राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार (25 जुलाई) को राष्ट्रपति भवन के ‘दरबार हॉल’ और ‘अशोक हॉल’ के नाम बदलकर क्रमशः ‘गणतंत्र मंडप’ और ‘अशोक मंडप’ करने की घोषणा की। राष्ट्रपति भवन का निर्माण 1929 में पूरा हुआ। यह किंग जॉर्ज पंचम की घोषणा कि 1911 में ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की जाएगी, के बाद बनवाया गया था।
नाम बदलने संबंधी जानकारी देते हुए प्रेस रिलीज में कहा गया है, “राष्ट्रपति भवन के माहौल में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करने का लगातार प्रयास किया गया है इसलिए ‘दरबार’ और ‘हॉल’ शब्दों को बदल दिया गया है। ‘दरबार’ का तात्पर्य भारतीय शासकों और ब्रिटिशों की अदालतों व सभाओं से है। भारत के गणतंत्र बनने के बाद इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई।”
आइये जानते हैं राष्ट्रपति भवन और इन हॉल का इतिहास।
दरबार हॉल में सिविल और डिफेंस सेरेमनी की मेजबानी की जाती है
राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में सिविल और डिफेंस सेरेमनी की मेजबानी की जाती है, जहां राष्ट्रपति अवॉर्ड पाने वालों को सम्मान प्रदान करते हैं। यहां शपथ ग्रहण समारोह भी आयोजित किये जाते हैं। जैसे भारत के मुख्य न्यायाधीश का शपथ ग्रहण। 1947 में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में दरबार हॉल एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना था।
जून में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी एनडीए सरकार का शपथ ग्रहण समारोह भी यहीं आयोजित किया गया था।

दरबार हॉल की दीवारें सफेद संगमरमर से बनी हैं
हॉल की दीवारें 42 फीट ऊंची हैं, जो सफेद संगमरमर से बनी हैं। गुंबद का व्यास लगभग 22 मीटर है। किताब ‘द आर्ट्स एंड इंटीरियर्स ऑफ राष्ट्रपति भवन: लुटियंस एंड बियॉन्ड’ (2016) के अनुसार, “जब मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को बर्मा में निर्वासित किया गया था और ब्रिटिश राज ने मुगल साम्राज्य में कदम रखा था, तब उन्होंने मुगल साम्राज्य का वैध उत्तराधिकारी होने का दावा करते हुए दरबार और अन्य मुगल दरबारी रीति-रिवाजों को अपने राजनीतिक ढांचे में शामिल किया।”
आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को दिल्ली में नए निर्माणों के लिए चुना गया था लेकिन यह निर्माण मुख्य रूप से पश्चिमी शैली के तहत थे। हॉल सफेद कैप और बेस के साथ पीले जैसलमेर संगमरमर से बने स्तंभों से घिरा हुआ है। कई रंगों में संगमरमर मुख्य रूप से राजस्थान के मकराना, अलवर, मारवाड़ और अजमेर से आयात किया जाता था। चॉकलेट कलर का संगमरमर इटली से आयात किया गया था।

वायसराय और उनकी पत्नी के सिंहासन भी हॉल में स्थापित किये गये
इसके साथ ही वायसराय और उनकी पत्नी के लिए दो सिंहासन भी स्थापित किये गये। बाद में उनकी जगह राष्ट्रपति की कुर्सी लग गई और अब इसके पीछे 5वीं शताब्दी की बुद्ध प्रतिमा रखी है।
किताब ‘द आर्ट्स एंड इंटीरियर्स ऑफ राष्ट्रपति भवन: लुटियंस एंड बियॉन्ड’ के अनुसार, “ जिस छत्र के नीचे सिंहासन रखा था उसका डिज़ाइन नहीं बदला है। स्वतंत्रता के बाद इसके स्थान पर भारतीय गणतंत्र के प्रतीकों वाला एक नया सिंहासन यहां रखा गया।”

अशोक हॉल मूल रूप में एक बॉल रूम था
‘अशोक हॉल’ मूल रूप में एक बॉल रूम था। अब इसका उपयोग अन्य देशों के मिशन प्रमुखों द्वारा परिचय पत्र प्रस्तुत करने और राष्ट्रपति द्वारा आयोजित राजकीय भोज की शुरुआत से पहले आने वाले और भारतीय प्रतिनिधिमंडलों के लिए परिचय के औपचारिक स्थान के रूप में किया जाता है। मचान जैसी जगह का उपयोग महत्वपूर्ण समारोहों के दौरान राष्ट्रगान बजाने के लिए किया जाता है।
बेल्जियम से लाये हुए झूमर अशोक हॉल में लगे हैं
बेल्जियम से लाये हुए छह झूमर अशोक हॉल की छत से लटके हुए हैं और दीवारों पर कई पेंटिंग भी लगी हैं। पर्शिया के सात कजर शासकों में से दूसरे, फतह अली शाह द्वारा उपहार में दी गई एक पेंटिंग भी हॉल में लगी है। 23 भारतीय कलाकारों की मदद से इतालवी कलाकार टोमासो कोलोनेलो को कमरे के बाकी हिस्सों को फॉरेस्ट थीम के आधार पर सजावट करने के लिए नियुक्त किया गया था।
राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट में कहा गया है, “अशोक हॉल की छत को सुंदर बनाने के लिए फ़ारसी में शिलालेखों के साथ शिकार के चार और दृश्य जोड़े गए थे। हॉल की दीवारें एक शाही जुलूस को चित्रित करती हैं।”
यहां वास्तुशिल्प प्रभावों का मिश्रण भी दिखाई देता है। उपरोक्त किताब में कहा गया है कि बॉल रूम में दो फायरप्लेस विक्टोरियन डिजाइनों से प्रेरित थे। इन फायरप्लेस पर फ़ारसी शिलालेख हैं।