अपने अनुयायियों के बीच सद्गुरु के नाम से चर्चित जग्गी वासुदेव के पूर्वज दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य में शासक हुआ करते थे। उनके दादा-पड़दादा की अपनी फौज और अदालत हुआ करती थी। वे आजादी के बाद भी स्वतंत्र भारत का कानून अपने ‘किंगडम’ में नहीं लागू करना चाहते थे। जब एक बड़े अधिकारी ने प्रयास किया तो उसे मार दिया गया। जग्गी वासुदेव का आरोप है कि बाद में वर्षों में उनके एक पूर्वज की पुलिस ने हत्या कर दी थी।
जग्गी वासुदेव ने ये सारी बातें 29 नवंबर को मुंबई में आयोजित ‘Express Adda’ में इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनंत गोयनका से बातचीत के दौरान बताई।
राष्ट्रवाद से शुरू हुई थी बात
सद्गुरु आइडेंटिटी के रूप में नेशन को अच्छा मानते हैं। हालांकि वह ये भी कहते हैं कि परिपक्व होते देश में ‘राष्ट्रवाद’ का तेवर धीरे-धीरे कम होते जाना चाहिए। वह कहते हैं “लोग मुझसे पूछते हैं कि राष्ट्रवाद कितना होना चाहिए। मैं कहता हूं अगर यह 1947 से पहले का समय है तो आपके पास 200 प्रतिशत राष्ट्रवाद होना चाहिए। आजादी के बाद से 1960 तक 100 प्रतिशत राष्ट्रवाद और 1965 से 1970 तक 90 प्रतिशत राष्ट्रवाद की जरूरत थी। जब देश आकार लेने लगे और चीजें ठीक होने लगें तो राष्ट्रवादी तेवर कम होते जाना चाहिए। यही देश को चलाने का सुरक्षित तरीका है। वरना हम हमेशा किसी न किसी से झगड़ते रहेंगे।”
तो क्या राष्ट्रवाद का पारा कम हुआ है?
इस सवाल के जवाब में जग्गी वासुदेव कहते हैं, “1947 में आजादी मिलने के तुरंत बाद हम एक राष्ट्र के रूप में भारत को सभी के दिल और दिमाग में नहीं बैठा सकते थे। ये बात सभी को समझना होगा। मेरे खुद के दादा-दादी और पड़दादा-पड़दादी का संबंध विजयनगर साम्राज्य से था। वे बेंगलुरु शहर के आस-पास के क्षेत्र पर राज करते थे। 1947 में भारत के आजाद होने के बाद उन्हें अपनी पर्सनल आर्मी को भंग करनी थी। लेकिन उन्हें ये बात समझ ही नहीं आ रहा था कि वे ऐसा क्यों करें। उनके पास एक छोटी आर्मी थी। अपने नियम-कायदा और कोर्ट थे। वे अपने साम्राज्य में सब कुछ अपने हिसाब से चला रहे थे। लेकिन फिर अचानक एक दिन बेंगलुरु शहर का डीएसपी आया। तब डीएसपी ही शहर के सबसे बड़े अधिकारी हुआ करते थे। उस डीएसपी ने कानून लागू करने की कोशिश की। उसके साथ उन लोगों (सद्गुरु के पूर्वजों) ने क्रूर व्यवहार किया और फिर हत्या कर दी।”
“पुलिस स्टेशन से नहीं लौटे मेरे परदादा के भाई”
जग्गी वासुदेव अपने परदादा के भाई के साथ हुई एक घटना को याद करते हैं। वह बताते हैं कि कैसे अपना किंगडम चला रहे उनके पूर्वजों को ‘आइडिया ऑफ भारत’ समझ ही नहीं आ रहा था। वह कहते हैं, “1952-53 में भारत सरकार ने अपना कानून लागू किया। इसके लिए सरकार को कड़े कदम उठाने पड़े। कई लोगों को बुरी तरह पीटा। मेरे परदादा के भाई को तो बेंगलुरु पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां से वह कभी नहीं लौटे। पुलिस ने उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि भारत है क्या? वह तो लंबे समय से अपना किंगडम चला रहे थे।”
शासक ही नहीं जनता को भी भारत का नहीं पता था- सद्गुरु
जग्गी बताते हैं, “भारत को एक राष्ट्र के रूप में सिर्फ शासक ही नहीं जनता भी नहीं समझ पा रही थी। क्योंकि पहले तो वे भी अलग-अलग साम्राज्य के नागरिक हुआ करते थे। कोई मैसूर साम्राज्य का रहने वाला था, कोई किसी और किंगडम का हिस्सा था।”
वर्तमान में राष्ट्रवाद की जरूरत पर अपने विचार स्पष्ट करते हुए सद्गुरु कहते हैं, “तब (आजादी के बाद) हमें लोगों के दिल और दिमाग में भारत की पहचान बसानी थी। उन्हें बताना था कि भारतीय होना उनकी पहचान है। अगर हमने तब ये सब कर लिया, तो आज राष्ट्रवाद के बारे में इतनी बात करने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन क्योंकि तब हमने आबादी के एक बड़े हिस्से को इसमें शामिल नहीं किया, इसलिए हमें अब भी राष्ट्रवाद पर बात करनी पड़ रही है।”