सेवा के लिए थी।”
जनरल सिंह, लाहौर के गवर्नर हाउस का एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं। सैम को गवर्नर हाउस में दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान पंजाब के गवर्नर ने सैम से कहा कि उनका स्टाफ उनसे मिलना चाहता है। सैम सहमत हो गए। थोड़ी ही देर में पूरा स्टाफ सैम के स्वागत में उनके सामने खड़ा था।
गवर्नर हाउस की पोशाक पहना एक व्यक्ति आगे बढ़ा और अपनी पगड़ी जमीन पर रख दी और सैम का इस बात के लिए शुक्रिया अदा करने लगा कि भारत में पाकिस्तानी सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार किया जा रहा है। वह कहने लगा, “भारतीय सेना युद्धबंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों की देखभाल कर रही है। उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जा रहा था।” यह बहुत ही मार्मिक दृश्य था।
बता दें कि 1971 के में युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी। उनके करीब 90,000 सैनिकों भारत में युद्ध बंदी की तरह रखा गया था। उनके रहने के लिए अच्छी व्यवस्था की गई थी। नमाज पढ़ने के लिए चटाई और कुरान उपलब्ध कराया गया था।
अमृतसर से गुजरा था बचपन
सैम मानेकशॉ का बचपन अमृतसर शहर में गुजरा था। सेनाध्यक्ष रहने के दौरान उन्होंने दीपिंदर सिंह को अपना पुश्तैनी घर दिखाया था। जनरल याद करते हैं, “जब वह सेनाध्यक्ष बने तो हम अमृतसर की यात्रा पर गये। उन्होंने मुझे वह घर दिखाया जहां वह पले-बढ़े थे। उन्होंने एक पेड़ भी दिखाया, जिसे बचपन में लगाया था। मैंने मजाक में उनसे कहा कि पेड़ अब आप से भी ऊंचा हो गया है।” सैम ने बर्मा में 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के सिख सैनिकों की एक कंपनी की कमान संभाली थी। वह धाराप्रवाह पंजाबी बोल सकते थे।